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'आईटी कंपनियों का बाजार बना विश्व हिंदी सम्मेलन'

'राजधानी में 10 से 12 सितंबर तक होने वाला दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन आईटी कंपनियों का बाजार बन गया है। गूगल, एप्पल सहित कई विदेशी कंपनियों का प्रचार-प्रसार हिंदी सम्मेलन के माध्यम से किया जा रहा है। आईटी कंपनियां हिंदी भाषा के नाम पर व्यापार कर रही हैं।' यह आरोप

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2015 09:19 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2015 10:06 AM (IST)
'आईटी कंपनियों का बाजार बना विश्व हिंदी सम्मेलन'

भोपाल (नप्र)। 'राजधानी में 10 से 12 सितंबर तक होने वाला दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन आईटी कंपनियों का बाजार बन गया है। गूगल, एप्पल सहित कई विदेशी कंपनियों का प्रचार-प्रसार हिंदी सम्मेलन के माध्यम से किया जा रहा है। आईटी कंपनियां हिंदी भाषा के नाम पर व्यापार कर रही हैं।' यह आरोप बुधवार को राजधानी के साहित्यकारों ने संवाददाताओं से चर्चा में लगाए।

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साहित्यकारों ने हिंदी सम्मेलन की मेजवानी भोपाल को दिए जाने को भी राजनीति बताया। उनका आरोप था कि एनआरआई वोटर को लुभाने के लिए मोदी सरकार ऐसा कर रही है। राष्ट्रीय सेक्युलर मंच, कौमी एकता ट्रस्ट, प्रगतिशील लेखक, गांधी भवन ट्रस्ट सहित अन्य संगठनों का आरोप था कि इस बार विश्व हिंदी सम्मेलन को राजनीतिक रूप दे दिया गया है।

साहित्यकार राजेश जोशी का कहना था कि ऐसा पहली बार हो रहा है, जब विश्व हिंदी सम्मेलन के शुभारंभ और समापन की जिम्मेदारी नेता और अभिनेता को सौंपी गई है। साहित्यकार, कवियों सहित भाषा का ज्ञान रखने वालों को सम्मेलन से दूर रखा गया है। साहित्यकारों का आरोप था कि राजधानी में हिंदी सम्मेलन कर व्यापमं घोटाले को ढंकने का प्रयास किया जा रहा है। मप्र हिंदी भाषी राज्य है। ऐसे में प्रदेश में हिंदी सम्मेलन की जरूरत ही नहीं थी।

साहित्यकारों की मौत का मुद्दा उठाने की अपील साहित्यकार और लेखकों का आरोप था कि भाजपा शासित राज्यों में साहित्यकार, नाटककार और स्वतंत्र विचारकों की हत्या हो रही है। उन्होंने हाल में कन्नड़ लेखक एमएम कुलबुर्गी की हत्या का मुद्दा विश्व हिंदी सम्मेलन में उठाने की मांग शामिल हो रहे साहित्यकार और भाषाविदों से की है। वीके सिंह का बयान शर्मनाक विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह के बयान पर साहित्यकारों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया।

सिंह ने मीडिया से चर्चा में कहा था कि पहले जो हिंदी सम्मेलन हुए हैं, उनमें साहित्यकार पेपर पढ़ते थे और शराब पीकर चले जाते थे। इस बार ऐसा नहीं होगा। इस पर साहित्यकार राजेंद्र शर्मा का कहना था कि सेना के 90 फीसदी जवान शराब पीते हैं, लेकिन उन्हें शराबी नहीं कहा जा सकता। उनकी पहचान उनके युद्घ कौशल से की जाती है। सिंह का यह बयान शर्मनाक और साहित्यकारों का अपमान करने वाला है।


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