लाल-पीले झंडे पर भाजपा- कांग्रेस एक दूसरे पर गरम, जानें-क्या है मामला
कर्नाटक सरकार ने राज्य के झंडे के लिए एक समिति गठित की है। लेकिन भाजपा और जेडीएस का कहना है कि कांग्रेस राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । करीब दो महीने पहले कर्नाटक में हिंदी के साइनबोर्ड, मेट्रो स्टेशनों पर हिंदी के नामों का जबरदस्त विरोध हो रहा था। कन्नड़ समर्थकों के गुस्से को शांत करने के लिए अधिकारियों ने एक रास्ता खोजा। मेट्रो स्टेशनों पर हिंदी के नामों पर पेंट लगाकर विरोध को शांत करने की कोशिश की गई। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। राज्य सरकार ने अनधिकृत रूप से इस्तेमाल हो रहे लाल-पीले झंडे के लिए समिति गठित की है। लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं।
अब झंडे पर सियासत
मंगलवार को झंडे को लेकर पूरे कर्नाटक में माहौल गरमा गया था। विरोधी दलों का कहना है कि ये राष्ट्रीय झंडे को चुनौती देने जैसा है। लेकिन कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया ने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि भाजपा सार्वजनिक तौर पर विरोध करने से क्यों डर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य के झंडे को लेकर जो समिति बनायी गई है, वो संविधान के खिलाफ नहीं है। 2014 में 96 वर्षीय पाटिल पुतप्पा (पेशे से पत्रकार, कन्नड़ एक्टिविस्ट) और 56 वर्षीय भीमप्पा गुंडप्पा (आरटीआइ कार्यकर्ता) ने कर्नाटक के लिए आधिकारिक राज्य झंडे की मांग बुलंद की थी। 6 जून 2017 को कर्नाटक सरकार के कन्नड़ और संस्कृति विभाग ने झंडे की आवश्यकता और कानूनी पक्ष को जानने के लिए 9 सदस्यों वाली एक समिति बनाई थी। ये मामला स्थानीय मीडिया में उस वक्त भी उठा था, लेकिन मंगलवार 18 जुलाई 2017 को ये मामला उग्र हो गया। कांग्रेस की कड़ी आलोचना करते हुए कहा गया कि राज्य सरकार राष्ट्रीय झंडे को चुनौती देने के साथ-साथ कानून का भी उल्लंघन कर रही है। नियमों के मुताबिक सिर्फ जम्मू-कश्मीर सरकार को ही अपना झंडा फहराने का अधिकार है।
लाल-पीले झंडे की कहानी
1960 के दशक के मध्य से ही कर्नाटक में लाल-पीले रंग वाला झंडा राज्य के झंडे के रूप में अनौपचारिक रूप से इस्तेमाल होता रहा है। दरअसल उस वक्त कन्नड़ समर्थकों का एक बड़ा समूह सिनेमाहॉलों में गैर कन्नड़ फिल्मों के दिखाए जाने के खिलाफ था। लाल-पीले रंग वाले झंडे को कन्नड़ समुदाय की आवाज बुलंद करने वाली पार्टी कन्नड़ पक्ष के लिए कन्नड़ लेखक और कार्यकर्ता एम ए राममूर्ति ने बनाया था। दरअसल उस वक्त बहुत से गैर कन्नड़ संगठन अपनी आवाज बुलंद करने के लिए अलग-अलग झंडे का इस्तेमाल किया करते थे। 1 नंवबर को कर्नाटक के स्थापना दिवस के मौके पर गैरआधिकारिक झंडे को फहराया जाता है। कन्नड़ समर्थक इसे राज्य के सम्मान के तौर पर देखते हैं। हाल ही में जब तमिलनाडु के साथ कावेरी जल के मुद्दे पर कर्नाटक में जबरदस्त विरोध चल रहा था, उस वक्त लोग हिंसक भीड़ से बचने के लिए लाल-पीले रंग के झंडे का इस्तेमाल अपनी गाड़ियों पर करते थे।
साल 2012 में कर्नाटक में तत्कालीन भाजपा सरकार ने अधिसूचना के जरिए लाल-पीले रंग वाले झंडे को आधिकारिक दर्जा दिया था। 2012 के बजट भाषण के दौरान सीएम सदानंद गौड़ा ने कहा था कि सरकारी इमारतों, स्कूलों और कॉलेजों को राज्य का झंडा लगाना अनिवार्य होगा। लेकिन कन्नड़ कार्यकर्ता प्रकाश शेट्टी हाइकोर्ट गए और कहा कि उनका विरोधी टी.ए नारायन गौड़ा व्यक्तिगत लाभ के लिए राज्य के झंडे का दुरुपयोग कर रहा है। सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट के मुख्य न्यायधीश विक्रमजीत सेन ने पूछा कि क्या राज्य का अपना झंडा रखना वैधानिक है, क्योंकि नियम के मुताबिक सिर्फ राष्ट्रीय झंडे को फहराया जा सकता है। हाईकोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य के झंडे को फहराना अनिवार्य नहीं है। कर्नाटक सरकार ने आगे की कार्रवाई करते हुए 4 नवंबर को अधिसूचना को वापस ले लिया।
विपक्ष का हमला
भाजपा सांसद शोभा करंदालजे ने कहा कि राज्य सरकार देश के खिलाफ काम कर रही है। सिद्धरमैया सरकार 2018 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कन्नड़ अभिमान को हवा दे रही है। भाजपा के अलावा जेडीएस के कुमारस्वामी ने कहा कि संविधान में राज्य के लिए अलग से झंडे का प्रावधान नहीं है। कांग्रेस सरकार हाल ही में घटित कुछ विवादों से ध्यान बंटाने के लिए इस मुद्दे को उछाल रही है।
