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    मनमोहन को सिर्फ इतिहासकारों से उम्मीद

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    Updated: Fri, 03 Jan 2014 09:01 PM (IST)

    नई दिल्ली, प्रणय उपाध्याय। सात रेसकोर्स रोड की अपनी पारी समाप्ति का एलान करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शायद नाराज हैं और अपने आलोचकों व मीडिया से खिन्न भी। ऐसे में बतौर प्रधानमंत्री एक दशक पूरा कर रहे

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    नई दिल्ली, प्रणय उपाध्याय। सात रेसकोर्स रोड की अपनी पारी समाप्ति का एलान करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शायद नाराज हैं और अपने आलोचकों व मीडिया से खिन्न भी। ऐसे में बतौर प्रधानमंत्री एक दशक पूरा कर रहे 81 वर्षीय सिंह को अब न्याय की उम्मीद सिर्फ इतिहासकारों से ही बची है, जो शायद 'अधिक उदारता' से उनका आकलन करें। तीन साल बाद आयोजित अपनी प्रेसवार्ता में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मीडिया के सवालों के सामने थे। यह बात और है कि सरकार के कामों पर उठे सवालों पर बचाव के साथ विदाई की मुद्रा में दिखे पीएम के सुर में अपने साथ अन्याय का दर्द भी नजर आया।

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    बीते करीब दस साल में 2जी, राष्ट्रमंडल, कोयला आवंटन समेत कई घोटालों और बेलगाम महंगाई की मार से लेकर पाकिस्तान से रिश्तों तक कई सवाल प्रधानमंत्री की प्रेसवार्ता में दागे गए। हालांकि, इनके जवाब में ऐसा कुछ नहीं था जो मनमोहन पहले न कह चुके हों। घरेलू मंहगाई के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव और आय वृद्धि के अर्थशास्त्री मार्का तर्क थे। वहीं, अपनी नाक के नीचे हुए घोटालों पर अनियमितताओं की स्वीकृति के साथ उनके पास मीडिया और आलोचकों के अतिशयोक्तिपूर्ण आकलन की शिकायत ज्यादा थी। शांत और गंभीर स्वभाव वाले मनमोहन ने सियासी पारी समाप्ति की घोषणा के साथ संभवत: अपनी आखिरी प्रेसवार्ता में अगर किसी बात से चौंकाया, तो वह था स्वभाव के विपरीत विपक्ष के प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला। मोदी पर हमला और पीएम पद के लिए राहुल गांधी को सुयोग्यता का सर्टिफिकेट देकर मनमोहन ने पार्टी के प्रति सियासी निष्ठा का हलफनामा फिर लहराया। आम चुनावों के लिए गर्माते माहौल और कांग्रेस के भीतर गैर-गांधी नेतृत्व की नाकामियों से पल्ला झाड़ने की स्थापित परंपरा के बीच मनमोहन ने मीडिया कैमरों के आगे पार्टी व नेतृत्व से अकाट्य निष्ठा सामने रखने का पुरजोर प्रयास किया।

    बीते एक दशक में प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की इस तीसरी प्रेसवार्ता में यह पहला मौका था जब संचालन किसी सलाहकार या अधिकारी के हाथ में नहीं, बल्कि कांग्रेस प्रवक्ता पद से सरकार में आए सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के पास था। लिहाजा, पिछली प्रेस वार्ताओं की तुलना में इस दफा इंतजाम तो बेहतर थे ही, प्रभाव भी अच्छा था। कांग्रेसी कुनबे में अपने सियासी गुरु नरसिम्हा राव के राजनीतिक हश्र के बाद शायद मनमोहन सिंह की चिंता गैर-वाजिब भी नहीं कि चुनाव में नाकामी का हर ठीकरा उनके ही माथे मढ़ा जाए। बहरहाल, प्रधानमंत्री को ज्यादा भरोसा उस इतिहास पर है जो अभी लिखा ही नहीं गया है। इतिहास में जाने की तैयारी कर चुके मनमोहन को नरमी और उदारता की उम्मीद भी इतिहासकारों से ही है।

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