अति न्यायिक सक्रियता पर गरमाई संसद, एकजुट दिखे सभी सांसद
न्यायपालिका की तरफ से विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप का मामला बुधवार को लोकसभा में जोर-शोर से उठा।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि अगर कार्यपालिका अपने अधिकारों की सीमा से बंधी हुई है, तो न्यायपालिका को भी याद रखना चाहिए कि संविधान ने उसके लिए भी सीमा तय रखी है।
न्यायपालिका की तरफ से विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप का मामला बुधवार को लोकसभा में जोर-शोर से उठा। इस मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष के सांसद एकजुट दिखे। सांसदों ने एक सुर में न्यायपालिका की तरफ से उनके कार्यक्षेत्र में हो रहे हस्तक्षेप पर चिंता दिखाई। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि क्या उसके पास इस हालात से निबटने का कोई फार्मूला भी है?
कानून मंत्री ने सांसदों की चिंता को जायज तो ठहराया, लेकिन उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सरकार न्यायपालिका की पूरी आजादी के पक्ष में है। हालांकि, न्यायिक नियुक्ति आयोग को सुप्रीम कोर्ट से खारिज करने के मामले में नाराजगी जताने से भी उन्होंने कोई परहेज नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जताई थी कि कानून मंत्री की तरफ से नियुक्त न्यायाधीश निष्पक्ष न हो। इस पर प्रसाद ने सदन में कहा, 'प्रधानमंत्री के पास परमाणु बटन जैसी जिम्मेदारी होती है। ऐसे में क्या प्रधानमंत्री अपने कानून मंत्री के जरिये न्यायाधीशों की नियुक्ति करें तो क्या उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता? यह एक गंभीर सवाल है।' प्रसाद जब यह बात कह रहे थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में ही उपस्थित थे।
प्रसाद ने देश के तमाम न्यायालयों में पुराने मामलों को कम करने की सरकार की कोशिशों के बारे में बताया। लेकिन, यह भी स्वीकार किया अभी स्थिति बहुत सुधरी नहीं है। वर्ष 2009 से 2016 तक के आंकड़े देते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 62,016 मामले, उच्च न्यायालयों में 40.11 लाख मामले और जिला न्यायालयों में 2.85 करोड़ मामले लंबित हैं। सरकार ज्यादा-से-ज्यादा न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की कोशिश कर रही है। पिछले वर्ष उच्च न्यायालयों में 126 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है। लेकिन, विपक्षी सांसदों ने इसे बेहद अपर्याप्त बताया।
सांसद ने पूछा, सदन कोर्ट से आजाद है या नहीं
भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने पूछा कि सुप्रीम कोर्ट क्रिकेट प्रशासन से लेकर मेडिकल कालेजों में दाखिले तक के बारे में नियम बना रहा है। यह भी बताया जाए कि क्या सदन कोर्ट से आजाद है या नहीं? उनकी इस टिप्पणी पर सभी सांसदों ने मेजें थप-थपाकर खुशी का इजहार किया। सीपीएम के सांसद मुहम्मद सलीम ने कोर्ट की कार्रवाई कैमरे में करवाने का सवाल पूछा तो प्रसाद ने जवाब दिया कि यह संभव नहीं है।