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    अग्नि-5 सफल, मिसाइल सुपरपावर बना भारत

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    Updated: Fri, 20 Apr 2012 02:47 AM (IST)

    ब्रांड इंडिया का लेटेस्ट प्रोडक्ट हाजिर है। अग्नि-5 के रूप में। इसके सफल परीक्षण ने दुश्मनों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। हम पर हमला करने से पहले उन्हें सौ बार सोचना होगा। अब आधी दुनिया हमारी मिसाइलों की जद में आ गई है। हम उन देशों के प्रतिष्ठित क्लब में दाखिल हो गए हैं, जिनके पास पांच हजार किमी से अधिक दूरी तक मार करने वाले अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल [आइसीबीएम] हैं।

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। ब्रांड इंडिया का लेटेस्ट प्रोडक्ट हाजिर है। अग्नि-5 के रूप में। इसके सफल परीक्षण ने दुश्मनों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। हम पर हमला करने से पहले उन्हें सौ बार सोचना होगा। अब आधी दुनिया हमारी मिसाइलों की जद में आ गई है। हम उन देशों के प्रतिष्ठित क्लब में दाखिल हो गए हैं, जिनके पास पांच हजार किमी से अधिक दूरी तक मार करने वाले अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल [आइसीबीएम] हैं। ओड़िशा के व्हीलर द्वीप से गुरुवार को सुबह आठ बजकर सात मिनट पर इसे छोड़ा गया। संयोग से 1975 में 19 अप्रैल को ही भारत ने आर्यभट्ट उपग्रह को लांच कर अंतरिक्ष में अपनी सफलता का सितारा टांका था।

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    अपने पीछे कामयाबी की नारंगी रोशनी और उल्लास की सफेद लकीर छोड़ती हुई निकली इस मिसाइल ने करीब 15 मिनट में बंगाल की खाड़ी में अपने निर्धारित लक्ष्य को भेदा। तीसरे चरण में वातावरण में पुन: दाखिल होने के बाद आग के गोले में तब्दील इस मिसाइल ने सात हजार किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से लक्ष्य को ध्वस्त किया।

    इसने देश को नाभिकीय बम के साथ सुदूर तक सटीक वार करने वाली अति जटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच भी दिया है। इसके जरिए वह अपने किसी भी हमलावर को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। ध्यान रहे कि भारत ने वादा किया हुआ है कि वो पहला नाभिकीय वार नहीं करेगा, लेकिन प्रहार हुआ तो पूरी ताकत के साथ जवाब देगा।

    अग्नि-5 ने सौ फीसद सफलता के साथ अपने लक्ष्य को भेदा। सतह से सतह पर मार करने वाली यह मिसाइल चीन समेत पूरे एशिया, ज्यादातर अफ्रीका व आधे यूरोप तथा अंडमान से छोड़ने पर ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच सकती है और एक टन तक के परमाणु बम गिरा सकती है। दो और परीक्षणों के बाद इसे 2014-15 तक सेना के हवाले कर दिया जाएगा।

    अग्नि-5 की सफलता ने देश के लिए और लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास का दरवाजा भी खोल दिया है। अग्नि-5 की रेंज को जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सकता है। भारतीय मिसाइल बेड़े में यह पहला प्रक्षेपास्त्र है जो भारत को जरूरत पड़ने पर चीन के सभी हिस्सों तक मार करने की क्षमता देता है। हालांकि अग्नि-5 अभी चीन की डोंगफेंग-31 का छोटा जवाब ही है क्योंकि यह चीनी मिसाइल दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रहार कर सकती है। महत्वपूर्ण है कि अब तक अंतरमहाद्वीपीय प्रहार क्षमता वाली मिसाइलें केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन व ब्रिटेन के पास थीं।

    अग्नि-5 भारत की सबसे तेजी से विकसित मिसाइल है। इसे महज तीन साल में तैयार किया गया है। इसे अचूक बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर मिशन कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर तक ज्यादातर चीजें स्वदेशी तकनीक से विकसित कीं।

    अग्नि का अर्थशास्त्र:-

    -इस लांच में लगभग 300 करोड़ की लागत आई जो विकसित देशों के मुकाबले कम है। इसके लिए 2500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे।

    अग्नि के सहारे:-

    -अग्नि-5 का प्रयोग छोटे सेटेलाइट लांच करने और दुश्मनों के सेटेलाइट नष्ट करने में किया जा सकता है। इसके लिए सेटेलाइट ऑन डिमांड और एंटी सेटेलाइट व्हीकल क्षमताओं का परीक्षण होगा।

    अग्नि के आगे:-

    -दो और परीक्षणों के बाद अग्नि-5 का उत्पादन शुरू होगा तथा 2014-15 तक इसे सेना के हवाले कर दिया जाएगा। इसका उपयोग इंडिपेंडेंट मल्टिपल टारगेट रीएंट्री व्हीकल यानी एक साथ कई लक्ष्यों पर मार के लिए में हो सकता है। जिसके लिए वारहेड विकसित करने का काम चल रहा है।

