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    जागरण परिसंवाद

    By Edited By:
    Updated: Thu, 27 Mar 2014 11:25 AM (IST)

    आरटीआइ और राजनीतिक दल सूचना का अधिकार कानून ने आम आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शानदार हथियार दे दिया है। हालांकि, इससे राजनीतिक दलों और नौकरशाहों के लिए मुसीबतें बढ़ गई हैं। सीआइसी के फैसले के बाद भी बड़े राजनीतिक दल खुद पर इस कानून को लागू करने से पीछे हट रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों से शुचिता की

    आरटीआइ और राजनीतिक दल

    सूचना का अधिकार कानून ने आम आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शानदार हथियार दे दिया है। हालांकि, इससे राजनीतिक दलों और नौकरशाहों के लिए मुसीबतें बढ़ गई हैं। सीआइसी के फैसले के बाद भी बड़े राजनीतिक दल खुद पर इस कानून को लागू करने से पीछे हट रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों से शुचिता की उम्मीद बेमानी है।

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    हम जो भी शासन प्रणाली स्थापित करें वह हमारी जनता की प्रकृति के अनुरूप हो और उन्हें स्वीकार्य हो। संसदीय संस्थाओं सहित हमारी सभी संस्थाएं अंतत: देशवासियों के चरित्र, विचारों और लक्ष्यों की अभिव्यक्ति होती हैं। यदि वे लोगों के चरित्र और विचारों के अनुरूप हों तो मजबूत और स्थाई होती हैं अन्यथा वह विखंडित हो सकती हैं।

    -पंडित जवाहरलाल नेहरू

    लोकतंत्र के लिए व्यक्ति को संविधान के उपबंधों में कार्य संचालन हेतु बनाए गए नियमों के अनुपालन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि इसके सदस्यों में लोकतंत्र की सच्ची भावना भी विकसित करनी चाहिए। यदि इस मौलिक तथ्य को ध्यान में रखा जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि यद्यपि मुद्दों पर निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाएगा, फिर भी यदि संसदीय सरकार का कार्य केवल उपस्थित सदस्यों की संख्या और उनके मतों की गिनती तक ही सीमित रखा गया तो इसका चलना मुश्किल होगा।

    -गणेश वासुदेव

    मावलंकर (पहले लोकसभा अध्यक्ष)

    वार्ताकार

    - अफरोज आलम साहिल- सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

    - अशोक अग्रवाल- वरिष्ठ वकील, दिल्ली उच्च न्यायालय

    - देवाशीष भट्टाचार्य- सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

    - नरेन्द्र शर्मा- सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

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