Move to Jagran APP

किसी को गुपचुप तरीके से नहीं दी जा सकती फांसी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा कि फांसी या मृत्युदंड की सजा की पुष्टि के साथ ही जीवन का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। मृत्युदंड से दंडित व्यक्ति को भी जीवन की गरिमा का अधिकार है। सर्वोच्च अदालत ने उप्र में वर्ष 2008 में एक

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Thu, 28 May 2015 09:55 AM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 10:06 AM (IST)
किसी को गुपचुप तरीके से नहीं दी जा सकती फांसी: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा कि फांसी या मृत्युदंड की सजा की पुष्टि के साथ ही जीवन का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। मृत्युदंड से दंडित व्यक्ति को भी जीवन की गरिमा का अधिकार है। सर्वोच्च अदालत ने उप्र में वर्ष 2008 में एक युवती व उसके प्रेमी का डेट वारंट (फांसी देने का आदेश) खारिज कर दिया। इस युवती ने प्रेमी के साथ मिलकर अपने परिवार के सात लोगों की हत्या की थी। इनमें दस माह का एक बच्चा भी था।

loksabha election banner

कोर्ट ने कहा कि डेथ वारंट जल्दबाजी में और अनिवार्य दिशा निर्देशों की अवज्ञा कर जारी किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप्र के अमरोहा के सेशंस जज ने 21 मई को फांसी देने का आदेश जल्दबाजी में और फांसी की पुष्टि होने के मात्र छह दिन में जारी कर दिया। इसमें दोषियों को 15 मई को सुनाए गए आदेश के खिलाफ अपील करने के अधिकार के अनुसार 30 दिन की अनिवार्य मोहलत भी नहीं दी गई।

राज्यपाल के समक्ष लगा सकते हैं दया याचिका सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषषी शबनम व सलीम न्यायिक राहत पाने में विफल रहने पर उप्र के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर कर सकते थे। न्यायमूर्ति एके सीकरी व यूयू ललित की पीठ ने कहा कि लगता है सेशंस कोर्ट ने अभियुक्तों के न्यायिक हक खत्म होने का इंतजार किए बगैर जल्दबाजी में डेट वारंट पर साइन कर दिए।

जबकि सुप्रीम कोर्ट व इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अभियुक्तों के जीवन की गरिमा की रक्षा के लिए कुछ चुनिंदा दिशा निर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन करने का कहा था। अनुच्छेद 21 में है जीवन का हक विद्वान न्यायाधीश द्वय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया जीवन का अधिकार, मृत्युदंड की पुष्टि के साथ समाप्त नहीं हो जाता। जीवन की गरिमा का अधिकार भी मृत्युदंड की सजा पाए अभियुक्तों के लिए आधार है। इसलिए मृत्युदंड या फांसी की सजा पर अमल भी पूरी गरिमा के साथ होना चाहिए।

मृत्युदंड से पूर्व इन दिशा निर्देशों का पालन अनिवार्य

-दोषियों को उनके परिजन से मिलने का हक है।
फांसी कम से कम दर्दनाक हो।
अंतिम इच्छा पूरी की जाए।

सुप्रीम कोर्ट की तमाम खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.