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    हर चौथा भारतीय भुगत चुका है छुआछूत

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Mon, 04 May 2015 07:31 PM (IST)

    कानूनी तौर पर खत्म किए जाने के 65 साल बाद भी देश का हर चौथा नागरिक किसी-न-किसी रूप में छुआछूत के अनुभवों से गुजर चुका है। एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण मे ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। कानूनी तौर पर खत्म किए जाने के 65 साल बाद भी देश का हर चौथा नागरिक किसी-न-किसी रूप में छुआछूत के अनुभवों से गुजर चुका है। एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद और मैरीलैंड विश्वविद्यालय, अमेरिका द्वारा यह सर्वेक्षण किया गया है। रविवार को दलित बुद्धिजीवियों, लेखकों और शिक्षाविदों के सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। सर्वेक्षण के अनुसार, मुस्लिम, ईसाई, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समेत लगभग सभी जाति और धर्म के लोगों का कहना है कि उन्हें कभी-न-कभी इस समस्या का सामना करना पड़ा है। सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट बाद में जारी की जाएगी।

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    दिल दहलाने वाला नतीजा

    महाराष्ट्र सांस्कृतिक व रणनीतिक अध्ययन समिति और कुछ कार्य समूहों द्वारा आयोजित इस सेमिनार में वक्ताओं ने सर्वेक्षण के नतीजों को दिल दहलाने वाला करार दिया। राज्य सभा सदस्य भालचंद्र मुनगेकर ने दलित होने के चलते जिंदगी में मिली दुश्वारियों की चर्चा की। हालांकि उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और विष्णु सखाराम खांडेकर के लेखन ने उनकी सोच को बहुत प्रभावित किया। जेएनयू में कला और सौंदर्यशास्त्र के प्राध्यापक वाईएस अलोन ने कहा कि अंबेडकर के आंदोलन के बाद सवर्णो के वर्चस्व में कमी आई है।

    इग्नू में सहायक प्राध्यापक स्मिता पाटिल ने महिला दलित लेखकों के योगदान पर प्रकाश डाला। जेएनयू के एसोसिएट प्रोफेसर राम चंद्र ने हिंदू समाज की जाति व्यवस्था को पूरी तरह खारिज करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक वामन केंद्रे ने कहा कि नामदेव ढसाल, अन्नाभाऊ साथे और दया पवार जैसे महान दलित लेखकों ने इस समाज में आत्मविश्वास का संचार किया।