EXCLUSIVE: रेल हादसों पर लगेगी लगाम, 'कोच' बनेंगे सुरक्षाकवच
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बने कोचों में ट्रेन के पटरी से उतरने की आशंका एलएचबी कोचों की तुलना में 25 फीसदी बढ़ जाती है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। देश में आए दिन ट्रेन की बोगियों के पटरी से उतरने की ख़बरों के बीच एक नया खुलासा हुआ है। जिसके मुताबिक, अगर कोई ट्रेन तेज़ गति से चल रही है और उसमें इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के बने हुए कोच लगे हैं तो ट्रेन के पटरी से उतरने की आशंका एलएचबी कोचों की तुलना में 25 फीसदी ज्यादा बढ़ जाती है। भारतीय रेलवे की हालिया ऑडिट रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक इसे एक मुख्य वजह माना गया है। जिसकी वजह से रेलवे ने आईसीएफ में बनाए जाने वाले रेल कोचों के निर्माण पर रोक लगाने जा रहा है और जर्मन आधारित तकनीक लिंके हॉफ़मैन बुश (एलएचबी) से निर्मित कोच को बनाने की मंज़ूरी दी जाएगी।
फैक्ट्री कोचों की जगह इंटीग्रल कोच बेहतर
रेल एक्सपर्ट विजय दत्त ने Jagran.Com से खास बातचीत में बताया कि इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के कोचों की जगह पर एलएचबी कोचों को जगह देना एक स्वागत योग्य क़दम है। डॉक्टर अनिल काकोदकर कमिटी ने रेलवे की सुरक्षा को लेकर जो रिपोर्ट दी थी, उसमे भी इसकी चर्चा की गयी थी। उन्होंने बताया कि जर्मन तकनीक से बने कोच ट्रेन दुर्घटना होने की स्थिति में ज़्यादा सुरक्षित साबित होते हैं। रेलवे के सामने बड़ी चुनौती इसकी लागत है क्योंकि जितनी लागत में एक लिंके हॉफ़मैन बुश (एलएचबी) कोच बनता है उतनी लागत में तीन आईसीएफ कोच बन जाते हैं, लेकिन रेलवे के सामने पहली प्राथमिकता रेल यात्रियों की सुरक्षा है।
इस रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भारतीय रेल को ज़्यादा सुरक्षित बनाने के लिए उठाए गए क़दमों में सभी मानवरहित क्रॉसिंग को एक साल के अंदर समाप्त किया जाए। जहां कहीं भी रेल ट्रैक ख़राब स्थिति में है उसे जल्दी-जल्दी बदला जाए या उनकी मरम्मत की जाए। साथ ही, भारत की सभी रेल कोच फैक्ट्री में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के डिज़ाइन वाले कोच की बजाय जर्मन तकनीक वाले LHB कोच का निर्माण किया जाए।
आईसीएफ तकनीक से बने कोचों के निर्माण बंद करने का आदेश
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सभी कोच फैक्टरियों में ICF तकनीक के कोचों के निर्माण को बंद करने को कहा है और इसके बदले केवल LHB कोच में तब्दील करने को कहा है। इसके लिए एक साल का समय तय किया गया है। इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बने कोचों में कपलिंग को LHB कोच वाली तकनीक से बदला जाएगा। ऐसे कोचों की संख्या 40,000 है। एलएचबी कोच में लगाए जाने वाले एंटीक्लाइंबिंग फीचर हादसों को रोकने में मददगार होते हैं। इसमें वर्टिकल इंटरलॉक होता है जो कि कोच को पटरी से उतरने से रोकते हैं। जर्मनी आधारित तकनीक लिंके हॉफ़मैन बुश (एलएचबी) की ख़ासियत ये है कि दुर्घटना होने की स्थिति में ट्रेन के कोच एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते।
@JagranNews pic.twitter.com/3545RfYWEN
— Rajesh Mishra (@rajeshemmc) September 12, 2017
भारत में कुल कोच की संख्या- 55,000
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बने कोच की संख्या- 40,000
लिंके हॉफ़मैन बुश (एलएचबी)- 15,000
2014-16 के बीच 17 ट्रेनें पटरी से उतरीं
आकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014-16 के बीच आईसीएफ कोच वाली 17 ट्रेनें पटरी से उतरीं, जिनमें करीब 431 मौतें हुईं और करीब 866 लोग घायल हुए। इसके मुकाबले में एलएचबी कोच के पटरी से उतरने के कम मामले सामने आए और दुर्घटनाओं में करीब चार लोगों की मौत हुई, जबकि आठ लोग घायल हुए। ऐसे में आईसीएफ तकनीक आधारित कोच के भरोसे वर्ष 2024 तक ट्रेनों की औसत स्पीड 100 से 120 किमीं प्रति घंटा करना सुरक्षित नहीं होगा।
ट्रैक से उतरते कोचों से उठे रेल यात्रा पर सवाल
बीते 19 अगस्त को उत्तर प्रदेश में उत्कल एक्सप्रेस के 13 आईसीएफ कोच पटरी से उतर गए थे, जिसमें करीब 20 लोगों की मौत हो गई थी। दस दिन बात 29 अगस्त को नागपुर-मुंबई दुरंतो ट्रेन के एलएचबी कोच पटरी से उतर गए। लेकिन इस दौरान कोई मौत नहीं हुई। वर्ष 2014 में डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतरी, लेकिन जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। इस ट्रेन में भी एलएचबी कोच लगे थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।