    अग्नि के निर्माता:-

    वीके सारस्वत, डायरेक्टर डीआरडीओ

    -रक्षा मंत्री के सलाहकार। इससे पहले भी कई उपलब्धियां। 1949 में जन्म। दहन अभियांत्रिकी [कंबशन इंजीनियरिंग] में पीएचडी। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस से एमटेक। 1972 में डीआरडीओ से कैरियर की शुरुआत। अग्नि से पहले पृथ्वी मिसाइल के विकास से लेकर उसे सेना में शामिल कराने का श्रेय। पद्मश्री समेत कई अहम राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित

    अविनाश चंदर : प्रोग्राम डायरेक्टर

    -मिसाइल प्रौद्योगिकी के शीर्ष वैज्ञानिकों में शुमार। डीआरडीओ में लंबी दूरी तक मार करने वाले मिसाइल कार्यक्रम के प्रमुख। आइआइटी दिल्ली से बी टेक। तीन हजार किमी तक मार करने वाली अग्नि-3 के परीक्षण से लेकर उसे सेना में शामिल कराने का तमगा

    टेसी थॉमस: प्रोजेक्ट डायरेक्टर

    -अग्निपुत्री के नाम से मशहूर। मिसाइल कार्यक्रम में 400 वैज्ञानिकों की टीम की अगुवा। किसी भी मिसाइल परियोजना की प्रमुख बनने वाली महिला वैज्ञानिक। त्रिसूर इंजीनियरिंग कालेज से बी टेक। बीस 20 वर्षो से डीआरडीओ में मिसाइल कार्यक्रम से जुड़ी हैं। अग्नि-3 और अग्नि-4 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी थीं।

    अग्नि की प्रौद्योगिकी

    भारत ने अग्नि-5 मिसाइल के कामयाब परीक्षण के साथ ही अनेक स्वदेशी तकनीकों की काबिलियत परखी है। डीआरडीओ ने मिशन अग्नि-5 में सटीक निशाना लगाने में मददगार रिंग लेजर गायरो बेस्ड इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम और माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम [एमआइएनएस] का परीक्षण किया। अत्याधुनिक एमआइएनएस ने महज चंद मीटर के लक्ष्य पर निशाना लगाने की क्षमता दी है। कंपोजिट कार्बन मैटेरियल का सफल परीक्षण किया गया जिसके कारण मिसाइल की रीएंट्री और लक्ष्य भेद पूरी तरह अचूक साबित हुआ। अग्नि-5 के पहले परीक्षण में चूक रहित गणनाओं को अंजाम देने के लिए हाईस्पीड कंप्यूटर और फाल्ट टॉलरेंट साफ्टवेयर भी विकसित किया गया।

    अग्नि का बाजार

    डीआरडीओ अपने मिसाइल कार्यक्रमों में विकसित प्रौद्योगिकियों के बाजार को साझेदार बनाने का भी प्रयास करता है। वह फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज एंड कामर्स के साथ कार्यक्रम चलाता है। अग्नि-5 मिशन के तहत विकसित कई सफल तकनीकों का इस्तेमाल व्यावसायिक उपयोग की भी संभावनाएं खोलेगा। इस मिसाइल के लिए विकसित कंपोजिट कार्बन मैटेरियल का इस्तेमाल किसी भी ऐसे उद्योग में संभव है जहां उच्च तापमान से संवेदनशील उपकरणों को बचाना हो। इस कार्बन मैटेरियल से बनी टाइल पर एक ओर 3000 सेल्सियस का तापमान होने पर भी दूसरी ओर से इसे छुआ जा सकता है। इसी तरह रिंग लेजर गायरो बेस्ड नेवीगेशन सिस्टम का प्रयोग नागरिक विमानों में संभव है। डीआरडीओ इसका प्रयोग स्वेदशी हल्के लड़ाकू विमान और स्वदेशी पनडुब्बियों में कर रहा है।

    भारत का परमाणु अप्रसार रिकॉर्ड बेहद अनुशासित, शांतिपूर्ण और शानदार रहा है। हमें उससे कोई खतरा नहीं है।

    -अमेरिका

    भारत और चीन दोनों उभरते हुए देश हैं। हम प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि सहयोगी हैं, लेकिन वह अपनी ताकत पर न इतराए। हम उससे कहीं कमतर नहीं हैं।

    -चीन

    मील का पत्थर

    अग्नि के परीक्षण पर प्रतिक्रियाएं

    अग्नि- 5 ने हमारी रक्षा तैयारियों की विश्वसनीयता को मजबूत करने और विज्ञान के नए आयामों का अन्वेषण करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर जोड़ दिया है।

    - मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

    मैं रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन [डीआरडीओ] और इसके वैज्ञानिकों को बधाई देती हूं।

    - प्रतिभा पाटिल, राष्ट्रपति

    देश के लिए यह असाधारण और दुर्लभ मौका उपलब्ध करवाने पर मैं भारतीय वैज्ञानिकों को तहे दिल से बधाई देता हूं।

    - नवीन पटनायक, मुख्यमंत्री, ओड़िशा

    देश की सुरक्षा के लिहाज से यह ऐसा मील का पत्थर है, जिस पर हमें गर्व है। पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बनी अग्नि- 5 मिसाइल ने हमें ऐसी तकनीक प्राप्त देशों के प्रतिष्ठित क्लब में शामिल कर दिया है।

    - नितिन गडकरी, भाजपा अध्यक्ष

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