सिक्किम में चीन को आंख दिखानी पड़ सकती है भारी
सिक्किम से लगती चीन की सीमा पर लगातार तनाव बना हुआ है। इसको लेकर भारत पूरी तरह से मुस्तैद है। ...और पढ़ें

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। सिक्किम से लगते डोकलांग क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी और सीनाजोरी लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प इसका ताजा उदाहरण है। इसके बाद भारत ने सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राई जंक्शन पर करीब तीन हजार सैनित तैनात कर दिए हैं। वहीं चीन लगातार भारत को आंखें दिखा रहा है और '1962 युद्ध' को लेकर धमकी भी दे रहा है। हालांकि यह बात सही है कि अब 1962 की स्थिति भारत के साथ नहीं है, अब 2017 है आैर भारत के पास भी घातक हथियार हैं। इसका जिक्र खुद रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी कर चुके हैं।
अब 1962 नहीं 2017 है
पूर्व मेजर जनरल पीके सहगल ने इस बाबत बात करते हुए कहा कि चीन 1962 की ही गलतफहमी पाले हुए है। लेकिन अब 2017 है। भारत आज हर तरह से मजबूत है और अपनी भूमि की रक्षा करने में पूरी तरह से काबिल भी है। उन्होंने कहा कि चीन की नजर इस इलाके पर काफी पहले से बनी हुई है। यहां का विवाद 1967 से बना हुआ है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कई बार बातचीत भी हुई है।
बैकफुट पर चीन
सहगल का मानना है कि चीन इस मुद्दे पर पूरी तरह से बैकफुट पर आ चुका है। इससे पहले 1967, 1986 में भी उसने ऐसी ही हरकत की थी। उस वक्त भी चीन को मुंह की खानी पड़ी थी। यही हाल उसका अब भी होगा, यदि उसने इस तरह आंख उठाई तो। दैनिक जागरण की स्पेशल टीम से बात करते हुए पूर्व मेजर जनरल सहगल ने बताया कि 2012 में भारत-चीन-भूटान के बीच एक समझौता हुआ था कि डोका ला इलाके में किसी तरह का सड़क निर्माण नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद भी वह इसका निर्माण कर रहा है। उनके मुताबिक भूटान के साथ भारत सरकार का यह भी समझौता है कि किसी भी संकट के समय भूटान की रक्षा के लिए भारत तत्पर रहेगा।
काफी संवेदनशील है डोका ला इलाका
भारतीय सेना डोका ला इलाके को लेकर काफी संवेदनशील है, विशेषकर जोम्पलरी रिज को लेकर। इसकी वजह यह है कि यह रणनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर के नजदीक है। भारत ने सिलीगुड़ी कॉरीडोर में अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत किया है, ताकि चीन के प्रवेश को रोका जा सके। यह संकरी पट्टी पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ती है। यहां पर चीन की दखलअंदाजी उसकी बड़ी साजिश का हिस्सा है। वह इस विवादित क्षेत्र में सड़क निर्माण कर इसको सिलीगुड़ी तक ले जाने की मंशा रखता है।
चीन का शिंकिंगटैन टैंक
भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन ने तिब्बत में एक टैंक का परीक्षण किया है। चीन का यह टैंक 35 टन वजनी है और यह कई अत्याधुनिक हथियारों से लैस है। चीन ने इस टैंक को शिंकिंगटैन नाम दिया है। चीन का यह टैंक 105-मिलीमीटर टैंक गन, 35-मिलीमीटर ग्रेनेड लॉन्चर और 12.7-मिलीमीटर की मशीन गन से लैस है। इस टैंक में 8V150 इंजन लगाया गया है, जिससे 1,000 हॉर्सपावर की ऊर्जा पैदा होती है।
चीनी सीमा पर तैनात टी-90 टैंक
