छत्तीसगढ़ राज्य में भय में बाघ अभयारण्य
उदासीनता रेंजरों की कमी से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के बाघ अभयारण्य, भगवान भरोसे संरक्षित हैं जीव
बिलासपुर (शिव सोनी)। छत्तीसगढ़ के बाघ अभयारण्यों में बाघ भले ही दहाड़ रहे हों, पर सरकार मौन है। रॉयल बंगाल टाइगर समेत संरक्षित श्रेणी के तमाम वन्य जीवों पर खतरा मंडरा रहा है। यहां के तीन बड़े बाघ अभयारण्यों में रेंजरों की कमी है। वन्य जीव भगवान भरोसे संरक्षित हैं। उनकी न तो समुचित देखभाल ही हो रही है, न ही सुरक्षा के इंतजाम। ये कभी भी शिकारियों के हत्थे चढ़ सकते हैं।
ऐसे में कैसे बचेंगे बाघ : टाइगर रिजर्व विशेष संरक्षित वनक्षेत्र होता है। साथ ही इसे संवेदनशील क्षेत्र का दर्जा प्राप्त होता है। सुरक्षा के लिए कोर व बफर, दो तरह के जोन इसमें होते हैं। वन्यप्राणियों की गतिविधियां कोर जोन में ही अधिक होती हैं। इसके बाहर का एरिया बफर क्षेत्र कहलाता है। बफर और कोर जोन अलगअलग रेंज में बंटे होते हैं। हर रेंज में बाघों और संरक्षित जीवों की संपूर्ण सुरक्षा का जिम्मा रेंजर का होता है। छत्तीसगढ़ के तीनों बाघ अभयारण्यों में रेंजरों का ही टोटा है।
बिलासपुर के अचानकमार टाइगर रिजर्व के कोर जोन में चार रेंज अचानकमार, छपरवा, सुरही व लमनी हैं। और बफर में लोरमी, कोटा व केंवची हैं। इस लिहाज से सभी में रेंजरों की पोस्टिंग होनी चाहिए। लेकिन, स्थिति इसके विपरीत है। छपरवा, लमनी व कोटा बफर को छोड़कर बाकी के रेंज बिना रेंजरों के चल रहे हैं।
ठीक नहीं ये संकेत: उत्तर प्रदेश में इसी तरह की एक बड़ी लापरवाही का पर्दाफाश बाघ संरक्षण को लेकर जारी इस मुहिम के तहत दैनिक जागरण ने किया था। उप्र में बाघ संरक्षण योजना को पुख्ता किए जाने के उद्देश्य से प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण इकाई का गठन वर्षों से लंबित है। बीते 5 दशक में प्रोजेक्ट टाइगर कार्यक्रम सहित बाघों की सुरक्षा को लेकर देश में जो अभूतपूर्व प्रयास हुए, ये घटनाएं संभवत: उनके अवसान का संकेत करती हैं। इस पर समय रहते सजग हो जाने की आवश्यकता है।
मैदानी अमला भी बेलगाम
रेंजर (परिक्षेत्र अधिकारी) के न होने से मैदानी अमला भी बेलगाम है। सब भगवान भरोसे चल रहा है। ऐसे में वन्यप्राणियों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। लंबे समय से अधिकारियों की तैनाती नहीं की जा सकी है। अचानकमार अभ्यारण्य में फिलहाल 12 रॉयल बंगाल टाइगर हैं। छत्तीसगढ़ के उदंती, गरियाबंद स्थित सीतानदी टाइगर रिजर्व और जगदलपुर स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व में भी स्टाफ की कमी बताई जा रही है।
बहानों से नहीं बनेगी बात
वाइल्ड लाइफ छत्तीसगढ़ के प्रमुख अधिकारी आरके सिंह ने माना कि यहां के सभी अभयारण्यों में रेंजरों की कमी है। उनका कहना है कि शासन को इससे अवगत कराया जाता रहा है, लेकिन अब तक समस्या का समाधान नहीं हो सका है। वहीं, अचानकमार टाइगर रिजर्व के उप निदेशक मनोज कुमार पांडेय ने बताया कि रेंजर नहीं रहने से कामकाज पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन नियुक्ति तो शासन को करनी है। इस संबंध में विभाग की ओर से शासन को अवगत कराया गया है।
छत्तीसगढ़ में रेंजरों की कमी है। शासन को इससे अवगत कराया जाता रहा है। -आरके सिंह, प्रमुख, वाइल्ड लाइफ छत्तीसगढ
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