100 मीटर से कम पहाड़ियां अब जंगल से बाहर! 'ग्रेट ग्रीन वॉल' अरावली नहीं रही तो क्या रेगिस्तान बन जाएगी दिल्ली? क्या है पूरा विवाद
अरावली पर्वतमाला, जो भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, खनन और अवैध निर्माण के कारण खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इसकी कानू ...और पढ़ें

अरावली पर्वतमाला को लेकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में विरोध, फोटो- जागरण ग्राफिक्स
गुरप्रीत चीमा, नई दिल्ली। 'कभी-कभी बेज़ुबान पर्वत बोलते हैं, पर्वतों के बोलने से दिल डोलते हैं…' 1982 में आई फिल्म जॉनी आई लव यू में इस गाने के लिए आनंद बक्शी ने ये पंक्तियां लिखते समय शायद यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये शब्द हकीकत बन जाएंगे। आज वही बेजुबान पर्वत अरावली की पहाड़ियों के रूप में बोल रहे हैं।
खनन, अवैध निर्माण और अंधाधुंध विकास ने अरावली को इतना जख्मी कर दिया है कि ये बेजुबान पर्वत सिर्फ बोल ही नहीं रहे, बल्कि रो रहे हैं, चीख रहे हैं और इंसानियत से गुहार लगा रहे हैं- हमें बचा लो।
हमारी लाइफलाइन खत्म होने को है... Save Aravali, Save Future... अरावली नहीं तो पानी नहीं...रेगिस्तान रोको, अरावली बचाओ। ये केवल स्लोगन नहीं हैं। ये आवाज है उन करोड़ों लोगों और सैकड़ों वन्य जीवों की है जो पानी, हवा और हरियाली के लिए अरावली पर निर्भर हैं।
अरावली पर्वतमाला चर्चा में क्यों?
‘ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ अरावली’ के नाम से चर्चित यह पर्वतमाला न केवल भारत की बल्कि दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी कानूनी परिभाषा बदल दी। फैसले के अनुसार अब केवल 100 मीटर से ऊपर की पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा।
इसका मतलब यह है कि पहले जो छोटी-छोटी पहाड़ियां और जंगल इस श्रंखला में आती थीं, उन्हें अब इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जमीन के फैसले के लिए केवल ऊंचाई का पैमाना नहीं, बल्कि रिकॉर्ड, अधिसूचना और वास्तविक स्थिति देखी जाएगी।
अरावली को लेकर विवाद क्या है?
क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद है? नहीं, अरावली को खतरा इस फैसले से नहीं है, बल्कि उसके इस्तेमाल से है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक कानूनी स्पष्टता है। अब इसकी नैतिक जिम्मेदारी सरकारों के हवाले है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस फैसले से राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को जमीन की व्याख्या करने में ताकत बढ़ गई है।
एक बात और कि इस फैसले से जिस क्षेत्र को पहले जंगल जैसा माना जा रहा था, उसे अब राजस्व भूमि या गैर वन क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है। अब देखना ये होगा कि राज्य सरकारों के रिकॉर्ड तय करने के पैमाने क्या होंगे और पर्यावरण मंजूरी कितनी सख्त रहती है।
अरावली पर्वत श्रृंखला भारत में कहां-कहां फैली है?
अरावली पर्वतमाला पश्चिमी भारत की एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है। यह गुजरात के कच्छ से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से गुजरती है। दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक इसकी लंबाई लगभग 800 किलोमीटर है। इतिहास की दृष्टि से यह पर्वतमाला दो अरब वर्षों से भी अधिक पुरानी है और आज भी गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण लाइफलाइन का काम करती है।

यह ग्राफिक AI Generated है
क्या अरावली पर्वतमाला में वन्य जीव भी पाए जाते हैं?
हां, अरावली पर्वतमाला अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जानी जाती है। इसमें अलग-अलग प्रकार के पौधे और वन्य जीव रहते हैं। इनमें भेड़िये, बंगाल लोमड़ी, कैराकल, धारीदार लकड़बग्घा, सियार सहित कई लुप्तप्राय प्रजातियां भी शामिल हैं। ये पहाड़ियां और जंगल न केवल प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं, बल्कि भूजल संरक्षण हवा को साफ रखने और स्थानीय जलवायु संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
दिल्ली‑NCR के लिए अरावली क्यों जरूरी है?
दरअसल, अरावली भूजल रिचार्ज की तरह काम करता है। भूजल स्तर बनाए रखने और बारिश का पानी जमा करने में इस पर्वतमाला की बड़ी भूमिका है। एक रिसर्च के मुताबिक, अरावली हर साल लगभग 20 लाख लीटर प्रति हेक्टेयर भूजल रिचार्ज करने में योगदान देती हैं।
इसके अलावा पश्चिम भारत में पर्यावरणीय ढाल का कार्य करती है। यह एक जरूरी जलग्रहण क्षेत्र भी है, जो थार रेगिस्तान सहित पश्चिम भारत के एक बड़े हिस्से को पानी की आपूर्ती करता है। सबसे बड़ी बात भारत सरकार द्वारा इसे पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में भी मान्यता दी जा चुकी है। इस पूरे क्षेत्र में लुप्तप्राय प्रजातियों के होने के कारण यहां का पानी भी मीठा है, और इन वन्य जीवों की वजह से ये उपजा हुआ है।

