बसपा नेता ने लिखी किताब, 'क्या थी भूमि अधिग्रहण बिल के पीछे की राजनीति'
सियासत की जमीन कभी रेतीली है तो कभी पथरीली। सियासत के इस सफर पर नंगे पांवों के अहसास को बसपा नेता ब्रजेश पाठक ने शब्दों में उतारा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । सियासत की जमीन कभी रेतीली है तो कभी पथरीली। सियासत के इस सफर पर नंगे पांवों के अहसास को बसपा नेता ब्रजेश पाठक ने शब्दों में उतारा है। इस किताब में पाठक ने भूमि अधिग्रहण पर वोट बैंक की राजनीति से लेकर छात्र राजनीति की आड़ में अपराधों की पोल भी खोली है।
बसपा नेता की किताब 'नंगे पांव' में राज्य सरकारों की चुप्पी के पीछे भू-माफियाओं के फैल रहे कारोबार की तरफ भी संकेत किए गए हैं। इस किताब में वैसे तो एक काल्पनिक पात्र लिया गया है, लेकिन वास्तव में पूरी कहानी खुद ब्रजेश पाठक की जीवनी के इर्द-गिर्द ही घूमती है। उत्तर प्रदेश में मौजूदा सपा सरकार द्वारा फिर से लागू छात्र चुनावों की नाकामियों, मसलन रैगिंग की वजह से छात्रों के बिगड़ते हालात का भी जिक्र किया गया है। हालांकि खुद ब्रजेश छात्र राजनीति की ही उपज हैं, लेकिन उनकी पार्टी बसपा के शासन में ही छात्र संघ चुनावों पर रोक लगी थी।
लखनऊ विश्वविद्यालय के चुनाव में कैसे रैगिंग बंद कराने से युवक का राजनीतिक जीवन शुरू होता है और वह संसद तक पहुंचता है। इस दौरान राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव से ज्यादा बहुजन सियासत के दौरान सामाजिक दबावों का भी रोचक उल्लेख है। किताब नाट्य रूपांतरित एक पढ़ाकू लड़के के राजनीति दंगल में कूदने की कहानी है। यह पाठक की दूसरी किताब है। किताब के जरिए राजनीतिक विषमताओं, माफियाओं की गुंडागर्दी और चुनाव में रिश्र्वत जैसी गंभीर बातों पर लोगों की निगाहें खींचने की कोशिश है। साथ ही राजनीतिक नाकामियों के चलते गरीबों के नुकसान को दर्शाया है।
वैसे तो किताब का नायक सांप्रदायिकता और आपराधिक राजनीतिक का कड़ा विरोध करता है। लेकिन बसपा की सियासत का ही असर था कि लेखक का विशेष ध्यान समाज में किसानों व निचले वर्ग की ओर रहा है। किसानों और मजदूरों के बदतर हालात और उनके शोषण को भी बताने की कोशिश की गई है। साथ ही सामंती व्यवस्था और सामाजिक, आर्थिक विषमताओं के साथ जमींदारी प्रथा पर करारा प्रहार किया गया है।
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