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रोटी तो दूर, कफन भी मयस्सर नहीं

बेबसी का इससे अधिक आलम क्या हो सकता है कि पैसे बैंक में हैं लेकिन उसे निकालने का कोई रास्ता नहीं बचा। शाखाएं बंद हैं और एटीएम ठप। जरूरतमंद बहुत ज्यादा हैं और उपभोक्ता वस्तुएं कम हो गई हैं, लिहाजा कीमतें आसमान छू रही हैं। आपदा की इस घड़ी में

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2015 12:36 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2015 08:07 AM (IST)
रोटी तो दूर, कफन भी मयस्सर नहीं

काठमांडू [संजय सिंह]। बेबसी का इससे अधिक आलम क्या हो सकता है कि पैसे बैंक में हैं लेकिन उसे निकालने का कोई रास्ता नहीं बचा। शाखाएं बंद हैं और एटीएम ठप। जरूरतमंद बहुत ज्यादा हैं और उपभोक्ता वस्तुएं कम हो गई हैं, लिहाजा कीमतें आसमान छू रही हैं। आपदा की इस घड़ी में नेपाल खासकर काठमांडू के लोगों को रोटी मिलना तो दूर लाशों को ढकने के लिए कफन तक नहीं है। लोगों को पानी के लिए भी हलकान होना पड़ रहा है।

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नेपाल और बिहार के बीच रोटी-बेटी का भी रिश्ता है। इस कारण सीमावर्ती इलाके के लोगों को नेपाल की परेशानियों से अधिक पीड़ा हो रही है। पानी की 10 रुपये की बोतल 60 रुपये में और पांच रुपये के बिस्किट के पैकेट 40 रुपये में बिक रहे हैं। भारत व स्थानीय सरकार से मिल रही राहत सामग्री ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। विभिन्न जगहों पर खाने के लिए लोग आपस में लड़ पड़ते हैं। यहां बड़ी परेशानी लाशों के अंबार के अंतिम संस्कार में हो रही है। लोगों को लकड़ी तक नहीं मिल पा रही है।

भूकंप को लेकर अफवाहों पर न दें ध्यान

काठमांडू की ममता ग‌र्ल्स हॉस्टल में रहने वाली सुमन व सरिता यादव का कहना है कि छात्रावास प्रबंधन द्वारा किसी तरह से एक समय का भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। दिन-रात में मात्र एक बार खाकर कई लोग रह रहे हैं। मधेशी राइट फोरम की बिंदु यादव का कहना है कि प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। सामग्री रहते हुए भी लोगों तक राहत नहीं पहुंच रही।

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जहां थे, वहीं मौत से सामना

वीरगंज (नेपाल) [संजय उपाध्याय]। धरती डोल रही थी। इमारतें भरभरा कर गिर रहीं थीं। तंग गलियों से भागने के दौरान कोई मकान के मलबे में दबा जा रहा था तो कोई फट रही धरती में समा गया। हम पर मालिक का करम रहा सो जान बच गई, वरना..। बदहवाश चेहरे व आंखों में आंसू लिए कुलेश्वर ने यह मंजर बयां किया तो रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बताया कि इस इलाके में सबसे ज्यादा बिहार के लोग रहते हैं। त्रासदी के बाद हर पल मौत जैसा गुजर रहा है। फल का कारोबार कर रहे महावीर व राजेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, मौत कितनी भयावह होती है, इसे शनिवार को देखा।

रविवार भी कुछ वैसा ही था। जलजले से लेकर अब तक का हर पल मौत जैसा लगता है। काठमांडू में बढ़ई-मिस्त्री का काम करने वाले सेवराहा, हरिसिद्धि के राजकिशोर ठाकुर, राजेश ठाकुर, उमेश ठाकुर आदि ने कहा कि जलजले के वक्त जिंदगी ईश्वर के हवाले कर दी थी और उन्होंने बचा लिया। नेपाल के हेथौड़ा में काम करने वाले नारायण शर्मा, अशर्फी शर्मा, उपेंद्र शर्मा, संतोष ने तो इसे जिंदगी से जंग बताया। कहा, जान बच गई तो बस एक ही चाह है कि परिजनों के पास चले जाएं। नेपाल के बालाजी स्थित आर्मी कैंप में भी खौफ का आलम दिखा। कैंप में रुके घोड़ासहन के अताउल्लाह व फुलवार गम्हरिया निवासी असलम ने कहा कि वहां जब धरती फटने लगी तो आर्मी कैंप में आसरा लिया, लेकिन बारिश शुरू होते ही वहां भी जवान आ गए।

कठिनाई होने पर उन्होंने काफी बुरा बर्ताव किया। स्वदेश लौटने की कोशिश की तो किराये के चक्कर में फंस गए। 5 से 10 गुणा अधिक पैसे लिए जा रहे थे। पास में जो कुछ बचा था, उसे किराये में खर्च कर दिया। बल्लखू से वीरगंज तक के लिए एक सूमो ने 30 हजार रुपये लिए, जिसमें नौ लोग आए।

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