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    धरने पर भारी पड़ी आम आदमी की बेरुखी

    By Edited By:
    Updated: Wed, 22 Jan 2014 07:31 AM (IST)

    केंद्र सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग की समझदारी से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपना विवादित धरना खत्म करने का सियासी बहाना भले मिल गया, लेकिन यह भी सच है कि उनके इस आंदोलन पर सूबे के आम आदमी की बेरुखी बेहद भारी पड़ी है।

    नई दिल्ली, अजय पांडेय। केंद्र सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग की समझदारी से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपना विवादित धरना खत्म करने का सियासी बहाना भले मिल गया, लेकिन यह भी सच है कि उनके इस आंदोलन पर सूबे के आम आदमी की बेरुखी बेहद भारी पड़ी है। खुली अपील के बावजूद लोग उनके समर्थन में सड़कों पर नहीं उतरे। इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या केजरीवाल का जादू अब आम आदमी पर बेअसर साबित होने लगा है।

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    पढ़ें: दो पुलिसवालों को छुट्टी पर भेज काम पर लौटी दिल्ली सरकार

    मुख्यमंत्री मंगलवार सुबह तक किसी भी प्रकार के सुलह-समझौते से साफ इंकार कर रहे थे। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा भी था कि बीच का रास्ता क्या होता है? व्यंग किया कि क्या किसी महिला को 20 फीसद जलाया जाना अथवा 50 फीसद दुष्कर्म किया जाना बीच का रास्ता है? केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर प्रहार करते हुए कहा कि 'वे गणतंत्र दिवस मनाना चाहते हैं पर किसके लिए? परेड तो सिर्फ वीआइपी ही देखेंगे। इसे गणतंत्र दिवस का जश्न मनाना नहीं कहते।' मुख्यमंत्री हर कीमत पर पुलिस अधिकारियों के निलंबन पर अड़े हुए थे। लेकिन देर शाम दो अधिकारियों को छुट्टी पर भेजे जाने को अपनी जीत करार देते हुए उन्होंने धरने से तौबा कर ली। उन्हें बीच का रास्ता अपनाना ही पड़ा।

    याद दिला दें कि पांच पुलिस अधिकारियों को निलंबित किए जाने की मांग को लेकर केजरीवाल जब सोमवार दोपहर रेल भवन पर पहुंचे तो उन्होंने लोगों से अपील की कि वे छुट्टी ले लें और आकर उनके साथ धरना दें। उम्मीद की जा रही थी कि उनकी अपील के बाद रेल भवन और उसके आसपास भारी जमावड़ा होगा लेकिन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। आलम यह रहा कि दो दिन के धरने में मुख्यमंत्री दो हजार लोगों की भीड़ भी नहीं जुटा पाए। जो भीड़ दिख रही थी, उसमें पुलिस और मीडियाकर्मियों की भारी फौज थी।

    बीते 28 दिसंबर की दोपहर रामलीला मैदान का वह यादगार लम्हा शायद ही कोई भूला होगा। जब केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ राजधानी के इस ऐतिहासिक मैदान में शपथ ग्रहण के लिए पहुंचे तो जनसैलाब उमड़ आया था। इससे पहले भी अन्ना आंदोलन के दौरान रामलीला मैदान से लेकर जंतर-मंतर तक केजरीवाल के पीछे लोगों की भीड़ उमड़ती रही है। लेकिन इस बार नजारा बिल्कुल बदला-बदला सा दिखाई पड़ा।

    सूत्रों की मानें तो आम जनता के ना आने से आम आदमी पार्टी के रणनीतिकारों में भारी बेचैनी महसूस की जा रही थी। केजरीवाल की लोकप्रियता के मद्देनजर ही पुलिस ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे। मेट्रो के चार स्टेशन तक बंद कर दिए गए थे पर भीड़ ना आने से पुलिस ने राहत महसूस की।

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