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    जन जागरण परिसंवाद

    By Edited By:
    Updated: Tue, 25 Mar 2014 12:04 PM (IST)

    सामाजिक न्याय: मुद्दा व राजनीति और नेताओं का उदय समाज के गरीब, शोषित और पिछड़े तबके को बराबरी का हक दिलाना ही सामाजिक न्याय है। इस मुद्दे पर लोगों को भ्रमित कर नेताओं ने काफी फायदा उठाया है, जबकि वास्तविक जरूरतमंदों को इसका पूरा लाभ अब तक नहीं मिल पाया है। संसद में पारित विशेष प्रस्ताव 2

    सामाजिक न्याय: मुद्दा व राजनीति और नेताओं का उदय

    समाज के गरीब, शोषित और पिछड़े तबके को बराबरी का हक दिलाना ही सामाजिक न्याय है। इस मुद्दे पर लोगों को भ्रमित कर नेताओं ने काफी फायदा उठाया है, जबकि वास्तविक जरूरतमंदों को इसका पूरा लाभ अब तक नहीं मिल पाया है।

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    संसद में पारित विशेष प्रस्ताव

    28 अगस्त, 1997 को निर्वाचन आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति ने पहली बार चौंकाने वाले आंकड़े पेश करते हुए कहा कि राजनीति में आपराधिक तत्वों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। उनके अनुसार 1996 के आम चुनाव में 1.38 लाख प्रत्याशियों ने लोकसभा चुनाव लड़ा था। उनमें से 1500 लोगों पर हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसे आपराधिक मामले चल रहे थे। गंभीर स्थिति का आकलन करते हुए 31 अगस्त, 1997 को आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर आहूत संसद के विशेष सत्र में प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें कहा गया था, 'विशेष रूप से सभी राजनीतिक दलों को ऐसे कदम उठाए चाहिए जिससे राजनीति के अपराधीकरण को रोका जा सके और इसके प्रभाव से राजनीति को बचाया जा सके।

    राजनीति के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसमें कोई स्थापित सिद्धांत नहीं होता। राजनीति और सिद्धांत शायद ही कभी साथ-साथ चल पाते हों। यदि ऐसा होता भी है तो वह अपवाद ही होगा या वह सिद्धांत राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए विकृत हो चुका होगा।

    नेपोलियन

    राजनीति की यह प्रकृति ही नहीं है कि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति निर्वाचित होना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति अपने लोगों पर शासन नहीं करना चाहते।

    -जॉर्ज मैक्डोनॉल्ड

    वार्ताकार

    -डॉ. बिपिन तिवारी: प्रमुख, समान अवसर प्रकोष्ठ, दिल्ली विश्वविद्यालय

    -डॉ. संजीव राय: राष्ट्रीय संयोजक सेव द चिल्ड्रेन, गैर सरकारी संगठन

    - राकेश सेंगर: कार्यकर्ता, बचपन बचाओ आंदोलन, गैर सरकारी संगठन

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