दोस्तों के दोस्त थे जगत कृपालु जी महाराज
ज्ञान का सागर लिए जगत गुरू कृपालु महाराज दोस्तों के दोस्त थे। जब भी वे मनगढ़ आते थे तो वह एक बार जरूर अपने बचपन के साथियों के साथ ही आस-पास के लोगों को यह एहसास दिला देते थे कि वह मनगढ़ में है।
कुंडा, प्रतापगढ़। ज्ञान का सागर लिए जगत गुरु कृपालु महाराज दोस्तों के दोस्त थे। जब भी वे मनगढ़ आते थे तो वह एक बार जरूर अपने बचपन के साथियों के साथ ही आस-पास के लोगों को यह एहसास दिला देते थे कि वह मनगढ़ में है।
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उनके बचपन के साथी रमेश बहादुर सिंह ने बताया कि जगत गुरु बचपन से ही उदार व दयालु किस्म के व्यक्ति थे। उनके ज्ञान व सवाल के सामने विद्यालय के शिक्षक से लेकर छात्र तक नहीं टिक पाते थे। उन्होंने बताया कि वह कक्षा चार की शिक्षा कृपालु जी के साथ में ग्रहण किया था। उनका निधन होने से उन्हें गहरा सदमा लगा है। वह बुधवार भक्तिधाम पहुंचकर अपने बाल सखा का हाल मंदिर ट्रस्ट से जानने का प्रयास कर रहे थे।
इसी प्रकार 95 वर्षीय राम शंकर शुक्ल ने बताया कि वह कृपालु जी महाराज के साथ मनगढ़ स्थित मिडिल स्कूल में कक्षा सात तक की शिक्षा अर्जित किए। इसके बाद कृपालु जी अपनी आगे की शिक्षा के लिए महू [मध्यप्रदेश] चले गए। जबकि वे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए जनपद मुख्यालय चले गए। इसी प्रकार महाराज जी के भतीजे इंद्र नारायण का कहना था कि वे बहुत ही उदार प्रवृत्तिके थे। उनसे किसी का दुख नहीं देखा जाता था।
कृपालुजी महाराज के पास मदद के लिए जो भी आया, उसे कभी निराश नहीं होना पड़ा। छंगूलाल यादव का कहना था कि वह महाराज के बचपन के साथी है। उन्होंने महाराज जी के साथ कबड्डी, खो खो भी खेला है। इन दिनों पारिवारिक स्थिति ठीक न होने पर महाराज जी छंगू की मदद कर उसका इलाज भी कराते थे, छंगूलाल अब पैर से विकलांग हो चुका है। बद्री यादव एवं द्वारिका यादव का कहना था कि महराज जी के घायल होने के बाद से पूरे यादव बस्ती में मातम छाया हुआ है। वह दोस्त हो या फिर दुखिया, जो भी उनके आगे पड़ता था और अपना दुख बता देता था, वह सबकी मदद करते थे। महाराज जी ने कभी भी किसी को अपने सामने से निराश नहीं लौटने दिया।
गृहस्थ जीवन में रहकर बने थे जगत गुरू
शास्त्रों में भी कहा गया कि गृहस्थ जीवन में रखकर जो भी भगवान को सेवा मन से याद करता है उसे कीर्ति यश जरूर प्राप्त होता है। उनमें से एक है जगत गुरू कृपालु जी महाराज, जिन्होंने मनगढ़ में अपने ननिहाल में पत्नी पद्मा देवी के साथ गृहस्थ जीवन में रखकर राधा कृष्ण का स्मरण किया और देश विदेश में अपने दिव्य का प्रकाश फैलाकर यश कीर्ति हासिल की।
कृपालु जी महाराज के दो बेटे घनश्याम त्रिपाठी व बालकृष्ण त्रिपाठी है। इसके साथ तीन बेटियों में विशाषा त्रिपाठी, सुश्री श्याम त्रिपाठी एवं सुश्री कृष्णा त्रिपाठी है। इसमें कृपालु महाराज ने दोनों बेटों की शादी कर दी, जो इस समय दिल्ली में रहकर ट्रस्ट का काम देखते है।
वही बेटियों ने कृपालुजी महाराज के साथ रहकर उनकी राधा कृष्ण की भक्ति को देखते हुए शादी से इंकार कर दिया और महाराज की सेवा में लगी रही। जो अब महाराज जी के ज्ञान को विदेश के साथ ही देश के हर कोने में लोगों तक पहुंचा रही है।
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