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सीबीआइ ने खोली पोल, कानून मंत्री-पीएमओ ने बदलवाई रिपोर्ट

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। संप्रग सरकार चाहे जितना आक्रामक रुख अपना रही हो, लेकिन कोयला घोटाले की कालिख उसके चेहरे पर गहराती ही जा रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा का हलफनामा सरकार सहित कानून मंत्री अश्विनी कुमार के हलक में फंसता नजर आ रहा है। हलफनामे से कानून मंत्री से लेकर सरकारी वकीलों का वह झूठ बेनकाब हो गया है, जिसमें उन्होंने जांच रिपोर्ट नहीं देखने का दावा किया था। सिन्हा ने स्वीकार किया है कि जांच रिपोर्ट के मसौदे में कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती और प्रधानमंत्री कार्यालय व कोयला मंत्रालय के सुझावों पर बदलाव किए गए। इस हलफनामे के बाद कानून मंत्री अश्विनी कुमार का बचना मुश्किल ही होगा। अब सभी की निगाहें 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के रुख पर टिक गई हैं।

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2013 09:51 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2013 09:46 PM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। संप्रग सरकार चाहे जितना आक्रामक रुख अपना रही हो, लेकिन कोयला घोटाले की कालिख उसके चेहरे पर गहराती ही जा रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा का हलफनामा सरकार सहित कानून मंत्री अश्विनी कुमार के हलक में फंसता नजर आ रहा है। हलफनामे से कानून मंत्री से लेकर सरकारी वकीलों का वह झूठ बेनकाब हो गया है, जिसमें उन्होंने जांच रिपोर्ट नहीं देखने का दावा किया था। सिन्हा ने स्वीकार किया है कि जांच रिपोर्ट के मसौदे में कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती और प्रधानमंत्री कार्यालय व कोयला मंत्रालय के सुझावों पर बदलाव किए गए। इस हलफनामे के बाद कानून मंत्री अश्विनी कुमार का बचना मुश्किल ही होगा। अब सभी की निगाहें 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के रुख पर टिक गई हैं।

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अश्विनी कुमार और वाहनवती ने तमाम आरोपों से इन्कार करते हुए कहा था कि रिपोर्ट के मसौदे में बदलाव के लिए उनकी ओर से कोई सुझाव नहीं दिया गश था। वाहनवती ने तो यहां तक दावा किया था कि उन्होंने प्रगति रिपोर्ट का मसौदा देखा तक नहीं था। पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरिन रावल ने दावा किया था कि ये रिपोर्ट किसी ने नहीं देखी। अपने नौ पन्नों के दूसरे हलफनामे में सिन्हा ने इन दावों को झुठलाते हुए माना कि जांच की प्रगति रिपोर्ट को लेकर तीन बैठकें हुई। पहली बैठक कानून मंत्री अश्विनी कुमार के दफ्तर में, दूसरी अटॉर्नी जनरल, जबकि तीसरी सीबीआइ दफ्तर में हुई। इनमें कानून मंत्री, अटॉर्नी जनरल, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल, पीएमओ के संयुक्त सचिव शत्रुघ्न सिंह और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव एके भल्ला मौजूद रहे।

सिन्हा ने माना कि सबसे ज्यादा बदलाव कानून मंत्री ने कराए, जबकि शत्रुघ्न सिंह व एके भल्ला सीबीआइ अधिकारियों से नियमित संवाद कर रहे थे। सीबीआइ निदेशक ये स्पष्ट नहीं कर सके कि प्रगति रिपोर्ट में ठीक-ठीक क्या बदलाव किए गए और किसने क्या बदलाव कराए। हालांकि, उन्होंने यह दावा जरूर किया कि प्रगति रिपोर्ट की केंद्रीय विषयवस्तु में बैठकों के बाद कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। इसमें किसी भी संदिग्ध या आरोपी के खिलाफ न तो कोई साक्ष्य हटाया गया और न ही किसी को छोड़ा गया है। बकौल सीबीआइ ये सभी बदलाव स्वीकार किए जाने योग्य थे। सिन्हा ने जाने-अनजाने किसी भी भूलचूक के लिए बिना शर्त क्षमा याचना करते हुए कहा है कि सीबीआइ मैनुअल में ये कहीं नहीं लिखा है कि उसे अपनी जांच रिपोर्ट किसी के साथ साझा करना चाहिए या नहीं। हलफनामे के बाद कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने फिर प्रधानमंत्री से मुलाकात की और दोहराया कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। हालांकि, सरकार के सूत्र भी मान रहे हैं कि 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कानून मंत्री का बचना नामुमकिन होगा।

बदलाव जो कराए गए

-सीबीआइ ने लिखा था कि कोयला खदान आवंटन के दौरान स्क्रीनिंग कमेटी ने कोई भी ऐसा चार्ट नहीं बनाया था, जिसमें कंपनियों की क्षमता और आवंटन के आधार का कोई भी ब्योरा हो। कानून मंत्री ने जांच रिपोर्ट से ये बात हटवा दी।

[विपक्ष के मुताबिक इससे साफ है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने आवंटन से पहले कोई आकलन ही नहीं किया था। लिहाजा इसे हटवा दिया गया।]

-सीबीआइ ने प्रगति रिपोर्ट में जांच का जो दायरा बनाया था, उसमें भी कानून मंत्री ने फेरबदल कराए। सीबीआइ ने सवाल उठाया था कि खदानों का आवंटन उस वक्त क्यों हुआ, जब सरकार आवंटन के तरीकों को बदलने के बारे सोच रही थी। इसमें भी कानून मंत्री के कहने पर बदलाव किए गए।

[भाजपा ने याद दिलाया कि 2004 में पेश संशोधन को सरकार ने आठ साल तक लटकाए रखा था और उसी बीच गलत तरीके से आवंटन किया गया था। यही खामी कैग रिपोर्ट में भी बताई गई थी।]

-सीबीआइ ने अपनी प्रगति रिपोर्ट में लिखा था कि कंपनियों को आवंटन के लिए कोई दिशा-निर्देश मापदंड या आधार नहीं था। यह बदलाव पीएमओ के संयुक्त सचिव के कहने पर हुआ था।

[भाजपा के अनुसार यह अहम बिंदु है, जिसे हटवा दिया गया। दरअसल इसी की आड़ में कोयला मंत्रालय और पीएमओ ने कोयला ब्लॉक में मनमानी की।]

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