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    गुपचुप तरीके से कड़ी सुरक्षा के बीच हाजी अली दरगाह में घुसी तृप्ति देसाई

    By Atul GuptaEdited By:
    Updated: Thu, 12 May 2016 07:38 AM (IST)

    भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने हाजी अली दरगाह में प्रवेश कर लिया है। कड़ी सुरक्षा के बीच उन्होंने आज दरगाह में प्रवेश किया और जियारत करके वापस लौटीं।

    मुंबई, (एएनआई)। भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने आज गुपचुप तरीके से कड़ी सुरक्षा के बीच हाजी अली दरगाह में प्रवेश किया और कड़ी सुरक्षा के बीच ही वो दरगाह से वापस भी लौट आईं। तृप्ति ने कहा कि महिलाओं को दरगाह के भीतर घुसने की इजाजत मिलनी चाहिए, जिसके लिए मैंने प्रार्थना की। तृप्ति ने कहा कि 15 दिनों के अंदर महिलाओं को दरगाह में प्रवेश की इजाजत मिलनी चाहिए नहीं तो हम प्रदर्शन करेंगे।

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    इससे पहले तृप्ति देसाई ने एलान किया था कि वो अगली बार बिना बताए हाजी अली दरगाह में प्रवेश करेंगी।उन्होंने कहा था कि 28 अप्रैल को हाजी अली में प्रवेश करने की योजना उन्होंने सभी के साथ साझा की थी क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें समर्थन मिलेगा। लेकिन उन्हें लोगों का समर्थन नहीं मिला और उन्हें जाने से रोक दिया गया इसलिए वो अगली बार बिना बताए दरगाह में प्रवेश करेंगी।

    दरअसल हाजी अली दरगाह प्रबंधन ने हाजी अली में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा रखी है जिसका तृप्ति देसाई समेत दूसरी कई महिला संगठन विरोध कर रही हैं। दरगाह प्रबंधन का कहना है कि शरिया कानून के मुताबिक महिलाओं का कब्रो पर जाना गैर इस्लामी है, हालांकि साल 2011 तक महिलाएं हाजी अली दरगाह में प्रवेश करती रहीं है लेकिन 2011 के बाद से दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। यहीं नहीं मुंबई में 20 में से 7 दरगाहों पर महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है।

    हाजी अली दरगाह का इतिहास

    छोटे से टापू पर बनी है हाजी अली की दरगाह

    हाजी अली एक मस्जिद और दरगाह है जो कि मुंबई के वर्ली में समुद तट से करीब 500 मीटर अंदर एक छोटे से टापू पर बनी है। इस दरगाह की भीतर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी शाह बुखारी की कब्र है।

    1431 में बनाई गई थी दरगाह

    शायद ये दुनिया की पहली ऐसी दरगाह है जो कि समुद्र के टापू पर स्थित है। इस दरगाह का निर्माण सन् 1431 में एक मुस्लिम व्यापारी ने सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में बनाया था। हाजी अली मूल रुप से पर्शिया के बुखारा के रहने वाले थे जोकि अब उजबेकिस्तान में आता है। हाजी अली पूरी दुनिया की सैर करते हुए 15वीं शताब्दी में भारत आए थे और उन्होने यहीं पर इस्लाम के प्रचार में अपना जीवन समर्पित कर दिया था। बताया जाता है कि हाजी अली ने कभी शादी नहीं की।

    पीर हाजी अली शाह अपने अंतिम समय तक लोगों और श्रद्वालुओं को इस्लाम के बारे में ज्ञान बांटते रहे। अपनी मौत के पहले उन्होंंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे उन्हें कहीं दफन न करें और उनके कफन को समंदर में डाला जाए। उनकी अंतिम इच्छा पूरी की गई और ये दरगाह शरीफ उसी जगह है जहां उनका समंदर के बीच एक चट्टान पर आकर रुक गया था।

    पढ़ें- हाजी अली दरगाह में एंट्री को महिलाओं ने लगाया जोर, कड़ी सुरक्षा

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