Move to Jagran APP

चीन को घेरने के लिए भारत की नई रणनीति है 'डॉलर डिप्‍लोमेसी'

चीन को घेरने के लिए भारत अब उसी की रणनीति पर काम कर रहा है। यह रणनीति है 'डॉलर डिप्‍लोमेसी'।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 24 Jul 2017 11:48 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jul 2017 10:21 PM (IST)
चीन को घेरने के लिए भारत की नई रणनीति है 'डॉलर डिप्‍लोमेसी'
चीन को घेरने के लिए भारत की नई रणनीति है 'डॉलर डिप्‍लोमेसी'

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। डोकलाम इलाके में जिस तरह से भारत और चीन में तनाव बढ़ता जा रहा है वह कोई भी रुख इख्तियार कर सकता है। इस इलाके में चीन के साथ-साथ भारत ने भी अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ा दिया है। हालांकि भारत ने बातचीत के भी विकल्‍प पूरी तरह से खुले रखे हैं। यही वजह है कि भारत के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीन की यात्रा में इस मुद्दे पर बात करने वाले हैं, जिससे तनाव को कम किया जा सके, लेकिन बावजूद इसके चीन आंखें दिखाने से बाज नहीं आ रहा है। भारत को हर मंच पर घेरने के लिए चीन हमेशा तैयार खड़ा हुआ है।

loksabha election banner

वह न केवल आर्थिक रूप से भारत को घेरना चाहता है बल्कि दूसरे रूप में भी भारत की घेराबंदी कर रहा है। यही वजह है कि चीन, नेपाल से अपने संबंधों में लगातार बदलाव ला रहा है। इतना ही नहीं वह बांग्‍लादेश, श्रीलंका और पाकिस्‍तान में लगातार अपने पांव जमाने में लगा हुआ है। श्रीलंका को चीन ने आर्थिक मदद के साथ-साथ वहां पर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर भी उपलब्‍ध करवाया है। हालांकि इसको लेकर उसकी मंशा हमेशा से ही सवालिया घेरे में रही है। ऐसा ही कुछ पाकिस्‍तान के साथ भी है, जहां पर सीपीईसी और ग्‍वादर पोर्ट निर्माण को लेकर चीन की दिलचस्‍पी जग-जाहिर है। पाकिस्‍तान उन देशों में शामिल है, जिस पर चीन जरूरत से ज्‍यादा मेहरबान होता दिखाई देता है। इसकी वजह भारत को घेरने के अलावा पाकिस्‍तान के संसाधनों का इस्‍तेमाल करना भी है।

बहरहाल, चीन से बढ़ते तनाव को देखते हुए अब भारत ने भी उसको घेरने की अपनी रणनीति में परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है। इसके तहत अब भारत कुछ ऐसा ही कर रहा है, जिस पर चीन काफी वक्‍त से काम करता आया है। यह रणनीति है दूसरे देशों को आर्थिक मदद देने के नाम पर अपने साथ मिलाना। इसे भारत की नई 'डॉलर डिप्‍लोमेसी' भी कहा जा सकता है। भारत ने भी अब इस पर काम करना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि चीन विभिन्‍न देशों को अपने समर्थन में लाने के लिए उन्‍हें कर्ज या आर्थिक मदद मुहैया करवाता आया है।

इसके अलावा कुछ देशों में वह इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर उपलब्‍ध कराने की नीति पर काम कर रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण श्रीलंका और पाकिस्‍तान हैं। ऐसा ही अब भारत कर रहा है। वर्ष 2003 से लेकर 2014 तक भारत ने अपने सहयोगी देशों को करीब दस बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि उपलब्‍ध करवाई थी, जोकि मौजूदा सरकार में बढ़कर करीब 24.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गई है। यहां पर ध्‍यान रखने वाली बात यह भी है कि जॉर्डन के सुल्‍तान और बेलारूस के राष्‍ट्रपति इस वर्ष भारत दौरे पर आने वाले हैं। मुमकिन है कि यह राशि और ज्‍यादा हो जाए।

भारत ने इस रणनीति पर चलते हुए रक्षा क्षेत्र में भी कुछ देशों को मदद देने की शुरुआत की है। इसके तहत वियतनाम और बांगलादेश से 500 मिलियन यूएस डॉलर, श्रीलंका और मॉरिशस से करीब 100 मिलियन यूएस डॉलर के रक्षा उपकरण के सौदे हुए हैं। इसके अलावा दक्षिण एशिया के कुछ अन्‍य देश्‍ाों, अफ्रीका और लेटिन अमेरिकी देशों से भी रक्षा उपकरणों को लेकर भारत से सौदा करने का प्रस्‍ताव मिला है। आने वाले कुछ वर्षों में भारत इस क्षेत्र में और आगे जा सकता है।

पिछले एक वर्ष के दौरान ही भारत ने करीब दस देशों में 925.94 मिलियन अमेरिकी डॉलर के 13 प्रोजेक्‍ट पर काम शुरू किया है। मौजूदा सरकार जिस विदेश नीति पर काम कर रही है, उसमें विभिन्‍न देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद के लिए ब्‍याज दर पूरी तरह से निर्धारित है। यह ब्‍याज दर वहां की प्रति-व्‍यक्ति आय और जीडीपी को देखते हुए रखी गई है। यह इंडियन डेवलेपमेंट एंड इकनॉमिक असिसटेंस स्‍कीम (आइडिया) के तहत किया जाता है। इसकी गाइडलाइन को वर्ष 2015 में दोबारा तैयार किया गया है जो 2019-20 तक काम करेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.