Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'सरकार' नहीं, सरकार के 'बेटे' आए थे

    By Edited By:
    Updated: Sat, 29 Jun 2013 08:26 AM (IST)

    आपदा में पूरी केदारघाटी कराह रही है। रास्ते खत्म हो जाने से गांव के गांव कैद हैं। इसके बावजूद लोग किस हाल में हैं, शायद ही सरकार और अफसरों ने यह जानने की कोशिश की हो। जाल-चौमासी के 40 घरों में 12 दिन से चूल्हा नहीं जला। सरकार को भी खबर है, लेकिन गांव के ऊपर फिरकियां काटकर ल

    दिनेश कुकरेती, देहरादून। आपदा में पूरी केदारघाटी कराह रही है। रास्ते खत्म हो जाने से गांव के गांव कैद हैं। इसके बावजूद लोग किस हाल में हैं, शायद ही सरकार और अफसरों ने यह जानने की कोशिश की हो।

    जाल-चौमासी के 40 घरों में 12 दिन से चूल्हा नहीं जला। सरकार को भी खबर है, लेकिन गांव के ऊपर फिरकियां काटकर लौट गई। कुड़ी गांव की सुरजी देवी की आंखों से इतना पानी बह चुका है कि अब गीली तक नहीं होती। लेकिन, यह देखने को जमीन पर तो उतरना ही पड़ेगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जान बचाने के लिए खानी पड़ी घास

    बड़ासू जैसे कई गांवों को तो अब तक सरकार की फिरकियां भी नसीब नहीं। पूछने पर कुंवर सिंह राणा बोले, 'भुला 'सरकार' का तो पता नहीं, पर दो जहाज आए थे। सुना है उनमें सरकार के 'बेटे' बैठे थे।' बारह दिन से हर किसी की जुबां पर बस एक ही शब्द है, आपदा। हमारा ध्यान जिस किसी वस्तु पर भी जाता है, आलोक आपदा का ही होता है। लेकिन, अब आपदा 16-17 जून वाली नहीं रही। बड़ी विकट स्थिति है। तब उसने जो जख्म दिए थे, वह अब नासूर बनकर रिसने लगे हैं। फिर भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं। मंत्री, न विधायक, न अफसर। सब अपनी-अपनी में मस्त हैं।

    मौसम ने दिया साथ तो पूरे हो जाएंगे बचाव कार्य

    पूरी केदारघाटी कराह रही है, लेकिन लगता नहीं कि यह आवाज उनके कानों तक पहुंच रही है। उन्हें उजड़े हुए गांवों की तरफ झांकने से ज्यादा फिक्र अपने कलफ लगे झक्क सफेद कुर्ते पर बनी क्रीज की है। लोगों की जीवन की डोर भले ही टूट जाए, पर क्रीज नहीं टूटनी चाहिए। वे पैदल चलने में भी घबराते हैं। कहीं सफेद जूतों पर दाग लग गया तो.। मैंने जामू के नरेंद्र सिंह रमोला को फोन किया। बताने लगे गौरीकुंड से रामपुर-बड़ासू-त्रिजुगीनारायण तक कुछ नहीं बचा।

    जांबाजों को वतन का आखिरी सलाम

    सड़क न पुल। पगडंडियां व पैदल मार्ग तो जैसे इलाके में थे ही नहीं। पाइप लाइनें बह गईं। बिजली के खंभों तक का पता नहीं। सोनप्रयाग तो रेगिस्तान बन गया है। गुप्तकाशी से ऊपर चढ़ना एवरेस्ट पर चढ़ने सरीखा है। आसमान में बादल घिरते ही आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और छलकने लगता है माथों पर पसीना।

    शवों को भी है अपनी बारी का इंतजार

    फाटा निवासी विपिन जमलोकी बताते हैं कि अब तो पीड़ितों की मदद करने वालों के हाथ में भी कुछ नहीं बचा। राशन-पानी खत्म हो चुका है। कोई अपनी गाड़ी ले जाकर कहीं राशन का जुगाड़ करता भी तो उसे तेल नहीं दिया जा रहा। प्रशासन के आदेश हैं कि तेल सिर्फ उन्हीं वाहनों को दिया जाए जो राहत कार्यो में जुटे हैं। लेकिन, वे चलेंगे भी प्रशासन की मर्जी से ही। साफ है कि 'अपनों' की मदद को आगे आने वालों के हाथ बांधे जा रहे हैं।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर