सिफर साबित हुई कोयला घोटाले की जांच
कोयला घोटाले पर सीबीआइ की अब तक की जांच सिफर साबित हुई है। जांच एजेंसी अपनी पहली चार्जशीट में कोयला ब्लॉक आवंटन में घोटाला साबित करने में पूरी तरह नाकाम रही है। सीबीआइ ने केवल एक निजी कंपनी और उसके दो निदेशकों के खिलाफ फर्जीवाड़े का आरोप लगाया है। चार्जशीट में भ्रष्टाचार निरोधक कानून की कोई ध
नई दिल्ली, [जाब्यू]। कोयला घोटाले पर सीबीआइ की अब तक की जांच सिफर साबित हुई है। जांच एजेंसी अपनी पहली चार्जशीट में कोयला ब्लॉक आवंटन में घोटाला साबित करने में पूरी तरह नाकाम रही है। सीबीआइ ने केवल एक निजी कंपनी और उसके दो निदेशकों के खिलाफ फर्जीवाड़े का आरोप लगाया है। चार्जशीट में भ्रष्टाचार निरोधक कानून की कोई धारा नहीं लगाई है और न ही कोयला ब्लॉकों के आवंटन में शामिल किसी सरकारी अधिकारी का नाम शामिल किया गया है।
दिल्ली की स्थानीय अदालत में दाखिल पहली चार्जशीट में सीबीआइ ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे झारखंड में कोयला ब्लॉक हथियाने के लिए हैदराबाद की नवभारत पावर प्राइवेट लिमिटेड और उसके निदेशकों को आरोपी बनाया है। सीबीआइ के अनुसार इन दोनों निदेशकों ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे कंपनी की नेटवर्थ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। इस फर्जीवाड़े के लिए उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा-420 और इससे जुड़ी आपराधिक साजिश की धारा-120बी लगाई गई है।
इस बीच, सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट से पांच अन्य कंपनियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए 28 मार्च तक का समय मांगा है। सीबीआइ की चार्जशीट में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा और किसी भी सरकारी अधिकारी का नाम नहीं होना है। जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मामले की जांच अभी जारी है। बाद में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सरकारी अधिकारियों के खिलाफ पूरक चार्जशीट दाखिल की जा सकती है।
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हालांकि, उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि 3 सितंबर, 2012 से अब तक लगभग ढाई साल की जांच में जांच एजेंसी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ सुबूत क्यों नहीं जुटा पाई, जबकि एफआइआर में कंपनी निदेशकों के साथ-साथ झारखंड और कोयला मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया था।