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    कानून के दायरे में हो 'ट्रिपल तलाक', सरकार का तर्क

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Thu, 22 Sep 2016 03:09 PM (IST)

    ट्रिपल तलाक मामला किसी विशेष धर्म से नहीं बल्‍कि महिलाओं के सम्‍मान से जुड्रा है और इसपर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जवाब देने को लेकर केंद्र सरकार सतर्क है।

    नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक मामले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जवाब तैयार करने में केंद्र सरकार काफी सावधानी बरत रही है। सरकार के अनुसार, मुसलमानों की आस्था के संवैधानिक अधिकार से छेड़छाड़ किए बगैर इस परंपरा को सेक्युलर लॉ के दायरे में लाया जा सकता है।

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    परंपरा है ट्रिपल तलाक

    ट्रिपल तलाक मुस्लिम समुदाय की पुरानी परंपरा है, जिसके अनुसार पतियों को मौखिक रूप से तलाक देने का अधिकार है। इस परंपरा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है। चुनौती वाले इस याचिका को देने वाले याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम महिलाएं हैं। हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ट्रिपल तलाक को मुस्लिम परंपरा बताते हुए कहा है कि इसके साथ छेड़छाड़ उचित नहीं।

    मामले पर वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक

    गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद और महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस मुद्दे पर बैठक की। इस बैठक में यह निष्कर्ष निकला कि राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे तमाम पक्षों की राय के लिए कानून मंत्रालय एक जवाब तैयार करेगी। सूत्रों ने बताया कि सरकार इस बात को लेकर गंभीर कि सुप्रीम कोर्ट में उसके जवाब को मुस्लिम समुदाय की परंपराओं पर अंकुश लगाने की कोशिश या राजनीति से प्रेरित होने के तौर पर नहीं देखा जाए, क्योंकि भाजपा के राजनीतिक विरोधियों ने उस पर समान नागरिक संहिता की वकालत करने का आरोप लगाया है।

    गर परंपराएं न हों उचित

    नाम न बताने की शर्त पर वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि जो परंपरा उचित नहीं है उसे सेक्युलर लॉ के तहत विनियमित किया जा सकता है। अदालत ने सरकार को इस तरह के मामलों पर अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा है और फलस्वरूप सरकार को इसका मूल्यांकन करना होगा। एक वरिष्ठ मंत्री ने बताया, ‘इस्लामिक देशों में अधिकांश शादी और तलाक कानून के तहत होते हैं। हमारे पड़ोसी और मध्य पूर्व के देशों जिन्होंने खुद को इस्लामिक बताया है, उनके पास शादियों के लिए कानून हैं। यदि इन देशों में ये कानून शरियत का अपमान नहीं कर रहे हैं तो फिर भारत में शरियत का अपमान कैसे।‘

    जुड़ा है महिलाओं का सम्मान

    इस मामले में एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि भाजपा सरकार का कोई निजी हित नहीं है और यह मामला मजहब से नहीं बल्कि महिलाओं के लिए न्याय और सम्मान से जुड़ा है। इस मसले पर सरकार का जवाब तैयार करने वाले एक मंत्री ने कहा, 'हमारी राय महिलाओं को न्याय, उनके लिए सम्मान और बिना भेदभाव वाले मानवीय मूल्यों से जुड़े मौलिक अधिकारों से प्रेरित है।'

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