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    नहीं रहे उपन्यासकार अमरकांत

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    Updated: Mon, 17 Feb 2014 04:55 PM (IST)

    ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले वयोवृद्ध साहित्यकार अमरकांत की कलम सोमवार की सुबह हमेशा के लिए थम गई। अर्से से बीमारी से जूझ रहे इस जीवट रचनाकार न ...और पढ़ें

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    इलाहाबाद। ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले वयोवृद्ध साहित्यकार अमरकांत की कलम सोमवार की सुबह हमेशा के लिए थम गई। अर्से से बीमारी से जूझ रहे इस जीवट रचनाकार ने अशोकनगर स्थित पंचपुष्प अपार्टमेंट में अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वह 89 वर्ष के थे। उनके चिरनिद्रा में लीन होने की खबर से प्रयाग का साहित्य जगत अवाक रह गया।

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    रीढ़ की हड्डी में समस्या से परेशान चल रहे अमरकांत सुबह करीब नौ बजे बाथरूम में नहाने गए थे और फिसल कर गिर कर बेहोश हो गए। इसके बाद उनकी आंखे नहीं खुलीं। परिवार जन उन्हें बाथरूम से लेकर बाहर आए और पारिवारिक चिकित्सक को बुलवाया। चिकित्सक ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

    अपनी कृति 'इन्हीं हथियारों से' वर्ष 2012 में ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले अमरकांत बलिया जिले के भगमलपुर नगरा में एक जुलाई 1925 को अधिवक्ता सीताराम वर्मा के घर पैदा हुए थे। उनका असली नाम श्रीराम वर्मा था। सात भाई व चार बहनों में वह सबसे बड़े थे। मां अनंती देवी व पिता सीताराम के दुलारे अमरकांत हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वर्ष 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कूद गए। सतीश चंद्र इंटर कालेज बलिया में इंटर कर रहे थे कि उनका विवाह पहली मई 1946 को गिरिजा देवी से हो गया। वर्ष 1948 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया। गृहस्थी के लिए पैसे की जरूरत पड़ी तो आगरा चले गए और वहां 'सैनिक' नामक समाचार पत्र से पत्रकारिता की शुरुआत की। वहां कुछ समय रहने के बाद पुन: इलाहाबाद आ गए। यहां दर्जनों समाचार पत्र व पत्रिकाओं में संपादन किया। स्वास्थ्य खराब होने पर स्वतंत्र पत्रकारिता शुरू की। साथ ही उपन्यास, कहानियां इत्यादि लिखने लगे। उनकी रचनाओं में कालजयी साहित्यकार प्रेमचंद्र की झलक दिखती है इसलिए हिंदी साहित्य जगत में उन्हें दूसरा प्रेमचंद्र भी कहा जाता था। साहित्य के नवांकुरों को उन्होंने भरपूर प्रोत्साहन दिया। शहर के तमाम साहित्यकार उनकी उंगली पकड़कर आगे बढ़े। कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य, संस्मरण जैसी विधाओं में उन्होंने अपनी लेखनी की बदौलत हिंदी साहित्यिक जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। अमर कांत के निधन की खबर मिलते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। कथाकार दूधनाथ सिंह, प्रणय कृष्ण, यश मालवीय, श्लेष गौतम, उर्मिला जैन, प्रो. अली अहमद फातमी इत्यादि उनके निवास पर पहुंचे और श्रद्धांजलि दी। अमरकांत अपने पीछे दो पुत्र अरुण वर्धन, अरविंद बिंदु व पुत्री संध्या का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। मंगलवार को रसूलाबाद श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। अमरकांत ने अपनी आंखें दान करने की घोषणा पहले ही कर दी थी।

    प्रमुख पुरस्कार

    -डिप्टी कलेक्टरी कहानी पुरस्कार।

    -सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।

    -यशपाल पुरस्कार।

    -उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कार।

    -उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का यशपाल पुरस्कार।

    - मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का कीर्ति सम्मान।

    -उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा महात्मा गांधी सम्मान।

    -मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान।

    -वेदव्यास सम्मान।

    -ज्ञानपीठ पुरस्कार।

    प्रमुख रचनाएं :

    कहानी संग्रहजिंदगी और जोक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र मिलन तथा कहानियां, कुहासा, तूफान, कला प्रेमी, एक धनी व्यक्ति का बयान, दुख-सुख का साथ, जांच और बच्चे, अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियां खंड एक एवं दो, प्रतिनिधि कहानियां, औरत का क्रोध, पांच और बच्चे, अमरकांत की प्रेम कहानियां।

    उपन्याससूख पत्ता, सुखजीवी, आकाश पंक्षी, काले-उजले दिन, बीच की दीवार, कटीली राह के फूल, ग्रामसेविका, सुन्नर पांडे की पतोहू, इन्हीं हथियारों से (स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित), लहरें, विदा की रात।

    संस्मरणकुछ यादें कुछ बातें, दोस्ती।

    बाल साहित्यवानर सेना, नेऊर भाई, खूंटों में दाल है, मंगरी, सच्चा दोस्त, बाबू का फैसला।

    प्रौढ़ साहित्यसुग्गी चाची का गांव, एक स्त्री का सफर, झगरूलाल का फैसला।