उत्तरी सिक्किम में चीन से लगती सीमा पर भारत ने अपने टी-90 टैंकों को तैनात किया हुआ है। लेकिन पूर्वी सिक्किम में इस तरह की कोई टैंक की तैनाती नहीं की गई है। टी-90 मेन बैटल टैंक हैं। टी-90 टैंक रूस में निर्मित थर्ड जनरेशन के बैटल टैंक है जो कि टी 72 बी और टी 80 यू का अपग्रेड मॉडल है। पहले इसका नाम भी टी 72 बीयू ही था, लेकिन बाद में इसको बदलकर टी-90 रख दिया गया। इसमें 125 एमएम की 2ए46 मेन गन लगी है जो एक बार में 43 राउंड फायर कर सकती है। इस टैंक के करीब साठ फीसद कलपुर्जे भी भारत में ही बनाए जाते हैं। लेकिन भारत के पास जितने टैंक हैं, उनमें से आधे टैंक ही रात में युद्ध कर सकते हैं। जबकि पाकिस्तान के 80 प्रतिशत और चीन के 100 प्रतिशत टैंक रात में युद्ध करने के सभी उपकरणों से लैस हैं।
नाइट विजन तकनीक से लैस होंगे टैंक
इसके लिए भारतीय सेना ने टी-90 सहित अपने सभी टैंकों को रात के समय युद्ध करने की तकनीक और उपकरणों से लैस करना शुरू कर दिया है। कुछ वर्षों में सभी टैंकों में यह तकनीक लगा दी जाएगी। वहीं टी 90 टैंकों के भारत में निर्माण की समयसीमा या लाइसेंस की अवधि को भी रूसी कंपनी ने आगे बढ़ा दिया है। भारत की योजना वर्ष 2020 तक टी 90 टैंकों से सुसज्जित 21 टैंक रेजिमेंट तैयार करने की है। इसको लेकर 2013 में 235 टैंकों के निर्माण की भी मंजूरी दी जा चुकी है।
भारत में ही बनेंगे मैंगो गोले
इतना ही नहीं इन टैंकों में इस्तेमाल होने वाला गोला-बारूद भी भारत में ही तैयार करने के लिए भारत को रूसी कंपनी की तरफ से सभी तकनीकी सुविधा दी जा चुकी है। 125 मिलीमीटर तोपों में मैंगो गोलों का इस्तेमाल किया जाता है। इनका उत्पादन सोवियत संघ में सन 1983 में शुरू किया गया था। भारत और रूस के बीच इन ’मैंगो’ गोलों के उत्पादन का अनुबन्ध 2014 में हुआ था। पिछले वर्ष नवंबर में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर की अध्यक्षता में हुई भारतीय रक्षा खरीद परिषद की बैठक में करीब 2 अरब 10 करोड़ डॉलर में रूस से 464 टी-90 टैंकों की खरीद के सौदे को मंजूरी दी गई थी।
काफी टैंक हो चुके हैं पुराने
दरअसल, भारतीय सेना के पास ढाई हजार टी-72 टैंक पुराने हो चुके हैं, जिन्हें 2020 तक बदलने की योजना है। वहीं दूसरी ओर भारत में निर्मित टैंक अर्जुन का काफी वजन होने की वजह से इसको हर जगह तैनात करना मुमकिन नहीं है। लिहाजा इसलिए भी टी 90 टैंकों पर भारतीय सेना निर्भर है। भारत सन 2020 तक और 1600 टी-90 टैंक खरीदना चाहता है, जिन्हें वह पाकिस्तान के साथ लगने वाली अपनी पश्चिमी सीमा पर तैनात करेगा।
टी 90 टैंक को लेकर रूस से करार
रूस और भारत के बीच टी-90एस टैंक की खरीद-फरोख्त का पहला अनुबंध 2001 में हुआ था। उस अनुबन्ध के तहत 'उरालवगोनज़वोद' नामक रूसी कंपनी ने भारत को 124 तैयार टैंक भेजे थे और 186 टैंक बनाने के लिए टैंकों के कल-पुर्जों की किट भेजी थी। इसके बाद 2006 में रूस ने भारत से 1000 टी-90एस टैंकों की सप्लाई करने के एक और डील साइन की गई थी। जिसके बाद रूस ने 470 तैयार टैंक भारत को दिए थे और अन्य टैंकों को भारत में असेंबल किया गया था।
टी-90 टैंक की खासियत
वजन 46 टन
लंबाई 9.63 मीट र (31 फीट 7 इंच)
चौड़ाई 3.78 मीटर (12 फीट 5 इंच)
ऊंचाई 2.22 मीटर (7 फीट 3 इंच)
क्रू मैंबर की जगह 3
इसमें 840 हॉर्सपावर का इंजन लगा है।
इसकी अधिकतम स्पीड 60 किमी प्रति घंटा (37 मील प्रति घंटा )है।
ये भी करते हैं टी 90 टैंक का इस्तेमाल
अलजीरिया, अर्मेनिया, अजरबेजान, भारत, रूस, सीरिया, तुर्कमेनिस्तान, यूगांडा

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