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    चीन को देना होगा उसकी ही भाषा में जवाब, काम कर सकती है Tit for Tat की नीति

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Thu, 25 Jun 2020 09:49 AM (IST)

    विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन को यदि झुकाना है तो उसकी ही भाषा में बात करने की जरूरत है। इसके लिए जैसे को तैसा की नीति काम कर सकती है।

    चीन को देना होगा उसकी ही भाषा में जवाब, काम कर सकती है Tit for Tat की नीति

    नई दिल्‍ली (जेएनएन)। लद्दाख में चीन द्वारा शुरू किए गए सीमा विवाद के मद्देनजर भारत सीमा पर पूरी सतर्कता बरत रहा है। इसकी लगातार समीक्षा भी हो रही है और सीमा पर तैनात जवानों का हौंसला भी बढ़ाया जा रहा है। कुछ दिन पहले वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने लद्दाख का दौरा किया था और अब सेनाध्‍यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने भी यहां पहुंचकर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ा दिया है। मई में शुरू हुए इस सीमा विवाद के साथ ही दोनों देशों के बीच बढ़ती तल्‍खी को पूरी दुनिया ने महसूस किया है। संयुक्‍त राष्‍ट्र, रूस और अमेरिका तक ने इस बात को कहा है कि सीमा पर शांति बनाए रखने के साथ-साथ विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने की जरूरत है। भारत इसी दिशा में आगे भी बढ़ रहा है। भारत ने कभी भी बातचीत का दामन और उम्‍मीद दोनों ही नहीं छोड़ी हैं। वहीं दूसरी तरह विश्‍व की बड़ी ताकतें इस बात को कह चुकी हैं कि दोनों ही देश आपसी बातचीत से इसका कोई हल तलाश कर लेंगे। चीन मामलों के विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि वार्ता के जरिए विवादों को हल करना सबसे बेहतर तरीका है।

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    सीमा विवाद के लिए कुख्‍यात है चीन

    जवाहरलाल यूनिवर्सिटी स्थित सेंटर फॉर चाइनीज एंड साउथ ईस्‍ट एशियन स्‍टडीज के प्रोफेसर बीआर दीपक की भी यही राय है। लेकिन साथ ही वे ये भी मानते हैं कि चीन सीमा विवाद खड़ा करने के लिए पूरी दुनिया में कुख्‍यात है। इसकी वजह ये भी है कि जहां जहां पर उसकी सीमाएं लगती हैं वहां पर उन देशों से उसका सीमा विवाद जरूर है। चीन की विस्‍तारवादी नीति हमेशा से ही कहीं न कहीं इस तरह के सीमा विवाद को जन्‍म देती रही है। उनकी राय में चीन को रोकने का एक बेहतर तरीका जैसे को तैसा या Tit for Tat पॉलिसी भी हो सकती है।

    जैसे को तैसा की नीति

    उनके मुताबिक भारत की चीन से चार हजार किमी से अधिक की सीमा मिलती है। हर जगह वो मजबूत स्थिति में नहीं है। ऐसे में यदि चीन भारत के उत्‍तर में गलवन में मोर्चा खोलता है तो भारत को भी उसके खिलाफ उन इलाकों में मोर्चा खोल देना चाहिए जहां हम मजबूत स्थिति में हैं। लेकिन इसका मकसद केवल दबाव बनाना होना चाहिए न कि इसको जंग का रूप दे देना। ऐसा करके हम उस स्थिति में होंगे जहां पर चीन से वार्ता की मेज पर आकर मोलभाव किया जा सकेगा।

    खुद लड़नी होगी लड़ाई

    ये पूछे जाने पर कि क्‍या चीन को मात देने के लिए उसके दुश्‍मन देशों से सहयोग के रूप में दोस्‍ती का हाथ बढ़ाना सही कदम होगा, उनका कहना था कि कोई दूसरा देश हमारी लड़ाई लड़ेगा ये सोचना बेकार है। ये लड़ाई हमें खुद लड़नी होगी। अंतरराष्‍ट्रीय जगत केवल कुछ हद तक ही इसमें काम कर सकता है और चीन पर दबाव डाल सकता है। प्रोफेसर दीपक को इस तरह के दबाव से ज्‍यादा उम्‍मीद इसलिए भी नहीं है क्‍योंकि क्‍योंकि दक्षिण चीन सागर में पूरी दुनिया विरोध के बावजूद उसने वो सबकुछ किया है जो वो वहां करना चाहता था। उनके मुताबिक इस मोर्चे पर अमेरिका भी उसके सामने कुछ नहीं कर सका और आस्‍ट्रेलिया को भी इस तरफ न देखने की उसने धमकी दे डाली थी।

    एक नजर में

    गौरतलब है कि गलवन घाटी में चीन की सेना के जवानों ने 15-16 जून की रात भारतीय सीमा में दाखिल होने की कोशिश की थी। भारतीय सेना के जवानों ने जब उन्‍हें ऐसा कररे से रोका और खदेड़ने की कोशिश की तो उन्‍होंने लोहे की रॉड से जवानों पर हमला कर दिया था। इसमें एक कमांडिंग अधिकारी समेत 20 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने घटना पर न सिर्फ गलब बयानबाजी की बल्कि यहां तक कहा कि ये इलाका उनकी सीमा में आता है। इसके बाद से ही सीमा पर तनाव बरकरार है।  

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