चिदंबरम भी चाहते थे अफस्पा में संशोधन
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की मांग कर आम आदमी पार्टी (आप) के नेता प्रशांत भूषण भले ही विवादों के घेरे में आ गए हों, लेकिन इसे हटाने की कोशिश सरकारी स्तर पर पहले भी होती रही है। गृह मंत्री रहते हुए पी. चिदंबरम ने भी इस कानून के कड़े प्रा
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की मांग कर आम आदमी पार्टी (आप) के नेता प्रशांत भूषण भले ही विवादों के घेरे में आ गए हों, लेकिन इसे हटाने की कोशिश सरकारी स्तर पर पहले भी होती रही है। गृह मंत्री रहते हुए पी. चिदंबरम ने भी इस कानून के कड़े प्रावधानों को हटाने की भरपूर कोशिश की थी। यह अलग बात है कि घाटी की विशेष स्थिति को देखते हुए सुरक्षा संबंधी कैबिनेट कमेटी ने इन कोशिशों को खारिज कर दिया।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला लंबे समय से यह मांग कर ही रहे हैं। दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म के बाद महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बना जस्टिस जेएस वर्मा आयोग भी अफस्पा हटाने की सिफारिश कर चुका है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों से अफस्पा हटाने या उसमें संशोधन की मांग पुरानी है, लेकिन इसके लिए जनमत संग्रह कराने की बात किसी ने नहीं की थी।
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पाकिस्तान समर्थित आतंकियों और अलगाववादियों के दुष्प्रचार के बीच निष्पक्ष जनमत संग्रह की प्रशांत भूषण की मांग बेमानी है। उनके अनुसार पी. चिदंबरम खुद गृह मंत्री रहते हुए कानून के कड़े प्रावधान हटाने की कोशिश करते रहे थे, लेकिन सुरक्षा से संबंधित कैबिनेट कमेटी ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया। चिदंबरम के वित्त मंत्रालय में वापस जाने के बाद यह कोशिश भी समाप्त हो गई। वैसे चिदंबरम भले ही अफस्पा में संशोधन कराने में विफल रहे हों, लेकिन श्रीनगर समेत घाटी के कई रिहायशी इलाकों से सेना के बंकर हटाने और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआरपीएफ को सौंपने में उनकी अहम भूमिका रही थी।
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