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    70 साल के इंतजार के बाद तीन दिन के दौरे ने लिख दी नई इबारत

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Fri, 07 Jul 2017 10:57 AM (IST)

    इजरायली रक्षा, संरक्षा और आतंकवाद से निपटने की स्मार्ट टेक्नालोजी पर तो भारत की निगाह है। मोदी की इस यात्रा ने द्विपक्षी सहयोग को नया आयाम दिया है

    70 साल के इंतजार के बाद तीन दिन के दौरे ने लिख दी नई इबारत

    मोहम्मद शहजाद

    दोस्ती की नई इबारत लिखने के लिए भारत-इजरायल दशकों से एक दूसरे की राह ताक रहे थे। पहल कौन करे, इसका इंतजार था। आखिर वह वक्त आया जब खुद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर इजरायल को बेहद मजबूत दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया और इजरायल पहुंच गए। इजरायल ने मोदी का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया गया, पूरा संसार देखता रह गया। किसी दूसरे नेता के लिए शायद ही इजरायल ने अभी तक इतनी गर्मजोशी से स्वागत किया हो। मोदी जब तेल अवीव एयरपोर्ट पहुंचे तो इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपनी कैबिनेट के साथ खुद उनके स्वागत के लिए वहां उपस्थित थे। नेतन्याहू के अलावा मोदी के आवभगत के लिए वहां के तमाम विपक्षी नेता भी मौजूद थे। पूर्व में ऐसा विशेष स्वागत या तो पोप का हुआ था या अमेरिकी राष्ट्रपतियों को।

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    मोदी का इजरायल दौरा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के नजरिए से न सिर्फ भारत के लिए विशिष्ट माना जा रहा बल्कि इजरायल के लिए भी उतना ही अहम है। मोदी इजरायल की धरती पर कदम रखने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। पूर्व के भारतीय प्रधानमंत्री इससे पहले इजरायल क्यों नहीं गए, यह सवाल अब आगे नहीं दोहराया जाएगा। उसका जवाब मोदी ने सबको दे दिया। इजरायल आना-जाना अब लगा रहेगा क्योंकि फलस्तीन और इजरायल के बीच संतुलन बनाकर चलने की भारत की नीति को पीछे छोड़कर मोदी संबंधों की नई राह पर बढ़े हैं। पिछले माह ही फलस्तीनी राष्ट्पति महमूद अब्बास ने भारत का दौरा किया था। भारत और फिलीस्तीन के बीच कृषि, खेल, स्वास्थ्य, इलेक्ट्रोनिक्स और आइटी क्षेत्र में पांच समझौते भी हुए थे। किंतु यह भी अभूतपूर्व है कि कोई भारतीय नेता इजरायल जाए और फलस्तीन न जाए। 1992 में इजरायल से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने। दोस्ती का सिलसिला यूं ही आगे चलता रहे, इस पर बल दिया जाएगा।

    गौरतलब है कि भारत और इजरायल के बीच रक्षा संबंधों की शुरुआत 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान ही हुई थी। इसके अलावा करगिल युद्ध के वक्त 1999 में जब देश के पास तोपों की कमी थी तब इजरायल ने भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया। भारत के ज्यादातर यूएवी इजरायली ही हैं और इसी साल दो अरब डॉलर के रक्षा सौदों की अहमियत भी कम नहीं है, जिनमें सतह से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम शामिल है।

    इजरायली रक्षा, संरक्षा और आतंकवाद से निपटने की स्मार्ट टेक्नालोजी पर तो भारत की निगाह है। मोदी की इस यात्रा ने द्विपक्षी सहयोग को नया आयाम दिया है और अब ये रक्षा एवं टेक्नोलॉजी की पारंपरिक साझेदारी से आगे बढ़कर दीगर सेक्टर तक जा पहुंची है। इस यात्र के दौरान जिन सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं, उनका क्षेत्र बहुत व्यापक है। इनमें रक्षा और कारोबार के अलावा जल संरक्षण, औद्योगिक विकास, कृषि और आंतरिक्ष जैसे क्षेत्र शामिल हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन समझौतों से विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे कई राज्यों को फायदा होने वाला है। इन पर जिन राज्यों की आस टिकी है, उनमें गुजराती हीरों के कारोबारियों के साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसान भी शामिल हैं। इजरायल के साथ कृषि, बागवानी और जलसंचय के सबसे ज्यादा साझा कार्यक्रम इन्हीं दोनों राज्यों में चल रहे हैं।

    भारत के कुछ ऐसे आंतरिक मुद्दे हैं जिन्हें सुलझाने में इजरायल प्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर सकता है। एसवाइएल मसला उनमें से एक है। एसवाईएल नहर के पानी के लिए झगड़ रहे हरियाणा और पंजाब सिंचन चिंतन के लिए इजरायली विज्ञानियों की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर इजरायल ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को आंमत्रित किया है जिसे उन्होंने स्वीकार की लिया है। वह सितंबर में इजरायल जाएंगे। हरियाणा में करनाल स्थित इजरायली सेंटर पर हर साल लगभग बीस हजार से भी ज्यादा किसान नर्सरी में सब्जियों के हाइब्रिड बीज और इजरायली तकनीक सीखने आते हैं। आगामी वर्षो में इंडो-इजरायल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के माध्यम से इजरायल दोनों राज्यों के साथ अपने संबंध नई ऊंचाई पर ले जाने को कमर कस रहा है। इसी तरह पानी की कमी और सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड में इजरायल की मदद से जल संचयन के कार्यक्रम चलाए जाने का अनुमान है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)