सरकारी खर्च पर चुनाव कराने के प्रस्ताव पर बहस की जरूरत
जेटली ने राजनीतिक दलों को निर्वाचन बजट के माध्यम से फंड जुटाने की प्रस्तावित व्यवस्था की वकालत की है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकारी खर्चे पर चुनाव कराने संबंधी प्रस्ताव पर व्यापक बहस की जरूरत है क्योंकि लोग इस बारे में यह सवाल उठा सकते हैं कि चुनाव के लिए जनता पर अतिरिक्त कर बोझ क्यों डाला जाए। इसके अलावा इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि प्रचार अभियान की फंडिंग में इसके अलावा धन का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। हालांकि जेटली ने राजनीतिक दलों को निर्वाचन बजट के माध्यम से फंड जुटाने की प्रस्तावित व्यवस्था की वकालत की है।
जेटली ने आम बजट 2017-18 में राजनीतिक दलों के लिए निर्वाचन फंड की योजना का ऐलान किया है। प्रत्येक चुनाव से पहले बांड बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे और राजनीतिक दलों को चंदा देने वाला व्यक्ति बैंकों से बीयरर बांड खरीदकर अपनी पसंद के राजनीतिक दलों को चंद दे सकेंगे।
चुनाव प्रचार अभियान की फंडिंग पर चर्चा में जेटली ने कहा कि सरकारी खर्चे पर चुनाव कराने का प्रस्ताव एक संभावित सुझाव है लेकिन इस बारे में मेरे विचार भिन्न हैं। हालांकि मैं इसका आलोचक नहीं हूं। जेटली ने कहा कि भारत में बहुत से लोग इस बारे में सवाल उठा सकते हैं कि राजनीतिक चुनावों की फंडिंग के लिए जनता पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ क्यों डाला जाए। एक बात यह भी है कि इस मॉडल में सरकार राजनीतिक दल या उम्मीदवार को चुनाव लड़ने को पैसा देगी लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सिर्फ सरकार से मिली धनराशि का ही चुनाव में इस्तेमाल किया जाएगा और अन्य स्रोत से धनराशि खर्च नहीं की जाएगी।
जेटली ने कहा कि इसके पीछे दलील यह है कि निर्धारित सीमा के तहत खर्च न होने पर लोग कुछ राशि सरकार से लेंगे और शेष दूसरे स्रोत से जुगाड़ करेंगे। अगर सरकारी खर्च पर चुनाव कराना एक नारा है तो यह निश्चित नहीं है कि लागू होने के बाद यह कितना लोकप्रिय होगा।
जेटली ने कहा कि राजनीतिक दलों ने यह विचार दिया है लेकिन किसी ने भी इन दो बिन्दुओं पर बहस नहीं की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह चुनावों की सरकारी फंडिंग के विचार को पूरी तरह नकार नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस पर चर्चा होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सरकारी खर्चे पर चुनाव कराने का मॉडल इस बात पर निर्भर करता है कि कोई उम्मीदवार निर्धारित सीमा के तहत ही खर्च करता है या नहीं। इस बात का एहसास भी है कि यह धारणा सही नहीं है। इसके अलावा राजनीतिक दलों का खर्च सरकारी व्यय से अलग होगा। ऐसे में अगर यह मॉडल स्वीकार किया जाता है तो इस पर सवाल उठेंगे।
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