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स्पेशल मोबाइल नंबरों पर हैकरों की नजर

आनन्द राय, लखनऊ। जालसाजों की एक नई दुनिया विकसित हो रही है जो स्पेशल मोबाइल नंबर हैक करने का गोरखधंधा कर रहे हैं। असली उपभोक्ता को दरकिनार कर फर्जी दस्तावेज के सहारे खास नंबरों का सिम हासिल कर भारी दामों में बेचा जा रहा है। इसमें नेटवर्क प्रदाता कंपनियों के कर्मचारी भी शामिल हैं। इनका हौसला इतना बढ़ ग

By Edited By: Published: Mon, 04 Aug 2014 10:42 PM (IST)Updated: Mon, 04 Aug 2014 10:43 PM (IST)
स्पेशल मोबाइल नंबरों पर हैकरों की नजर

आनन्द राय, लखनऊ। जालसाजों की एक नई दुनिया विकसित हो रही है जो स्पेशल मोबाइल नंबर हैक करने का गोरखधंधा कर रहे हैं। असली उपभोक्ता को दरकिनार कर फर्जी दस्तावेज के सहारे खास नंबरों का सिम हासिल कर भारी दामों में बेचा जा रहा है। इसमें नेटवर्क प्रदाता कंपनियों के कर्मचारी भी शामिल हैं। इनका हौसला इतना बढ़ गया है कि अब पुलिस अफसरों का भी नंबर उड़ाने में ये खौफ नहीं खा रहे।

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इस गोरखधंधे में स्पेशल नंबरों का कोड चल रहा है। जालसाजों ने पांच बार एक ही अंक के नंबर को पेंटा, छह बार को हेम्जा और सात बार को सेप्टा कोड नाम दिया है। आखिर में तीन अंकों की पुनरावृत्ति वाले नंबर को प्रीमियम नाम दिया गया है। इन नंबरों की कीमत भी इसी आधार पर वसूली जाती है। राजफाश तब हुआ जब एक पुलिस अफसर का नंबर हैक हो गया। उस प्रीमियम नंबर में आखिर में 100100 था। जालसाजों ने उनके नंबर पर कोई काल फारवर्ड कर दी और जबकि वह यह गड़बड़ी ठीक कराने में जुटे थे, तभी उन्हीं के नाम से सिम गायब होने की अर्जी थाने में डाली गई और नए सिम के लिए अर्जी पर थाने की मुहर लगवा ली। फिर फर्जी दस्तावेज लगाकर नया सिम हासिल कर लिया गया। सिम उस अफसर के ही नाम पर लिया गया, लेकिन लेने वाला कोई और था। सिम जिस प्रदाता कंपनी का था, उससे बदलकर दूसरी कंपनी का करा दिया गया।

इस मामले में रायबरेली और लखनऊ में मई में मुकदमा दर्ज कराया गया। फिर इसकी जांच लखनऊ की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई। संकेत मिले हैं कि जबसे एक कंपनी का नंबर दूसरी कंपनी में बदलने की सुविधा हुई, तभी से यह गोरखधंधा शुरू हुआ। असल में कंपनी का टेलीवेरिफिकेशन डिपार्टमेंट जब तक नहीं चाहेगा तब तक नया सिम जारी नहीं हो सकता है लेकिन महकमे के एक वरिष्ठ अधिकारी का नंबर जिस तरह उड़ाया गया उससे घालमेल दिखता है।

सवाल उठता है कि जालसाजों को आखिर विशेष नंबरों के उपभोक्ताओं का पता कैसे चलता है। अधिकारी बताते हैं कि कंपनियों के मिनी स्टोर ही उपभोक्ता का नाम और पता बताते हैं और उसी नाम से फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस या और कोई दस्तावेज बनाकर वह सिम हासिल करने का धंधा करते हैं। जहां तक असली उपभोक्ता के नंबर पर काल फारवर्डिग का खेल है तो सिम के असली मालिक के मोबाइल पर या तो किसी के फोन से या स्विच रूम से या फिर कॉल सेंटर से काल फारवर्डिग की जा रही है। आपरेशन एंड मैनेजमेंट विभाग भी इस काम में सहयोगी है।

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