कांग्रेस की सफाई
कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया ने कहा कि विपक्षी नेताओं के आरोपों में दम नहीं है। राज्य सरकार ने राज्य के झंडे के संबंध में एक समिति गठित की है। समित की सिफारिशों के आधार पर अंतिम फैसला किया जाएगा। सिद्धरमैया ने कहा कि कर्नाटक का अपना राज्यगीत है, अगर राज्य की जनता अलग झंडे के बारे में विचार रखती है तो उसे गलत कैसे कहा जा सकता है। राज्य का अलग झंडा होने से देश की एकता और अखंडता को खतरा नहीं होगा। इसके अलावा राष्ट्रीय झंडे की महत्ता भी कम नहीं होगी। राष्ट्रीय झंडा हमेशा राज्य झंडे से ऊपर ही रहेगा और सबसे बड़ी बात ये है कि राज्य के झंडे को लेकर संविधान किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाता है। भाजपा के नेता पूरे प्रकरण में आम जनता को गुमराह कर रहे हैं। भाजपा के नेता खुलेआम कहने से क्यों बच रहे हैं कि कर्नाटक को अलग झंडे की जरूरत नहीं है। झंडे को लेकर जो समिति बनाई गई है उसका विधानसभा चुनाव से लेना देना नहीं है।
कांग्रेस का केंद्रीय कमान असहज
राज्य सरकार द्वारा बनायी गई 9 सदस्यों वाली समिति के खुद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया एक हिस्सा हैं। हालांकि राज्य सरकार के इस फैसले से कांग्रेस के केंद्रीय नेता असहज महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा इसका इस्तेमाल कांग्रेस के खिलाफ कर सकती है। एआइसीसी के कर्नाटक प्रभारी के सी वेनुगोपाल का भी मानना है कि कांग्रेस के लिए ये स्वीकार कर पाना बेहद मुश्किल होगा कि राज्यों का अपना अलग झंडा हो।
केंद्र की तरफ से ना
केंद्रीय गृहमंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि हम लोग एक देश हैं, और एक झंडा है। लेकिन कानूनी तौर पर किसी राज्य के लिए अलग से झंडा होने या न होने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इस तरह का मुद्दा पहले भी उठा है, लेकिन इस तरह का झंडा लोगों का प्रतिनिधित्व करता है न कि किसी राज्य का।
क्या कहता है संविधान
संविधान में ऐसा भी कोई प्रावधान नहीं है जो किसी राज्य को अलग झंडा बनाने से राेकता हो। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय संविधान में अलग से झंडे का प्रावधान नहीं है। यहां सिर्फ राष्ट्रध्वज हो सकता है। बता दें कि देश में अभी तक सिर्फ जम्मू-कश्मीर का ही अलग झंडा है। धारा-370 के चलते उसे खास दर्जा मिला हुआ है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के इस कदम का भाजपा और शिवसेना ने विरोध किया है।
कर्नाटक में हिंदी का विरोध
हिंदी विरोधी ट्वीटर कैंपेन के बाद #NammaMetroHindiBeda (हमारी मेट्रो, हम नहीं चाहते हिंदी) दो मेट्रो स्टेशनों चिकपेट और मैजेस्टिक के हिंदी में लिखे गए नामों को 3 जुलाई को पेपर और टेप की मदद से ढक दिया। ये मेट्रो बोर्ड कन्नड, अंग्रेजी और हिंदी में थे। केआरवी कार्यकर्ता प्रवीण शेट्टी ने रेस्त्रां के खिलाफ हिंदी और अंग्रेजी विरोधी कार्रवाई की। हिंदी के विरोध में आवाज बुलंद करने वालों ने कहा कि सिर्फ अपने फायदे के लिए कर्नाटक की जमीन और यहां कि इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग किया जाता है लेकिन वे कन्नड़ भाषा के उपयोग या कन्नड़ लोगों को नौकरी नहीं देना चाहते हैं। शेट्टी ने आगे कहा कि यदि कर्नाटक में हिंदी व अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है तो उनकी मांग है कि दिल्ली व अन्य जगहों में कन्नड भाषा का उपयोग किया जाए।
‘यदि दिल्ली व अन्य जगहों पर आप कन्नड साइनबोर्ड का उपयोग करते हैं तो हम भी कर्नाटक में हिंदी व इंग्लिश का उपयोग करेंगे।‘ कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने हिंदी विरोधी ब्रिगेड का समर्थन किया और अधिकारियों से पता लगाने को कहा है कि गैर हिंदी भाषी राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल आदि में क्या पॉलिसी अपनायी गयी है। मुख्यमंत्री के निर्देश का पालन करते हुए कन्नड विकास अधिकरण ने को बेंगलूर मेट्रो रेल कार्पोरेशन लिमिटेड को नोटिस जारी कर दिया जिसमें सवाल किया कि वह तीन भाषाओं वाली पॉलिसी का को क्यों प्राथमिकता दे रहा है।
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