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बिहार: शिक्षा से छूटी यारी, बच्चे बेच रहे ताड़ी

डीके कालेज के पास ताड़ी बेच रहे दो नन्हे-मुन्ने भाई सोनू और मोनू की तरफ न तो पुलिस की नजर पड़ रही है और न ही शिक्षा विभाग के किसी अफसर या स्वयंसेवी संस्था को इनकी चिंता है। दोनों स्कूल जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं, पर इससे ऊपर पेट है जो उनकी इच्छा की राह में बाधा खड़ी कर रहा है। मजबूरी

By Edited By: Published: Sun, 26 May 2013 04:44 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2013 05:37 PM (IST)

डुमरांव [बक्सर], [अरुण विक्रांत]। डीके कालेज के पास ताड़ी बेच रहे दो नन्हे-मुन्ने भाई सोनू और मोनू की तरफ न तो पुलिस की नजर पड़ रही है और न ही शिक्षा विभाग के किसी अफसर या स्वयंसेवी संस्था को इनकी चिंता है। दोनों स्कूल जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं, पर इससे ऊपर पेट है जो उनकी इच्छा की राह में बाधा खड़ी कर रहा है। मजबूरी जो न कराए, कैमरा सामने देखते ही दोनों डर जाते हैं।

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संवाददाता जब उनसे प्यार से स्कूल की बजाय ताड़ी बेचने की वजह पूछता है तो जवाब हैरान करने वाला है। सोनू-मोनू एक स्वर में कहते हैं कि उन लोगों का भी पढ़ने का मन करता है, परंतु, पिता की तबीयत खराब रहने के कारण दोनों को उनका काम करना पड़ा। दोनों भाई ताड़ी बेचकर पैसा मां को दे देते हैं।

शिक्षक प्रकाश सिंह कहते हैं कि सरकार व प्रशासन सर्वशिक्षा अभियान व शिक्षा के अधिकार को शत-प्रतिशत लागू कराने के लिए भारी-भरकम राशि खर्च करती है। लेकिन, इसका बेहतर परिणाम नजर नहीं आता है।

किताब की जगह ताड़ी चुनौती

सामाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ राय कहते हैं कि बच्चों के हाथों में किताब की जगह ताड़ी सरकार व समाज के लिए चुनौती है। वे कहते हैं कि इस स्थिति की जिम्मेदारी केवल सरकार व प्रशासन पर नहीं थोपी जा सकती। नागरिकों को भी सभ्य समाज के निर्माण में अपनी भूमिका तय करनी होगी।

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