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    मोदी को चुनावी कमान देने की तैयारी

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    Updated: Sat, 12 Jan 2013 09:46 PM (IST)

    नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को केंद्रीय भूमिका में रखने पर अब सिर्फ मुहर लगना शेष है। गुजरात में तीसरी धमाकेदार जीत के बाद ब्रांड मोदी' को संघ और भाजपा दोनों ने स्वीकार लिया है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी मोदी लोकसभा चुनाव की मुख्य धुरी होंगे। उन्हें केंद्रीय चुनाव संचालन समिति की कमान सौंपने की तैयारी कर ली गई है। जब कांग्रेस जयपुर में लोकसभा चुनाव को लेकर चिंतन करेगी तब भाजपा और संघ में 2014 के आम चुनाव में मोदी की भूमिका पर मंथन शुरू हो गया है।

    नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को केंद्रीय भूमिका में रखने पर अब सिर्फ मुहर लगना शेष है। गुजरात में तीसरी धमाकेदार जीत के बाद ब्रांड मोदी' को संघ और भाजपा दोनों ने स्वीकार लिया है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी मोदी लोकसभा चुनाव की मुख्य धुरी होंगे। उन्हें केंद्रीय चुनाव संचालन समिति की कमान सौंपने की तैयारी कर ली गई है। जब कांग्रेस जयपुर में लोकसभा चुनाव को लेकर चिंतन करेगी तब भाजपा और संघ में 2014 के आम चुनाव में मोदी की भूमिका पर मंथन शुरू हो गया है।

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    संघ और भाजपा दोनों ही चाह रहे हैं कि राजग के मौजूदा स्वरूप पर कोई आंच भी न आए और ब्रांड मोदी का लाभ भी भाजपा को मिले। यह संकेत मिल रहे हैं कि मोदी को केंद्रीय चुनाव संचालन समिति की कमान देकर कार्यकर्ताओं को संदेश स्पष्ट दे दिया जाए। पार्टी 2014 को अपने लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देख रही है। मोदी के आलोचक भी मानने लगे हैं कि मोदी को पृष्ठभूमि में रखकर 2014 की लड़ाई लड़ना समझदारी नहीं है। लिहाजा उन्हें ऐसी भूमिका दी जाए जहां से वह भाजपा का चेहरा दिखें। पार्टी मान रही है कि यदि इन परिस्थितियों का चुनावी लाभ न मिल पाया तो उसके लिए दिल्ली कम से कम एक दशक दूर हो जाएगी।

    मोदी को भी शायद केंद्र में परोक्ष नेतृत्व का यह फार्मूला ज्यादा मुफीद लगेगा। यदि भाजपा का चुनावी पासा ठीक बैठा तो मोदी के गुजरात से केंद्र में आने का रास्ता खुद ब खुद साफ हो जाएगा। अगर मनमाफिक संख्या में सीटें न मिलीं तो भी ब्रांड मोदी पर कोई आंच नहीं आएगी। यह गौरतलब है कि राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रही कांग्रेस ने भी फिलहाल उन्हें चुनाव संचालन समिति की कमान देने का फैसला किया है।

    मोदी की केंद्रीय भूमिका को लेकर हो रहे मंथन का केंद्रबिंदु यह है कि गठबंधन न केवल बरकरार रहे, बल्कि चुनाव के बाद नए समर्थकों को जोड़ा भी जा सके। भाजपा का जोर उत्तर प्रदेश, गुजरात, असम, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा जैसे राज्यों में अपनी सीटें बढ़ाने पर है। मोदी के हालिया प्रदर्शन के बाद गुजरात में पार्टी को अपनी सीटें बढने की पूरी उम्मीदें हैं। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि उत्तर प्रदेश में कम से कम 25 सीटें लानी होंगी। जबकि दिल्ली और उसके उत्तर के अन्य राज्यों से दो दर्जन सीटों से ज्यादा लानी होंगी। फिलहाल इन राज्यों की लगभग चार दर्जन सीटों में भाजपा के खाते में आधा दर्जन भी नहीं हैं। येद्दयुरप्पा की बगावत के बाद कर्नाटक से निराश भाजपा वहां भी मोदी के जरिये नुकसान को कम करने की कोशिश करेगी। ध्यान रहे कि येद्दयुरप्पा खुल कर मोदी की वकालत कर चुके हैं। गुजरात की जीत के साथ मोदी ने यह साबित कर दिया है कि उनके साथ सभी वर्ग का मतदाता है। सभी सर्वे यह भी दिखा रहे हैं कि युवा मतदाताओं में ब्रांड मोदी की धूम है। इंडिया इंक' ने भी सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि देश को मोदी जैसे नेता की जरूरत है।

    पार्टी और संघ को इसका भी एहसास है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह के लिए भी मोदी को सामने लाना जरूरी है। गौरतलब है कि मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने का दबाव बढ़ रहा है। मोदी के जरिये पार्टी गठबंधन का दायरा बढ़ाने की भी कोशिश करेगी। मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में अन्नाद्रमुक नेता जयललिता और इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की मौजूदगी को लेकर काफी चर्चा रही है। कोशिश होगी कि पार्टी लोकसभा चुनाव में 200 सीटों के करीब पहुंचे।

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