12 वर्षों में सियाचिन में 800 जवान गंवा चुके हैं जान
नौ जवानों की शहादत ने दुनिया के सबसे दुर्गम व ऊंचे युद्धक्षेत्र के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सियाचिन ग्लेशियर फिर सुर्खियों में है।
श्रीनगर। बर्फीले तूफान में मद्रास रेजिमेंट के नौ जवानों की शहादत ने दुनिया के सबसे दुर्गम व ऊंचे युद्धक्षेत्र के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सियाचिन ग्लेशियर फिर सुर्खियों में है। हालांकि, बीते 12 वर्षों में इस इलाके में भारत-पाक के बीच कोई मुठभेड़ नहीं हुई है, लेकिन स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियां लगभग 800 भारतीय जवानों की जान ले चुकी है।
सियाचिन की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत के साथ हर बातचीत में पाकिस्तान इस क्षेत्र के विसैन्यीकरण का मुद्दा जरूर उठाता है। सियाचिन में भारतीय सेना की मौजूदगी पर हर साल करोड़ों रुपये के खर्च और युद्ध से ज्यादा मौसम की मार से होने वाली जनक्षति को देखते हुए अक्सर कहा जाता है कि इस इलाके से सेना को हटा लेना चाहिए।
सियाचिन की भौगोलिक स्थिति उसे भारत के लिए सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है। यही वह क्षेत्र है जिसके जरिए पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ पर भारत की नजर रहती है। सियाचिन ही जम्मू-कश्मीर का एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां भारतीय सेना पूरी तरह से पाकिस्तानी सेना पर हावी है।
इंद्रा नामक पहाड़ी चोटी से शुरू होने वाला 75 सियाचिन ग्लेशियर समुद्रतल से लगभग 23 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। नुब्रा घाटी को जीवन लायक बनाने वाली नुब्रा नदी भी इसी ग्लेशियर से निकलती है। सियाचिन में कोई आबादी नहीं है, सिर्फ सौ से ज्यादा सैन्य चौकियों पर तैनात जवान ही जिंदगी का अहसास कराते हैं।
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने बताया कि कश्मीर में नियंत्रण रेखा प्वाइंट एनजे 9842 पर खत्म हो जाती है। इस बिंदू से आगे यह रेखा उत्तर में सालतोरा रिज लाइन से गुजरती है। यह रिज लाइन सियाचिन ग्लेशियर से लगभग 15 किमी पश्चिम में है और इस ग्लेशियर की पश्चिमी दीवार कहलाती है। भारत इस विभाजन को मानता है, लेकिन पाकिस्तान इस पर राजी नहीं है।
पाकिस्तान के मुताबिक, नियंत्रण रेखा उत्तरपूर्व में नुब्रा घाटी से भारत-तिब्बत सीमा पर काराकोरम तक होनी चाहिए। अगर उसके इस दावे को भारत स्वीकारता है तो उसके हिस्से में अतिरिक्त दस हजार वर्ग किमी का क्षेत्र आ जाएगा। इसी इलाके में कुछ सबसे ऊंची चोटियां हैं। जिनमें के-2, ब्रोड, घोगोलिसा, मशेरब्रम, गशेरब्रम, बालटोरो, शेरपी और सासेर स्थित हैं।
उन्होंने कहा कि भारत पहले इस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। लेकिन पाकिस्तान द्वारा पर्वतारोहियों की आड़ में इस क्षेत्र में अतिक्रमण शुरू हो गया। इसके साथ पाकिस्तान ने यूरोप से ऊंचे बर्फीले क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती के लिए आवश्यक साजोसामान का आयात शुरू किया। भारत ने पाकिस्तान के इरादों को भांपते हुए ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और 13 अप्रैल 1984 को पहली बार भारतीय सेना के जवान सियाचिन आधार शिविर पर पहुंचे थे।
भारतीय सैनिकों ने ऑपरेशन मेघदूत के तहत सबसे पहले बिलाफोडला और सियाला दर्रे पर कब्जा किया। गुलाम कश्मीर से सियाचिन आने के लिए यही दो दर्रे आसान रास्ता उपलब्ध कराते हैं। बाद में सियाचिन के अलावा भारतीय सेना ने दस और ग्लेशियरों को अधिकार में लेकर संपूर्ण 76 किमी क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया।
पाकिस्तानी सेना ने इस इलाके से भारतीय सेना को खदेड़ने के लिए कई बार हमला किया। लेकिन सलतोरो रिज भारत के कब्जे में होने के कारण वे सियाचिन में नहीं आ पाए। सलतोरो रिज सियाचिन ग्लेशियर से 15 किमी पश्चिम में है। यह भारतीय फौज के कब्जे में है।
पाकिस्तान फौज सलतोरो रिज से भी पश्चिम में ग्योंग ग्लेशियर की नीची पहाड़ियों पर है। पाकिस्तान सेना के बेस निचले ग्योंग ग्लेशियर में होने के कारण यह भारतीय फौज के निशाने पर है तथा उसकी सभी गतिविधियों पर भारत की नजर रहती है। दरअसल, पाकिस्तान की नजर सलतोरो रिज पर है ताकि उसकी सेना वास्तविक सियाचिन ग्लेशियर पर निगरानी रख सके।
सियाचिन से भारतीय सेना के हटने से इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन का गठबंधन मजबूत हो जाएगा जो हमारे लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा। इसके अलावा सियाचिन के जरिए भारत अपनी पहुंच गुलाम कश्मीर, रुस, अफगानिस्तान और चीन तक आसानी से बना सकता है। सियाचिन मुद्दे पर पहली बार 1986 में भारत-पाक वार्ता होने के बाद दोनों देशों के बीच अब तक एक दर्जन से ज्यादा बार वार्ता हो चुकी है। लेकिन पाकिस्तान इस क्षेत्र पर भारत का एकाधिकार नहीं मानता।