चुनाव से ज्यादा दिलचस्प विरासत की जंग
राजकिशोर, चेन्नई। तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के नतीजों से ज्यादा लोगों की दिलचस्पी द्रमुक में चल रही पारिवारिक महाभारत में है। द्रमुक सुप्रीमो एम करुणा ...और पढ़ें

राजकिशोर, चेन्नई। तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के नतीजों से ज्यादा लोगों की दिलचस्पी द्रमुक में चल रही पारिवारिक महाभारत में है। द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि ने परिवार के भीतर चल रही विरासत की जंग में सेहरा अपने छोटे पुत्र एमके स्टालिन के सिर बांध दिया है। उनके बड़े बेटे एमके अलागिरी की खुली बगावत व पार्टी के भीतर तेजी से बदले समीकरणों के बीच यह चुनाव स्टालिन के साथ-साथ द्रमुक के भविष्य के लिए भी बेहद अहम हो गया है। वास्तव में द्रमुक की भीतरी लड़ाई ने न सिर्फ करुणानिधि की चिर प्रतिद्वंदी जयललिता को ताकत दी है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को भी तीन-चार सीटों पर इस झगड़े से कुछ वोटों का फायदा हो सकता है।
दरअसल, द्रमुक में उत्तराधिकार की जंग में फैसला ऐसे वक्त में स्टालिन के पक्ष में गया है, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। साथ ही, श्रीलंका में तमिलों के नरसंहार का मामला भी राज्य में बड़ा भावनात्मक मुद्दा है। मगर सियासी विरासत की इस जंग को हारने के बाद जिस तरह से अलागिरी ने 15 दिन के भीतर अपने सौतेले भाई स्टालिन की मौत की भविष्यवाणी कर दी और जिस तरह के बयान चौतरफा आ रहे हैं, उसमें अपने राजनीतिक मुद्दों पर द्रमुक प्रखर नहीं हो पा रही है। 2जी घोटाले की छाया से द्रमुक उबरी नहीं है और ऊपर से अलागिरी ने जिस तरह द्रमुक को पूरे प्रदेश में हराने की अपील की है, उससे भी उनका अभियान जयललिता या राजग के मुकाबले मुद्दों के लिहाज से पिछड़ता नजर आ रहा है।
स्टालिन की पार्टी में ताजपोशी से बौखलाए अलागिरी ने द्रमुक के खिलाफ खुलकर अभियान छेड़ दिया है। पार्टी से पहले किनारे किए गए और फिर निकाल बाहर फेंके गए अलागिरी कांग्रेस से लेकर अपने पुराने विरोधियों वाइको तक से मिल रहे हैं। अपने प्रभाव वाले दक्षिण तमिलनाडु के हिस्से में अलागिरी सब जगह घूम-घूम कर द्रमुक को हराने की अपील कर रहे हैं। अलागिरी कह रहे हैं, 'मेरे बिना उन्हें सिर्फ दो सीटें मिलेंगे।'
बहरहाल, लोकसभा के लिए स्टालिन ने पार्टी के सभी 34 टिकट अपनी मर्जी से बांटकर यह भी साफ कर दिया है कि उनकी बहन कनीमोरी या दयानिधि मारन आदि को भी उनका नेतृत्व स्वीकारना होगा। द्रमुक के पूरे प्रचार अभियान में भी करुणानिधि के साथ-साथ पूरे प्रदेश में स्टालिन के ही पोस्टर या होर्डिग्स हैं। स्टालिन ने तमाम लोगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर उन्हें भी ठिकाने लगा दिया है। द्रमुक के एक स्थानीय नेता एम मलिंगम के मुताबिक 'दलपति (स्टालिन) के अलावा कोई नहीं है तमिलनाडु में। अलागिरी कहीं नहीं हैं।' साफ है कि अलागिरी के विश्वस्तों को स्टालिन ने पार्टी में किनारे लगा दिया है।
भले ही स्टालिन द्रमुक में उत्तराधिकार की लड़ाई जीत गए हों, लेकिन तमिलनाडु की सियासत में अपनी हनक बनाने के लिए इन नतीजों की कसौटी पर उन्हें परखा जाएगा। वैसे द्रमुक में करुणानिधि के बाद स्टालिन ही सबसे लोकप्रिय नेता रहे हैं, लेकिन उत्तराधिकार की जंग में पार्टी को नुकसान तो हुआ ही है। वैसे शहरी मतदाता स्टालिन की सफलता की कामना भी कर रहे हैं। वे अलागिरी की तुलना में स्टालिन को ज्यादा काबिल व बेहतर नेता मानते हैं। एक नामी-गिरामी होटल के मैनेजर कृष्णामूर्ति कहते हैं कि स्टालिन के पास विकास का एजेंडा व प्रशासन की समझ है। वैसे इस दफा यहां लहर जयललिता की है, लेकिन स्टालिन का भी सफल होना जरूरी है, ताकि द्रमुक सही हाथों में रहे। कारण है कि यहां सत्ता एक बार अन्नाद्रमुक तो दूसरी बार द्रमुक के पास रहती है।

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