ये अलगाववादी नेता भारत के खिलाफ होते हैं इस्तेमाल
कश्मीरी अलगाववादियों के नाम पर भारत-पाकिस्तान में एक बार फिर तनातनी हो गई है। पाकिस्तान इन्हें कश्मीर का असली नुमाइंदा बताते हुए मुलाकात करना चाहता है, जबकि भारत सरकार इसके सख्त खिलाफ हैं। दरअसल, पाकिस्तान इन्हें अपने फायदे के लिए मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। एक नजर इन
नई दिल्ली। कश्मीरी अलगाववादियों के नाम पर भारत-पाकिस्तान में एक बार फिर तनातनी हो गई है। पाकिस्तान इन्हें कश्मीर का असली नुमाइंदा बताते हुए मुलाकात करना चाहता है, जबकि भारत सरकार इसके सख्त खिलाफ है। दरअसल, पाकिस्तान इन्हें अपने फायदे के लिए मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। एक नजर इन नेताओं के बैकग्राउंड और रणनीति पर -
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन :
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 9 मार्च 1993 को हुआ था। जमायत-ए-इस्लामी, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स लीग, पीपुल्स कांफ्रेंस, इत्तेहाद-ए-मुसलमीन, अवामी कांफ्रेंस और जेकेएलएफ को मिलाकर बनाए गए इस संगठन का एक मात्र मकसद कश्मीरी अलगाववाद की आवाज बुलंद करना है। इस संगठन को हमेशा पाकिस्तान का समर्थन रहा है, क्योंकि वह भी कहता रहता है कि कश्मीर पर भारत ने कब्जा कर रखा है। पाकिस्तान इन्हें आर्थिक मदद भी देता है।
इसके प्रमुख नेता चुनाव नहीं लड़ते हैं और इसका बहिष्कार करते हैं। वैचारिक मतभेद उभरने के बाद 7 सितंबर 2003 को हुर्रियत कांफ्रेंस के दो धड़े हो गए। आज एक धड़ा आतंक और हिंसा को सही मान रहा है, वहीं नरमपंथी दूसरा धड़ा वार्ता के जरिए मसलों को हल करने की सोच रखता है।
सैयद अली शाह गिलानी :
गिलानी तहरीक-ए-हुर्रियत के कर्ताधर्ता हैं। यह संगठन कट्टरपंथी है। पाक के अलावा कई आतंकी संगठनों का समर्थन हासिल है। कश्मीर में होने वाली इनकी भारत विरोधी रैलियों में पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते हैं। बीते दिनों दुबई जाने के लिए गिलानी ने पासपोर्ट का आवेदन किया था। फॉर्म में उन्होंने नागरिकता वाले कॉलम को खाली छोड़ दिया था। उनका कहना था कि वह भारत को अपना देश नहीं मानते। इसके बाद भारत सरकार ने आवेदन रद्द कर दिया था।
यासीन मलिक :
ये जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख हैं। पाकिस्तान से इनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में जाकर आतंकियों से मिलते हैं और रैलियां करते हैं। इनका निकाह पाकिस्तान की मशाल हुसैन से हुआ है। कुछ समय पहले इन्होंने हाफिज सईद के साथ मंच साझा किया था।
मीरवाइज उमर फारूक :
मीरवाइज का गुट नरमपंथी है। ये कश्मीर मसले को अंतर्राष्ट्रीय मंच से सुलझाना चाहते हैं। मीरवाइज उमर फारूक, स्व. मीरवाइज मौलवी फारूक के बेटे हैं। मीरवाइज उमर फारूक ने अपना रास्ता बदलकर कश्मीर के लिए सेल्फ रूल को तरजीह देते हैं। इनकी पत्नी अमेरिकन हैं। एक बार कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने इनकी पत्नी शीबा मसूदी को देश छोड़ने का आदेश दे दिया था। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद देश में रुकने की इजाजत दी गई थी। शीबा का जन्म अमेरिका में हुआ है और उनके माता-पिता कश्मीरी हैं।
मसरत आलम :
माना जा रहा है कि गिलानी के बाद तहरीक-ए-हुर्रियत की कमान मरसत आलम को सौंपी जाएगी। कश्मीर में पीडीपी की सरकार बनने के बाद मसरत को रिहा किए जाने के बाद इस बात को हवा मिली थी।
शब्बीर शाह :
अलगाववादी नेता शब्बीर शाह करीब एक दशक तक शांत रहने के बाद फिर से लाइम लाइट में आए हैं। हाल ही में इसने भारत को परमाणु युद्ध की धमकी दी है। शब्बीर शाह ने दोनों देशों के बीच एनएसए स्तर की बातचीत में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को शामिल करने की मांग की थी। इसका संगठन गिलानी का समर्थक माना जाता है। पाकिस्तान की शह पर कश्मीर में अशांति फैलाता है।
आसिया अंद्राबी :
अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी पर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज है। इसी साल 15 अगस्त को उसने श्रीनगर में अज्ञात स्थान पर पाकिस्तान का झंडा फहराया था। वह हुर्रियत की महिला विंग 'दुख्तरान-ए-मिल्लत' (डॉटर ऑफ नेशन) की चीफ हैं और जानी-मानी अलगाववादी नेता हैं। इस संगठन का उद्देश्य कश्मीर में इस्लामिक कानून लागू कराना और कश्मीर को भारत से अलग करना है। इनके पति आशिक हुसैन फक्तू हैं, जिन्होंने 22 वर्ष जेल में काटे हैं। सितंबर 2013 में आसिया के तीन भतीजों को आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने के बाद गिरफ्तार किया था।
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