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    कांग्रेस में कलह सतह पर, 'टीम राहुल' की वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बगावत

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    Updated: Wed, 03 Sep 2014 11:31 PM (IST)

    लोकसभा चुनावों में हार की टीस और एंटनी कमेटी को लेकर आलाकमान की चुप्पी से कांग्रेस में बगावत के हालात पैदा हो गए हैं। हार के कारणों पर दो फाड़ हो चुकी कांग्रेस में संगठन के बदलाव में पद की दौड़ के बीच पार्टी के भीतर चल रहा सत्ता संघर्ष खुलकर बाहर आ गया है। 'ओल्ड गार्ड' और

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों में हार की टीस और एंटनी कमेटी को लेकर आलाकमान की चुप्पी से कांग्रेस में बगावत के हालात पैदा हो गए हैं। हार के कारणों पर दो फाड़ हो चुकी कांग्रेस में संगठन के बदलाव में पद की दौड़ के बीच पार्टी के भीतर चल रहा सत्ता संघर्ष खुलकर बाहर आ गया है। 'ओल्ड गार्ड' और 'टीम राहुल' में चल रही जंग के बीच पार्टी का पक्ष रखने वाले नेताओं में वर्चस्व की जंग भी खुलकर सामने आ गई है।

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    लोकसभा चुनाव में हार के बाद दो बार विभाजित हो चुकी कांग्रेस एक बार फिर उसी रास्ते पर है। पार्टी में चुनावी हार के बाद निशाने पर आए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को बचाने में वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी को लेकर 'टीम राहुल' ने अभियान शुरू कर दिया है। वहीं, पार्टी का पक्ष रख रहे नेताओं को लेकर भी पार्टी उपाध्यक्ष कार्यालय सख्त हो गया है।

    राहुल के करीब माने जाने वाले पार्टी सचिव के राजू के नेतृत्व में कांग्रेस सचिवों की एक टीम ने मंगलवार रात बैठक की। इस बैठक में पार्टी के दर्जन भर से अधिक सचिव मौजूद रहे। बैठक में कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ बयानबाजी को लेकर चर्चा हुई और यह तय किया गया कि इसको लेकर सचिव एक पत्र तैयार कर कांग्रेस अध्यक्ष को सौपेंगे। हालांकि, पत्र में मजमून को लेकर एक राय नही बन पाने और कुछ सचिवों के बाहर होने के कारण यह बैठक बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गई।

    बैठक में शामिल एक सचिव के मुताबिक, अब और चुप नही रहा जा सकता, पार्टी में बदलाव और अनुशासन हीन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने चुनावी हार के लिए जिम्मेदारी तय किए जाने में हो रही देरी और संगठन में होने वाले बदलाव को लेकर कांग्रेस आलाकमान के इंतजार करो की नीति को जिम्मेदार ठहराया। सूत्रों के मुताबिक राहुल संगठन में बदलाव से पहले चाहते हैं कि पार्टी के कुछ महासचिव स्वेच्छा से अपने पद छोड़ दें। ऐसे में माना जा रहा है कि 'टीम राहुल' में बेहद महत्वपूर्ण और पार्टी उपाध्यक्ष के सलाहकार माने जाने वाले नेता के संकेत पर हुई बैठक का उद्देश्य वरिष्ठ नेताओं को यह संदेश देना है।

    मनीष के बयान ने डाला आग में घी: संप्रग सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी के बयान ने भी पार्टी की इस भीतरी कलह को और सतह पर ला दिया है। मनीष ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा को ओडिशा से राज्यसभा में लाए जाने का तर्क देकर मोदी सरकार के सतशिवम को केरल का राज्यपाल बनाए जाने को क्लीन चिट देने पर कांग्रेस नेतृत्व उखड़ गया है। पार्टी ने मनीष के बयान को न सिर्फ उनकी निजी राय बताया, बल्कि स्पष्टीकरण भी मांग लिया है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की ओर से नियुक्त प्रवक्ताओं में नाम न होने के बावजूद मनीष का सुबह-सुबह कुछ खास चैनलों को बाइट देना कम्युनिकेशन विभाग को अखर रहा था। वैसे भी मनीष का कम्युनिकेशन प्रमुख अजय माकन से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। सूत्रों के मुताबिक मनीष से पार्टी ने इस मामले को लेकर सफाई मांगी है। उनकी टीवी पैनलिस्ट पैनल से भी छुटटी भी हो सकती है। विभाग की नजर ऐसे कई और नेताओं पर भी है जो पार्टी के प्रवक्ताओं के पैनल में न होने के बावजूद हर मुद्दे पर पार्टी का पक्ष रख रहे हैं।

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    कोट्स : 'इससे एक गलत परंपरा शुरू होगी और पूर्व चीफ जस्टिस के फैसलों पर सवाल किए जाएंगे। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ समझौता है।'

    -आशुतोष, आम आदमी पार्टी

    'सभी विवादों से परे अब वे हमारे राज्यपाल हैं। हमारी सरकार उनका स्वागत करेगी।'

    -रमेश चेन्नीथला, केरल के गृहमंत्री

    'सतशिवम के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी को कोई लाभ पहुंचाया, जिसके चलते उन्हें राज्यपाल बनाया जा रहा है।'

    -राम जेठमलानी, पूर्व कानून मंत्री'किसी महत्वपूर्ण पद के लिए यदि सरकार की ओर से नियुक्ति की जाती है, तो सेवानिवृत्त जजों को इससे दूर रखा जाना चाहिए।'

    -शांति भूषण, पूर्व कानून मंत्री