खेती को बदल देगा ‘2967’
गेहूं उत्पादक राज्यों में पिछले दो सालों के रतुआ मुक्त यह प्रजाति इतनी इतनी लोकप्रिय हुई कि इसकी खेती का रकबा 60 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। यह अकेली प्रजाति है, जिसकी इतनी जल्दी कुल पैदावार में हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक हो गई है। गेहूं की उत्पादकता के
By Abhishake PandeyEdited By: Published: Sat, 01 Nov 2014 08:59 AM (IST)Updated: Sat, 01 Nov 2014 09:13 AM (IST)
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। गेहूं उत्पादक राज्यों में पिछले दो सालों के रतुआ मुक्त यह प्रजाति इतनी इतनी लोकप्रिय हुई कि इसकी खेती का रकबा 60 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। यह अकेली प्रजाति है, जिसकी इतनी जल्दी कुल पैदावार में हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक हो गई है। गेहूं की उत्पादकता के साथ गुणवत्तायुक्त भूसा किसानों को दोहरा लाभ दे रहा है। अकेले इसके भूसे से ही किसानों को 62 हजार करोड़ की कमाई हुई है। अब इस किस्म को समूचे उत्तरी राज्यों के साथ पूर्वी राज्यों में भी इस साल से भेजा जा रहा है।
एचडी-2967 किस्म के इस गेहूं की मांग के चलते ही इसकी कुल पैदावार का 15 फीसद बीजों में खपने लगा है। इस प्रजाति के गेहूं के जनक कृषि वैज्ञानिक डॉ. केवी प्रभू हैं। प्रभू भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) के संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) हैं। उनका कहना है कि लंबे समय के बाद शानदार उत्पादकता के साथ स्वादिष्ट रोटी वाली प्रजाति तैयार की जा सकी है। उनके मुताबिक गेहूं की नई प्रजाति ने समूचे उत्तर भारत के 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर केवल दो वर्षो के भीतर ही कब्जा जमा लिया है। इस प्रजाति की लोकप्रियता का आलम यह है कि अब इसकी मांग समूचे गेहूं उत्पादक राज्यों से आने लगी है। रतुआ (रस्ट) मुक्त इस प्रजाति में अन्य रोगों से लड़ने की क्षमता है। प्रभू के मुताबिक इसकी उत्पादकता न्यूनतम साढ़े पांच से छह टन प्रति हेक्टेयर है। पंजाब के खेतों में इसकी उत्पादकता नौ टन प्रति हेक्टेयर रही है। इसकी बुवाई 10 नवंबर के आसपास होनी चाहिए।
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