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    पीओके पर जवाब को सरकार ने मांगा समय

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    Updated: Thu, 13 Sep 2012 09:45 PM (IST)

    गुलाम कश्मीर भारत का हिस्सा है या नहीं, यह बताने के लिए सरकार ने बांबे हाईकोर्ट से और समय मांगा है। इस पर अदालत ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक अक्टूबर तक समय प्रदान किया। गुरुवार को न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति आरवाई गानू की पीठ गुलाम कश्मीर निवासी सिराज खान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी

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    मुंबई। गुलाम कश्मीर [पीओके] भारत का हिस्सा है या नहीं, यह बताने के लिए सरकार ने बांबे हाईकोर्ट से और समय मांगा है। इस पर अदालत ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक अक्टूबर तक समय प्रदान किया।

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    गुरुवार को न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति आरवाई गानू की पीठ गुलाम कश्मीर निवासी सिराज खान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता केविक सीतलवाड से पूछा कि गुलाम कश्मीर की स्थिति के बारे में सरकार का जवाब कहां है। इस पर सीतलवाड ने अदालत को बताया है कि इस बारे में गृह मंत्रालय को पत्र लिखा गया है। लेकिन अभी तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है। लिहाजा जवाब दाखिल करने के लिए और समय की दरकार है।

    दरअसल पूरा मामला उस सिराज खान से जुड़ा हुआ है, जो नौ साल की उम्र में भटकते हुए भारतीय सीमा में दाखिल हो गया था। उसे देश में अवैध तरीके से प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। खान ने हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की है कि उसे गुलाम कश्मीर प्रत्यर्पित किया जाए।

    पूर्व की सुनवाई में अदालत ने इस पर सरकार से जवाब देने के लिए कहा था। इससे पूर्व महाराष्ट्र सरकार से दलील दी गई थी कि संविधान के अनुसार गुलाम कश्मीर [पीओके] भारत का हिस्सा है। लिहाजा सिराज खान भारत का नागरिक हुआ। उस पर पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी नागरिक कानून के तहत मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था। अदालत में राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया था कि खान के खिलाफ दर्ज मामला वापस ले लिया जाएगा। इस पर अदालत ने केंद्र सरकार से गुलाम कश्मीर पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा था।

    इस बारे में सिराज खान का कहना है कि बचपन में भटक कर वह भारतीय हिस्से वाले कश्मीर में दाखिल हो गया। वहां से वह दिल्ली और उत्तर प्रदेश होते हुए मुंबई पहुंचा और वडाला में रहना शुरू कर दिया। अब तो वह शादीशुदा है और उसके तीन बच्चे भी है। उसका कहना है कि जब वह बड़ा हुआ तो उसने घर वापसी करने का मन बनाया। इस बारे में मदद के लिए जब उसने 2009 में राज्य की सीआइडी से संपर्क साधा तो कोई सहायता देने की बजाय उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

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