आर्थिक रिश्तों की नई इबारत लिखने की होगी कोशिश
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। चीनी प्रधानमंत्री ली कछयांग की रविवार से शुरू हो रही भारत यात्रा के दौरान भले ही हाल के सीमा विवाद का मामला ज्यादा गंभीरता से उठे, लेकिन द्विपक्षीय कारोबारी रिश्ते से जुड़े कई मुद्दे भी काफी जोर-शोर से रखे जाएंगे।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। चीनी प्रधानमंत्री ली कछयांग की रविवार से शुरू हो रही भारत यात्रा के दौरान भले ही हाल के सीमा विवाद का मामला ज्यादा गंभीरता से उठे, लेकिन द्विपक्षीय कारोबारी रिश्ते से जुड़े कई मुद्दे भी काफी जोर-शोर से रखे जाएंगे।
चीनी प्रधानमंत्री के साथ एक बहुत बड़ा व्यापारिक दल भारत की यात्रा पर आ रहा है। इससे पता चलता है कि चीन तमाम राजनीतिक विवादों के बावजूद द्विपक्षीय कारोबार को लेकर कोई कोताही नहीं बरतना चाहता।
जानकारों के मुताबिक कछयांग की यात्रा के दौरान भारत बढ़ते व्यापार असंतुलन को खत्म करने को लेकर चीन की सरकार की मदद चाहेगा।
वहीं, चीन के प्रतिनिधिमंडल की कोशिश होगी कि भारत सरकार की तरफ से उनकी कंपनियों, खास तौर पर वहां की दूरसंचार कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंध में नरमी लाई जाए। उम्मीद है कि दोनों देश अपने-अपने मुद्दों पर खूब मोलभाव करेंगे। इस दौरान दोनों देश वर्ष 2015 के दौरान 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के लक्ष्य को हासिल करने को लेकर भी चर्चा करेंगे।
विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि हाल के दिनों में सीमा पर रहे तनाव के बावजूद भारत और चीन का द्विपक्षीय काराबोर इतना ज्यादा हो चुका है कि जब भी दोनों देश के नेता मिलेंगे तो इस पर बात होनी ही होनी है। चीन, भारत का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी देश हो चुका है।
दूसरी तरफ ऐसे समय जब चीन की आर्थिक विकास दर भी घट रहा है और उसकी अर्थव्यवस्था के समक्ष कई तरह की चुनौतियां पेश आ रही हैं, तब चीन के लिए भारत के साथ कारोबार बेहद महत्वपूर्ण हो चुका है। इसलिए रविवार शाम को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कछयांग के बीच उच्चस्तरीय बातचीत होगी तो कारोबार का मुद्दा अहम रहेगा।
वर्ष 2012-13 में दोनों देशों का द्विपक्षीय कारोबार का आकार लगभग 66 अरब डॉलर का था। यह वर्ष 2011-12 में दर्ज 71 अरब डालर से कम है, लेकिन यह कमी वैश्विक व्यापार में मंदी से हुई। भारत की तरफ से व्यापार असंतुलन का मुद्दा उठाया जाएगा। चीन भारत से होने वाले आयात के मुकाबले भारत को 29 अरब डॉलर का ज्यादा निर्यात करता है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की बैठक में चीनी प्रधानमंत्री के साथ संक्षिप्त बातचीत में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन के पक्ष में बढ़ते व्यापार संतुलन का मुद्दा उठाया था। चीन के वाणिज्य मंत्री ने भी हाल ही में यह कहा था कि वह भारत के साथ व्यापार संतुलन को बेहतर करने के लिए तैयार हैं। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि कछयांग की यात्रा के दौरान दोनों देश भारत से चीन को होने वाले निर्यात को बढ़ाने का कोई रास्ता निकालेंगे।
पड़ोसी देश की तरफ से यह संकेत आया है कि वह चीनी कंपनियों की तरफ से भारत को परियोजना निर्यात के रास्ते में आने वाली अड़चनों का मुद्दा जोर-शोर से उठाएगा।
हाल के वर्षो में चीन की कंपनियों को भारत से लगभग 37 अरब डॉलर के ऑर्डर मिले हैं। ये ऑर्डर मुख्य तौर पर बिजली, दूरसंचार और अन्य ढांचागत क्षेत्रों के हैं। चीन का कहना है कि मंजूरी देने के स्तर पर चीन की कंपनियों के साथ भेदभाव किया जाता है। हाल ही में चीन की बिजली उपकरण कंपनियों पर ज्यादा आयात शुल्क लगाने का उदाहरण दिया जा रहा है।
कारोबारी रिश्तों की पेंच
1. चीन के पक्ष में बढ़ता व्यापार घाटा
2. कोशिशों के बावजूद भारत चीन को निर्यात बढ़ाने में असफल
3. चीन की टेलीकॉम कंपनियों को भारत में आ रही है मुश्किल
4. भारत में परियोजना पाने वाली चीनी कंपनियों को भी दिक्कत
5. चीन की कंपनियों को चीनी मुद्रा में निवेश में न हो परेशानी
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