अरावली रेंज की पहाड़ी
अरावली हरियाणा और दिल्ली के लिए प्राकृतिक ढाल की तरह खड़ी है। यह राजस्थान के थार रेगिस्तान को राजधानी दिल्ली की ओर बढ़ने से रोकती है और बारिश के पानी को भी नियंत्रित करती है। अगर अरावली खत्म हो जाती है, तो भूजल तेजी से घटेगा और दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में पानी की कमी बढ़ जाएगी। कुएं, तालाब और नदियां जल्द ही सूखने लगेंगे।
सिर्फ पानी ही नहीं, अरावली दिल्ली‑NCR का डस्ट बैरियर और प्राकृतिक कूलिंग सिस्टम भी है। इसके बिना वायु प्रदूषण और गर्मी बढ़ जाएगी, और अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट तेज हो जाएगा, जिससे गर्मियां दिल्लीवासियों के लिए अत्यंत कठिन और असहनीय हो जाएंगी।
फोटो: राज सिंह, जागरण ग्राफिक्स
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
इस मुद्दे को गहराई से समझने के लिए दैनिक जागरण डिजिटल की टीम ने सोशल वर्कर, लेखक और Green Pencil Foundation के संस्थापक सैंडी खांडा से बातचीत की।
सैंडी खांडा बताते हैं-
अगर अरावली पर्वत और उसकी पहाड़ियां नष्ट हो गईं, तो दिल्ली NCR का भूजल लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगा। गुरुग्राम, फरीदाबाद और दक्षिण दिल्ली पहले ही अत्यधिक भूजल दोहन झेल रहे हैं। अरावली वर्षा जल को रोककर जमीन में उतारने का काम करती है।

इसके खत्म होने से भूजल स्तर और नीचे जाएगा, दिल्ली और आसपास के इलाकों में भी पीने के पानी की भारी किल्लत होगी। यमुना और अन्य सतही जल स्रोतों पर दबाव बढ़ेगा , जबकि यमुना पहले से ही जल प्रदूषण बहुत भारी दबाव झेल रही है। साथ ही पानी की कीमत और सामाजिक असमानता दोनों बढ़ेंगी। वहीं फरीदाबाद-गुरुग्राम जैसे क्षेत्रों में अर्बन बाढ़ का खतरा बढ़ेगा, जिसका अभी मुख्य हिस्सा अरावली सोख लेती है।
वहीं, 'सेव अरावली ट्रस्ट' के पदाधिकारी जितेंद्र भड़ाना ने बताया कि नए परिभाषा से अरावली पर्वतमाला के अधिकांश हिस्से नष्ट हो जाने का खतरा बढ़ गया है। इससे कई पर्यावरणीय खतरे पैदा हो जाएंगे। साफ हवा और प्रदूषण से मुक्ति के लिए अरावली आवश्यक है। इस निर्णय पर पुनर्विचार जरूरी है। उन्होंने बताया कि सरकार ने अरावली पर्वतमाला के तहत उन्हीं पर्वतों को शामिल करने की बात कही है, जिनकी ऊंचाई कम से कम सौ मीटर है।
गुरुग्राम में पर्यावरण कार्यकर्ताओं का विरोध, फोटो- जागरण
दिल्ली का कितना हिस्सा अरावली चट्टानों पर बना है?
दिल्ली का करीब 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा अरावली पर्वतमाला को कवर करता है। दक्षिण और दक्षिण‑पश्चिमी दिल्ली अरावली की छोटी-छोटी चट्टानों पर बसी हुई है। इनमें प्रमुख इलाके महरौली, साकेत, वसंत कुंज और द्वारका के कुछ हिस्से आते हैं। वहीं NCR में हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद, मानेसर और दक्षिण सोनीपत के कुछ इलाके भी इन्हीं पहाड़ियों पर बसाए गए हैं।

अरावली को लेकर गुरुग्राम-फरीदाबाद में विरोध
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई नई परिभाषा से गुरुग्राम, राजस्थान और उदयपुर के लोगों ने नाराजगी जाहिर की है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं के मुताबिक, ये पुरानी माउंटेन रेंज है, नए बदलाव इस इस पर्वतमाला के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। इसे लेकर कल गुरुग्राम में कुछ स्थानीय लोगों ने मंत्री राव नरबीर सिंह के घर पर इकट्ठा होकर भी इसका विरोध किया।

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