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...अगर वो डर गया होता तो डेरा प्रमुख राम रहीम का सच शायद ही सामने आ पाता

साध्वी यौन शोषण मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम आखिर कानून की फांस में फंस गया। उसे सीबीआइ अदालत ने दोषी करार दिया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 26 Aug 2017 11:56 AM (IST)Updated: Sat, 26 Aug 2017 02:33 PM (IST)
...अगर वो डर गया होता तो डेरा प्रमुख राम रहीम का सच शायद ही सामने आ पाता

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले के बाद हरियाणा से लेकर पंजाब तक डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के समर्थकों ने जिस अंदाज में हिंसा का नंगा नाच किया वो कई सवाल खड़े करता है। सवाल नंबर एक कि क्या कोई आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायियों को तांडव मचाने की सीख देता है। सवाल नंबर दो कि क्या गुरमीत और उनके समर्थक विशुद्ध तौर पर गुंडे हैं। डेरा समर्थकों के उत्पात से एक बात साफ है कि इहलोक से ज्यादा परलोक सुधारने की राह बताने वाले गुरमीत राम रहीम न केवल संत के चोले में गुंडा हैं, बल्कि समर्थकों के रूप में गुंडों को प्रश्रय दे रहा था। साध्वी यौन शोषण मामले में राम रहीम अब दोषी है। लेकिन ये जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर वो कौन शख्स है जिसकी अकथ और अथक कोशिशों के बाद रॉक स्टार बाबा राम रहीम अब सलाखों के पीछे है। हम आप को सीबीआइ के अवकाश प्राप्त डीआइजी एम नरायनन के बारे में बताएंगे जिसने राजनीतिक और रसूखदारों के सामने झुकने से इनकार कर दिया था।

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इस केस से जुड़ी तमाम सनसनीखेज जानकारियां सामने आ रही हैं। सीबीआइ के जिस अधिकारी ने डेरा प्रमुख के काले कारनामों से पर्दा उठाया, उनके ऊपर केस को बंद करने का जबरदस्त दबाव था। राम रहीम के खिलाफ जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ के डीआइजी मुलिंजा नरायणन को 2007 में सौंपी गई थी। नरायणन को जांच सौंपने के बाद डेरा के समर्थकों के साथ-साथ उनके वरिष्ठ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों की तरफ से केस को बंद करने का दबाव आने लगा। सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले पर खुशी जताते हुए अवकाश प्राप्त डीआइजी मुलिंजा नरायणन ने कहा कि वो बहुत खुश हैं कि उनके द्वारा की गई जांच अंतिम फैसले पर पहुंच चुकी है।

केस की जटिलता के बारे में नरायणन कहते हैं कि जिस वक्त उनके सामने ये मामला सामने आया, उसी दिन उनके एक वरिष्ठ अधिकारी उनके कमरे में आए और कहा कि ये केस आपको बंद करने के लिए दिया जा रहा है। लेकिन उन्होंने कहा कि हाइकोर्ट के आदेश पर ये मामला उनके हवाले है, लिहाजा वो जांच बंद नहीं करेंगे। गुरमीत राम रहीम के खिलाफ 2002 में एफआइआर दर्ज हुई थी। लेकिन पांच साल तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। पांच साल तक जब ये केस ऐसे ही लटका रहा तो पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट ने इस मामले को सीबीआइ के हवाले करने को कहा, ताकि कोई जांच को प्रभावित न कर सके। नरायणन कहते हैं कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी को साफ तौर पर कहा कि वो जांच को बंद नहीं करेंगे और इसके साथ साफ किया कि वो उनका बेजा आदेश भी नहीं मानेंगे।

डीआइजी एम नरायणन ने बताया कि न केवल सीनियर अधिकारी बल्कि हरियाणा के एमपी और वरिष्ठ राजनेता भी इस मामले में बेजा दबाव बनाते रहे। लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि हाइकोर्ट के आदेश पर जांच की जा रही है लिहाजा उनके ऊपर दबाव बनाने का कोई मतलब नहीं है। डेरा के समर्थकों ने किस तरह से जांच को प्रभावित करने की कोशिश की, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने नरायणन के आवास को खोजने की कोशिश की। इसके अलावा किसी न किसी रूप में वो सीबीआइ के डीआइजी (जांच अधिकारी) को लगातार धमकियां देते रहे।

नरायणन का कहना है कि यौन शोषण के मामले में ये पहला ऐसा मामला था, जिसमें पीड़िता सामने नहीं आई थी, उसके पत्र के आधार पर मुश्किल जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही थी। पीड़ित के बारे में जानकारी हासिल कर पाना बेहद ही मुश्किल था। लगातार कोशिश के बाद चिट्ठी के बारे में ये जानकारी मिली कि वो पंजाब के होशियारपुर से लिखी गई थी। लेकिन चिट्ठी के पीछे कौन शख्स था उसके बारे में जानकारी नहीं मिल सकी। बहुत ही कठिनाई के बाद पीड़ित तक पहुंचा जा सका। जब इन कठिन हालात में पीड़ित तक पहुंचने में कामयाबी मिली तो पीड़ित और उसके परिवार को समझाना बहुत मुश्किल साबित हुआ। लेकिन लगातार कोशिश के बाद पीड़ित और उसके परिवार को मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में कामयाबी मिली।

बाधा दर बाधा पार करने के बाद डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से सवाल-जवाब करना मुश्किल था। लगातार प्रयासों के बाद राम रहीम ने पूछताछ के लिए सिर्फ डेढ़ घंटे का वक्त दिया। लेकिन उनसे करीब ढाई घंटे तक पूछताछ की गई। वो पूछताछ के दौरान खड़े रहे। जवाब देने के दौरान वो नम्र रहे, लेकिन सभी आरोपों को नकार दिया।
 


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