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    बीस साल बाद मुंबई को मिला न्याय

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    Updated: Thu, 21 Mar 2013 07:46 PM (IST)

    मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरुवार को सुनाए गए बहुप्रतीक्षित फैसले के साथ ही 12 मार्च, 1

    मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरुवार को सुनाए गए बहुप्रतीक्षित फैसले के साथ ही 12 मार्च, 1993 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले का पटाक्षेप हो गया। इस मामले को अंतिम निर्णय तक पहुंचने में पूरे 20 साल लग गए। जबकि, 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले का दोषी को चार साल के अंदर ही फांसी के तख्ते तक पहुंचाया जा चुका है।

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    छोटे-मोटे धमाकों को छोड़ दिया जाए तो भी पिछले 20 वर्षो में मुंबई दस से ज्यादा बड़े आतंकी हमलों का सामना कर चुकी है। लेकिन, आतंक से उसका पहला सामना 12 मार्च, 1993 को ही हुआ था। यह आतंकी हमला अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने और उसके बाद मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों की प्रतिक्रियास्वरूप सिलसिलेवार विस्फोटों के रूप में सामने आया था। इन विस्फोटों के तीन माह पहले से सांप्रदायिक दंगों से जूझ रही मुंबई पुलिस इतने भीषण आतंकी हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। इसके बावजूद तब के पुलिस उपायुक्त राकेश मारिया के नेतृत्व में बना जांच दल 24 घंटे के अंदर विस्फोटों से लदी एक कार के जरिये मुख्य आरोपी टाइगर मेमन के परिवार तक जा पहुंचा था।

    तब से अब तक आतंक से जुड़े कई मामले सुलझा चुके महाराष्ट्र के मौजूदा एटीएस (आतंकवाद निरोधी दस्ते) प्रमुख राकेश मारिया कहते हैं कि इस केस को सुलझाना इसलिए बहुत मुश्किल था क्योंकि तब मोबाइल फोन का युग नहीं था। आज की तरह आरोपियों के मोबाइल काल डिटेल्स का प्रिंट आउट निकालकर उनका लोकेशन पता नहीं किया जा सकता था। तब कंप्यूटर भी नया-नया ही आया था और अंडरव‌र्ल्ड इनका इस्तेमाल नहीं करता था। इसके बावजूद देश के इस पहले सिलसिलेवार धमाके में देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस टीमें भेजकर न सिर्फ आरोपियों की गिरफ्तारी की गई, बल्कि आठ महीने के अंदर [4 नवंबर, 1993] को मुंबई पुलिस ने अपना आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया था। तब इस मामले में दाखिल 9,392 पन्नों की चार्जशीट भारत में किसी केस की सबसे बड़ी चार्जशीट थी। इसके बाद 26 नवंबर, 2008 के आतंकी हमले में इससे बड़ी चार्जशीट दाखिल हुई, जो 14,780 पन्नों की थी।

    इस मामले में कुल 197 लोग गिरफ्तार किए गए थे और 140 लोगों ने ट्रायल का सामना किया। 686 लोगों की गवाही हुई, 88 लोगों ने अपना गुनाह कबूला। भारत का यह पहला केस था, जिसकी सुनवाई के लिए मुंबई की आर्थर रोड जेल के अंदर ही विशेष अदालत लगाई गई, जहां 10 साल से ज्यादा समय तक एक ही टाडा जज पीडी कोडे ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 31 जुलाई, 2007 को फैसला सुनाया था। उन्होंने कुल 100 लोगों को मुंबई धमाकों का दोषी ठहराया था। उनमें 12 लोगों को मृत्युदंड, 20 को आजीवन कारावास और शेष को विभिन्न अवधियों के सश्रम कारावास व जुर्माने की सजाएं सुनाई गई थीं।

    टाडा कोर्ट के फैसले को सीधे सर्वोच्च न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती थी। पिछले वर्ष महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने माना था कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले का आरोपपत्र एवं फैसले की प्रतियां अंग्रेजी में उपलब्ध कराने में राज्य सरकार को देर लगी, इसलिए सर्वोच्च अदालत को फैसला सुनाने में देर लग रही है।

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