आंतरिक संघर्ष से नहीं उबर पा रही है कांग्रेस
देश के दो राज्यों में हो रहे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों के बीच कांग्रेस पार्टी आंतरिक संघर्ष से जूझ रही है। राहुल गांधी के पक्ष में मुखर होकर उनके करीबी होने का एलान कर चुके कुछ सचिवों तक ऐसे कई नेताओं की दौड़ बढ़ने लगी है जो किसी तरह पद बचाए रखना चाहते हैं। राहुल की इस अपील पर
नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। देश के दो राज्यों में हो रहे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों के बीच कांग्रेस पार्टी आंतरिक संघर्ष से जूझ रही है। राहुल गांधी के पक्ष में मुखर होकर उनके करीबी होने का एलान कर चुके कुछ सचिवों तक ऐसे कई नेताओं की दौड़ बढ़ने लगी है जो किसी तरह पद बचाए रखना चाहते हैं। राहुल की इस अपील पर भी सवाल उठने लगे है कि सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा दे देना चाहिए।
विधानसभा चुनावों से पहले राज्यों में हुई बगावत में कई महत्वपूर्ण नेता गंवा चुकी कांग्रेस पार्टी के सामने संगठन में फैले असंतोष से निपटने की चुनौती है। चुनाव में हार के बाद पार्टी में सबसे ज्यादा निशाने पर आए पार्टी उपाध्यक्ष के करीबियों को बचाने में बरती गई ढील अब खेमेबंदी के रूप में सामने आ रही है। पार्टी के युवा सचिवों से शुरू हुई गुटबाजी की यह राह अब अगले फेरबदल में बचे रहने की जुगत कर रहे वरिष्ठ नेताओं तक पहुंच गई है। इन सचिवों के पीछे खड़े तमाम वरिष्ठ नेता अब न सिर्फ इन सचिवों के कमरों में दिखने लगे हैं बल्कि भविष्य की गणित का गुणा भाग भी कर रहे हैं।
संगठन में बदलाव में हो रही देरी के पीछे सत्ता हस्तांतरण के तरीके को लेकर आला स्तर पर मतभेद होना है। सूत्रों के मुताबिक, राहुल चाहते हैं कि पार्टी के सभी महासचिव, सचिव व फ्रंटल संगठन के प्रमुख अपने पदों से इस्तीफा दे दें, ताकि पार्टी का पुनर्गठन योग्यता के आधार पर किया जा सके। इसका तीखा विरोध होने की आशंका से आलाकमान इस पर मौन साधे है। वैसे राहुल की इस मंशा को खुद उनके करीबी ही व्यावहारिक नही पा रहे हैं। पार्टी में सबसे उम्रदराज महासचिवों में से एक व राहुल की कोर टीम में शामिल नेता का कहना है कि कांग्रेस के पुनर्गठन के लिए राहुल गांधी का रोड मैप ठीक है, लेकिन यह समय इतने बड़े बदलाव के लिए उचित नही है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर का कहना है, 'हमे ऐसी स्थिति नहीं बनानी चाहिए जिसमें कांग्रेस की सेवा करने वालों को धक्के मार के बाहर कर दिया जाए और नए लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया जाए।' बदलाव को मां-बेटे के बीच की बात कहते हुए अय्यर ने कहा, 'मां के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं जबकि बेटे राहुल उपाध्यक्ष हैं, ऐसे में यह हस्तांतरण कैसे होगा यह दोनो को तय करना है।'
इससे पहले पार्टी में उम्र को आधार बना कर बदलाव की मांग की जा चुकी है। टीम राहुल के जयराम रमेश ने पार्टी पदों के लिए उम्र सीमा का प्रस्ताव रखा था। बाद में पार्टी के वरिष्ठ महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने महासचिव व सचिव जैसे सक्रिय पदों पर उम्र सीमा तय करने की मांग कर पार्टी को बदलाव के जिए जमीन तैयार करके दी थी लेकिन राहुल के बेहद करीबी माने जाने वाले मधुसूदन मिस्त्री ने इसका विरोध किया था। मिस्त्री का कहना था, 'मेरी उम्र साठ हो या चालीस, मुझे कोई पद देना या ना देना कांग्रेस अध्यक्ष का विशेषाधिकार है।' कांग्रेस ने भी नेताओं की व्यक्तिगत राय बताकर इससे किनारा कर लिया था।
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