लिखती हैं सीतामढ़ी में, पढ़ी जाती हैं पाकिस्तान तक
प्रेरणा...कुछ अलग करने की चाह ने आशा प्रभात को दी एक पहचान...
मुजफ्फरपुर (रविकांत)। आशा के लिखे शब्दों ने जब सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार शुरू किया तो इनकी गूंज ने सीमाएं तोड़ दीं। महिलाओं के हित में उठती उनकी आवाज पाकिस्तान तक भी सुनाई दी। गरीब बच्चियों की परवरिश और शिक्षा से जुड़ी समस्याओं, ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक- पारिवारिक समस्याओं और नारी चेतना से जुड़े तमाम पहलुओं को उन्होंने कुछ इस तरह पेश किया कि नए प्रभात की आशा हो गईं। आशा प्रभात की कहानी पढ़कर यह तिलिस्म भी टूट जाएगा कि साहित्यकार होने के लिए किसी विशेष माहौल की जरूरत होती है। आशा की परवरिश गांव के एक बेहद साधारण किसान के घर में हुई, लेकिन पढ़ने को लेकर उनकी ललक ने उन्हें उर्दू, हिंदी और बंगाली भाषाओं का जादूगर बना दिया। नारी चेतना को लेकर उनकी व्यापक समझ और प्रभावी लेखन की खूबी ने आज उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है। साहित्य अकादमी दिल्ली की ओर से 13 नवंबर को आयोजित होने जा रहे कला उत्सव में उन्हें नारी चेतना पर बोलने के लिए बुलाया गया है।
खुले में शौच जाना कष्टप्रद : एक दशक पूर्व जब खुले में शौच जाना अधिकतर ग्रामीण महिलाओं की मजबूरी थी। यह कितना कष्टप्रद होता है। ‘कैसा सच’ शीर्षक से लिखी कहानी में आशा ने तब महिलाओं की इस पीड़ा को संजीगदी से प्रस्तुत किया। 58 वर्षीय आशा का बचपन पूर्वी चंपारण जिले के एक छोटे से कस्बे नरकटिया बाजार में बीता। शादी के बाद सीतामढ़ी में बस गईं। साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि होने की वजह से महज बीए तक पढ़ पाईं, लेकिन कुछ अलग करने का जज्बा था, जिसके चलते आशा ने उर्दू और बंगाली भाषाएं सीखीं। उर्दू में रचनाएं छपीं तो विरोध भी हुआ, लेकिन आज उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार की चयन समिति में आशा सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
धुंध में उगा पेड़ : आशा प्रभात के सपने तब परवाज भरने लगे, जब उनका उपन्यास धुंध में उगा पेड़ पाकिस्तान में भी प्रकाशित हुआ। पाकिस्तान की स्तरीय पत्रिका मंशूर में धारावाहिक के रूप में इसका प्रकाशन हुआ। इसमें भी उन्होंने महिलाओं की सामाजिक दशा पर प्रश्न उठाए। रामायणकालीन युग में सीता की सामाजिक दशा पर लिखा गया आत्मकथात्मक उपन्यास मैं जनक नंदिनी भी उनकी रचनाओं में शुमार है। आशा ने अपनी रचनाओं में महिलाओं से जुड़े विभिन्न सामाजिक पहलुओं को मजबूती से सामने लाने का प्रयास किया।
सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार की गूंज लेखन में साफ ध्वनित होती है।
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