आपको पता है कि भारत में कैसे होता है राष्ट्रपति चुनाव, जानें प्रक्रिया
देश का अगला राष्ट्रपति 20 जुलाई को चुन लिया जाएगा। इसके लिए आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी है। अब राजनीतिक दलों पर है कि वे अपने उम्मीदवारों को तय करें और चुनावी मैदान में उन्हें उतार दें।
उमेश चतुर्वेदी
देश का अगला राष्ट्रपति 20 जुलाई को चुन लिया जाएगा। इसके लिए आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी है। निर्वाचन आयोग केंद्र सरकार के परामर्श से निर्वाचन अधिकारी के रूप में बारी-बारी से लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव की नियुक्ति करता है। इसी के तहत इस बार लोकसभा के महासचिव को निर्वाचन अधिकारी बनाया गया है। चुनाव के लिए मतदान संसद भवन, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी समेत राज्यों की विधान सभाओं के परिसरों में आयोजित किया जाएगा।
अब राजनीतिक दलों पर है कि वे अपने उम्मीदवारों को तय करें और चुनावी मैदान में उन्हें उतार दें। मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तेरहवें राष्ट्रपति हैं, हालांकि चुनाव पंद्रहवीं बार होने जा रहे हैं। चूंकि पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने दो बार पदभार संभाला, इसलिए पंद्रहवीं बार चुनाव होने जा रहा है। भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। इसमें जनता द्वारा चुने गए लोकसभा और विधानसभा के सदस्य के साथ ही विधानसभाओं के द्वारा चुने गए राज्यसभा के सदस्य ही हिस्सा लेते हैं। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के मनोनीत सदस्यों और विधान परिषदों के सदस्य इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेते।
यहां यह भी याद दिला देना चाहिए कि देश के छह राज्यों में दो सदनों का विधानमंडल है यानी वहां विधान परिषद भी है। ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और आंध्र प्रदेश। संविधान के अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पूरी व्यवस्था दी गई है। हालांकि यह चुनाव इसी अनुच्छेद के तहत बने राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव नियम, 1974 के जरिए चुनाव आयोग कराता है। इस चुनाव में सांसदों और विधायकों की सम्मिलित संख्या को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है और इसके मुताबिक प्रत्येक वोटर के मत का मूल्य अलग-अलग होता है।
इसके तहत लोकसभा सांसदों के वोट की कीमत सबसे ज्यादा होती है, जबकि राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों का मूल्य अलग-अलग होता है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस समय कुल 10 लाख 98 हजार 882 वोटों वाला निर्वाचक मंडल है। सांसदों की संख्या जहां 763 है। क्योंकि चुनाव आयोग ने राज्यसभा की खाली 13 सीटों के लिए मतदान स्थगित कर दिया है। यानी इस बार इतने ही सांसद वोट डाल पाएंगे। वहीं सभी राज्यों के चुने हुए विधायकों की कुल संख्या 4,120 है। इस निर्वाचक मंडल में सांसदों की वोट की कीमत सबसे ज्यादा होती है। विधायकों में उत्तर प्रदेश के विधायकों के वोट की कीमत सबसे ज्यादा होती है, जबकि सिक्किम और पुडुचेरी के विधायकों के वोट की कीमत सबसे कम है।
उत्तर प्रदेश में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास बहुमत से सिर्फ 24 हजार 522 वोट पीछे है। राष्ट्रपति का चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार के लिए 5 लाख 49 हजार 442 वोट चाहिए। फिर जिस तरह आंध्र प्रदेश की वाइएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगन रेड्डी ने लिखकर प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन दिया है या फिर तमिलनाडु की सत्ताधारी अन्नाद्रमुक ने सहयोग का रुख दिखाया है, उससे अब तय हो गया है कि अगला राष्ट्रपति वही बनेगा, जिसे भारतीय जनता पार्टी चाहेगी। प्रत्येक वोट की कीमत देश या उस राज्य विशेष की जनसंख्या के आधार पर तय होती है। सांसदों के मतों के मूल्य का गणित अलग है। सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्यों के वोटों का मूल्य जोड़ा जाता है।
अब इस सामूहिक मूल्य को राज्यसभा और लोकसभा के चुने हुए सांसदों की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है। इस तरह जो संख्या आती है, वह एक सांसद के वोट के बराबर होती है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता है तो मूल्य में एक बढ़ोतरी हो जाती है। जिस राज्य का विधायक हो, उसकी आबादी देखी जाती है। उस राज्य के विधायक के वोट का मूल्य निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने हुए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो संख्या आती है, उसमें फिर 1000 से विभाजित किया जाता है। इसके बाद जो आंकड़ा सामने आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का मूल्य होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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