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विधानसभा चुनाव परिणाम: कौन रहा हावी, मोदी या मुद्दे?

(मनोज यादव) नई दिल्ली। 8 दिसंबर 2013 का दिन भारतीय राजनीति के लिए एक खास सबक लेकर आया। चुनाव परिणाम आने के बाद किसी की बांछें खिल गई तो किसी को मायूसी हाथ लगी। विधानसभा के चुनाव परिणामों ने परंपरागत राजनीति करने वालों के लिए खतरे की घंटी बजा दिए। इसका सबसे जीवंत उदाहरण है दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को

By Edited By: Published: Mon, 09 Dec 2013 02:25 PM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2013 02:33 PM (IST)
विधानसभा चुनाव परिणाम: कौन रहा हावी, मोदी या मुद्दे?

(मनोज यादव) नई दिल्ली। 8 दिसंबर 2013 का दिन भारतीय राजनीति के लिए एक खास सबक लेकर आया। चुनाव परिणाम आने के बाद किसी की बांछें खिल गई तो किसी को मायूसी हाथ लगी। विधानसभा के चुनाव परिणामों ने परंपरागत राजनीति करने वालों के लिए खतरे की घंटी बजा दिए। इसका सबसे जीवंत उदाहरण है दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली जीत। आम आदमी पार्टी ने अत्यंत कम समय में जमीन से जुड़े और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाकर राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक भूचाल ला दिया। जिससे अब राजनीतिक हस्तियों को अपनी रणनीति पर मंथन करने की जरुरत पड़ने लगी है।

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पिछले साल दो अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर गठित किए गए इस दल ने कांग्रेस के किले को तो ध्वस्त किया ही है, सूबे के तमाम समीकरणों को भी उलट-पलट कर रख दिया है।

वहीं, भाजपाई तो अपनी इस जीत पर खुशियां मना रहे हैं। भाजपा के लिए विधानसभा के ये चुनाव बहुत महत्वप‌रू्ण थे, क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद देश में पहला चुनाव था, जिसमें नरेंद्र मोदी को खरा उतरना था। वैसे अगर हम देखें तो दिल्ली में मोदी का कोई खास असर नहीं देखा गया, क्योंकि उसे यहां पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका। हालांकि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। अब चर्चा करते हैं कि इन विधानसभा चुनावों में मोदी का योगदान कितना रहा?

गौरतलब है कि दिल्ली में पिछले 15 सालों से शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थी। जिन्होंने दिल्ली के विकास में कसर नहीं रखी। लेकिन कांग्रेस की केंद्र की सरकार ने शीला को हरा दिया। केंद्र सरकार के जितने काले कारनामे हैं। उन सभी को विरोधियों ने जमकर उछाला और अपनी जीत के प्रति आश्वस्त शीला अपनी बात को जोरदार तरीके से जनता के सामने रखने में नाकामयाब रहीं। इसमें संदेह नहीं है कि केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी हुई है। जिसका खामियाजा शीला दीक्षित को भुगतना पड़ा है। खैर, यह कांग्रेसियों के लिए मंथन का वक्त है और वे इस पर चर्चा भी करेंगे।

दिल्ली विधानसभा चुनाव: दिल्ली में लोगों को एक बदलाव चाहिए था, जिसके लिए दिल खोलकर मतदान किया गया। इसका सबसे फायदा आम आदमी पार्टी को ही मिला, जिसके कारण समीकरण अभी तक नहीं बन सका है।

मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान हैट्रिक लगाकर फिर से राज्य की सत्ता पर काबिज हो गए हैं। इसका भी श्रेय नरेंद्र मोदी को ही दिया जा रहा है, लेकिन इस जीत में शिवराज सिंह की भूमिका भी कम नहीं। उनके बेमिसाल-सरल स्वभाव को जानना चाहिए और उस विकास को जानना चाहिए जिसकी वजह से उनकी कुर्सी आज भी कायम है। इस चुनाव के बाद से तो शिवराज सिंह का पार्टी में कद भी काफी बड़ा हो गया।

छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ में भी डॉ रमन सिंह एक विकास पुरुष की छवि बनाने में कामयाब हुए हैं। उनका किया हुआ काम लोगों को दिखता है। जिसकी वजह से रमन सिंह फिर से सत्ता हासिल करने में कामयाब हो गए। हालांकि कांग्रेस भी वहां पर काफी मजबूती से लड़ी है। लेकिन अगर नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं की हत्या नहीं की होती तो शायद रमन ंिसह की स्थिति और मजबूत रहती। उसकी सहानुभूति का असर भी देखा गया।

राजस्थान: राजस्थान जहां पर वसुंधरा राजे ने फिर से विजय का डंका बजाया है। राजस्थान में कांग्रेस की हार तो पहले से तय थी। अशोक गहलोत को कांग्रेस भले चाहे जितना बड़ा नेता मानती हो, लेकिन राजस्थान की जनता उन्हें सत्ता की चाबी सौंपकर दुबारा यह चूक नहीं करना चाहती थी। इसके पहले कांग्रेस जब सत्ता में वापसी की थी तो वह वसुंधरा राजे के अहंकार की वजह से सत्ता में आई थी, न कि अशोक गहलोत के मेहनत के बल पर। लेकिन इस बार वसुंधरा राजे अपनी गलती को पहचान करके पूरे 5 साल तक अहम विपक्ष की भूमिका निभाई और सत्ता में वापसी की जमीन तैयार की। जमीनी लड़ाइयां लड़ीं। इसमें सबसे बड़ी बात यह रही कि अशोक गहलोत सरकार पर केंद्र सरकार की नकेल और ऐसे नेता जो केंद्र की राजनीति में थे, लेकिन उनकी नजरें राज्य सरकार पर रहती थी और अशोक गहलोत को कोई काम खुलकर नहीं करने दिए। उन्हें इस बात का डर था कि अगर काम के बल पर कहीं अशोक गहलोत दुबारा वापस आ गए तो उन्हें फिर से हटाना मुश्किल हो जाएगा। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत के पीठ पर वार किया गया। इसमें राजस्थान कांग्रेस में आपसी रंजिश की बू आती है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा की यह जीत कांग्रेस के प्रति उभरे आक्रोश का नतीजा भी हो सकता है।

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