चिंता यही, चिता तो मिले
यात्रा सीजन के दौरान केदारघाटी के सड़क से लगे जिस बड़ासू गांव में इन दिनों खासी चहल-पहल रहा करती थी, वहां मातम पसरा है। हर कोई सदमे में हैं। वजह पूछने पर लोगों की आंखें छलक उठती हैं। रुंधे गले से बताते हैं कि रोजगार के सिलसिले में केदारनाथ गए गांव के 23 लाडलों समेत 24 लोगों को आपदा ने उनसे हमेशा के लिए छीन लिया। इनमें सात परिवार ऐसे हैं, जिनके घर के चिराग तक बुझ गए। अब चिंता इस बात की है कि जिन्होंने साथ छोड़ा, उनके शवों को अंतिम दर्शनों के लिए कैसे लाया जाए।
केदार दत्त, गुप्तकाशी। यात्रा सीजन के दौरान केदारघाटी के सड़क से लगे जिस बड़ासू गांव में इन दिनों खासी चहल-पहल रहा करती थी, वहां मातम पसरा है। हर कोई सदमे में हैं। वजह पूछने पर लोगों की आंखें छलक उठती हैं। रुंधे गले से बताते हैं कि रोजगार के सिलसिले में केदारनाथ गए गांव के 23 लाडलों समेत 24 लोगों को आपदा ने उनसे हमेशा के लिए छीन लिया। इनमें सात परिवार ऐसे हैं, जिनके घर के चिराग तक बुझ गए। अब चिंता इस बात की है कि जिन्होंने साथ छोड़ा, उनके शवों को अंतिम दर्शनों के लिए कैसे लाया जाए।
मयाली-गुप्तकाशी मार्ग पर सड़क से लगा है 2000 की आबादी वाला बड़ासू गांव। हफ्तेभर पहले तक इस गांव के बाजार में खासी रौनक रहा करती थी, लेकिन आज चारों ओर श्मशान सी वीरानी है। जागरण टीम ने बाजार में पहुंचने पर लोगों से इसकी वजह पूछी तो हमारी आंखें भी डबडबा गईं।
क्षेत्र पंचायत उखीमठ के सदस्य विजय सिंह बताते हैं कि गांव के 23 युवाओं समेत 24 लोग दो पैसे कमाने की आस में रोजगार की आस में केदारनाथ गए थे। नियति को यह शायद कुछ और ही मंजूर था। केदारनाथ में आई भीषण आपदा ने सबकुछ तबाह कर दिया। बकौल विजय सिंह, आपदा के बाद सभी लोग अपने लाडलों की सलामती की प्रार्थना करते रहे, लेकिन वे नहीं लौटे।
सब्र का पैमाना छलकने लगा तो तीन दिन पहले हेलीकॉप्टर से गांव के कुछ लोग अपनों की खोज में केदारनाथ पहुंचे। ढूंढ खोज शुरू की तो अलग-अलग स्थानों पर गांव के इन 24 लोगों के शव नजर आए। शव तो मिले, लेकिन अब चिंता यही कि इन शवों को अंतिम दर्शनों के लिए कैसे लाया जाए? आपदा में अपने पुत्रों को खो चुके गांव के सुदामा सिंह और चंदर सिंह भी इसी चिंता में घुले जा रहे हैं।
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