पढ़ें पड़ोसी देशों के लिए कैसे मदद करेगा दक्षिण-पूर्व एशिया सैटेलाइट
दक्षिण एशियाई देशों के लिए GSAT-F09 की लॉन्चिंग काफी अहम है। यह न सिर्फ प्रसारण के क्षेत्र में अन्य देशों की मदद करेगा बल्कि इसके जरिए इस क्षेत्र के ...और पढ़ें

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। भारत ने 1960 से लेकर अब तक अंतरिक्ष में जो सफल उड़ान भरी है आज उसमें एक कड़ी और जुड़ गई। दुनिया में एक मिशन के तहत सबसे अधिक सैटेलाइट्स की सफल लॉन्चिंग के बाद भारत दक्षिण एशियाई देशों के लिए GSAT-9 को अंतरिक्ष में भेज दिया। इसे सतीश धवन स्पेस स्टेशन से आज शाम करीब 4:57 बजे इसको लॉन्च किया गया। इस क्षेत्र के देशों के लिए यह काफी अहम उपहार है। बदलते दौर में अपने पड़ोसियों से संबंधों को मजबूत करने के लिए भी यह सैटेलाइट काफी अहम भूमिका निभाएगा। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका के लिए भारत का यह उपहार कई मायनों में अहम इसलिए भी है क्योंकि इन देशों का अपना या तो कोई सैटेलाइट है ही नहीं या फिर उससे मिलने वाली सेवाएं इतनी खास नहीं हैं।
दक्षिण एशिया के देश मुफ्त ले सकेंगे लाभ
इस सैटेलाइट लॉन्चिंग से जुड़ी एक अहम बात यह भी है कि इस सैटेलाइट की सेवाओं के लिए भारत ने किसी भी अन्य देश से कोई राशि नहीं ली है। इसका अर्थ है कि इस क्षेत्र के सभी देश इस सैटेलाइट से मिलने वाली जानकारियों को अपने हित के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे। हालांकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने इसमें भागीदार नहीं है।
हॉट लाइन की भी होगी सुविधा
अपनी 11वीं उड़ान के ज़रिए जीएसएलवी रॉकेट एक खास उपग्रह साउथ एशिया सैटलाइट को अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में स्थापित करेग। यह नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा। इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे। किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी। इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा। साल के अंत तक बांग्लादेश अपना खुद का बंगबंधू -1 कम्यूनिकेशन सैटेलाइट छोड़ने की योजना बना रहा है। वहीं श्री लंका भी 2012 में चीन की मदद से अपना कम्यूनिकेशन सैटेलाइट सुप्रीम सेट लॉन्च कर चुका है।
12 वर्षों तक सेवाएं देगी सैटेलाइट
GSAT-F09 एक जियोस्टेशनरी कम्यूनिकेशन सैटेलाइट है, जो केयू बैंड के तहत सभी जानकारियां मुहैया करवाएगा। इसका वजन करीब 2230 किग्रा है। यह अंतरिक्ष में करीब 12 वर्षों तक लगातार काम कर सकेगा। इस सैटेलाइट की लागत करीब 235 करोड़ रुपये है जबकि सैटेलाइट के लॉन्च समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च करेगा।
भारत का यह सबसे विश्वसनीय लॉन्च व्हीकल
GSLV या जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के जरिए करीब 5500 किग्रा वजनी सैटेलाइट को लॉन्च किया जा सकता है। भारत का यह सबसे विश्वसनीय लॉन्च व्हीकल है। 2001 के बाद से ही भारत इसके जरिए सफलता की कई सीढि़यां अब तक चढ़ चुका है।

अमेरिकी प्रतिबंध और रूस की न का जवाब है GSLV
GSLV में क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल किया जाता है। 90 के दशक में अमेरिकी प्रतिबंध के मद्देनजर रूस ने भारत को क्रायोजनिक इंजन देने से इंकार कर दिया था। यह वो वक्त था जब भारत अंतरिक्ष में अपने कदम बढ़ा रहा था। भारत के लिए रूस का इंकार करना बड़ा झटका था। लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने इसको चुनौती के रूप में लिया और स्वदेशी तकनीक पर आधारित क्रायाजनिक इंजन बनाने में सफलता हासिल की थी। दो दशकों की कड़ी मेहनत के बाद इसका सफल परीक्षण वर्ष 2015 में किया गया। इसका ही इस्तेमाल अब जीएसएलवी में किया जाता है।
लिक्विड फ्यूल का इस्तेमाल
दरअसल, क्रायोजनिक इंजन एक लिक्विड फ्यूल के तौर पर कुछ खास गैसों का मिश्रण होता है जो रॉकेट को तेजी से अंतरिक्ष की ओर ले जाने में सहायक होता है। इस दौरान इसके तापमान का खास ध्यान रखा जाता है। अमेरिका द्वारा भारत को सुपर कंप्यूटर देने से इंकार करने के बाद भारत ने स्वदेशी 'परम' बनाकर उसको करारा जवाब दिया था।

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