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केजरीवाल और नजीब के बीच तेज हुई जंग

दिल्ली सरकार पर अधिकार को लेकर सूबे के उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच लड़ाई और तीखी हो गई है। बहुमत के बल पर दबाव कायम करने की केजरीवाल की रणनीति के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उपराज्यपाल जंग ने मुख्यमंत्री को संवैधानिक मर्यादा में रहने की नसीहत

By Sudhir JhaEdited By: Published: Sun, 03 May 2015 07:23 PM (IST)Updated: Sun, 03 May 2015 10:14 PM (IST)
केजरीवाल और नजीब के बीच तेज हुई जंग

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार पर अधिकार को लेकर सूबे के उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच लड़ाई और तीखी हो गई है। बहुमत के बल पर दबाव कायम करने की केजरीवाल की रणनीति के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उपराज्यपाल जंग ने मुख्यमंत्री को संवैधानिक मर्यादा में रहने की नसीहत दी है और यह भी साफ कर दिया है कि अधिकार के मामले में असली ताकत उनके ही पास है।

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राजनिवास और मुख्यमंत्री कार्यालय के बीच बढ़ रहे टकराव को देखते हुए उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि उपराज्यपाल इस मामले को गृह मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति तक ले जा सकते हैं। सूत्रों ने बताया कि इस मामले में उपराज्यपाल ने गृह मंत्रालय के आला अधिकारियों से भी बात की है और उसके बाद ही उन्होंने मुख्यमंत्री को कड़ा संदेश भेजा है।

इधर, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मुख्य सचिव केके शर्मा ने भी गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। इस मुलाकात को भी सरकार के स्तर पर पैदा हुए तनाव से ही जोड़कर देखा जा रहा है। उपराज्यपाल जंग ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए रविवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल को निर्देश दिए हैं कि वे अपना वह आदेश वापस लें जिसमें अधिकारियों से कहा गया है कि सरकार से संबंधित सभी फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय के माध्यम से उपराज्यपाल के पास जाएंगी। उन्होंने तमाम अधिकारियों को भी सख्त निर्देश दिए हैं कि वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के गठन के लिए बनाए गए 1991 के कानून और ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रुल्स 1993 का कड़ाई से पालन करें।

सलाह देने तक सीमित है भूमिका

उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे संदेश में यह भी साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की भूमिका केवल उपराज्यपाल को सरकार चलाने में सलाह देने और विचार-विमर्श करने तक ही सीमित है। उपराज्यपाल बगैर इस सलाह और विचार-विमर्श के भी फैसले लेने को स्वतंत्र हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे तमाम मामले जिन्हें लेकर दिल्ली विधानसभा कानून बना सकती है, निश्चित रूप से अंतिम स्वीकृति के लिए उपराज्यपाल के पास आएंगे।


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