Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सरकार की बड़ी नाकामी थे सिख दंगे

    By Edited By:
    Updated: Mon, 03 Feb 2014 07:31 AM (IST)

    राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने कहा है कि वर्ष 1984 में सरकार ध्वस्त हो गई थी और हिंसा उसकी बड़ी नाकामी थी। जब सिख विरोधी दंगे हुए थे तब आइएएस हबीबुल्ला की तैनाती प्रधानमंत्री कार्यालय में ही थी। हबीबुल्ला ने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि कांग्रेस सरकार हिंसा में मिली हुई थी। उन्होंने गुजरात में हुए 2002 के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़े करने की मांग करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का तब राज्य पर पूरा नियंत्रण्

    नई दिल्ली। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने कहा है कि वर्ष 1984 में सरकार ध्वस्त हो गई थी और हिंसा उसकी बड़ी नाकामी थी। जब सिख विरोधी दंगे हुए थे तब आइएएस हबीबुल्ला की तैनाती प्रधानमंत्री कार्यालय में ही थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हबीबुल्ला ने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि कांग्रेस सरकार हिंसा में मिली हुई थी। उन्होंने गुजरात में हुए 2002 के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़े करने की मांग करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का तब राज्य पर पूरा नियंत्रण था। हबीबुल्ला ने कहा, 'वर्ष 1984 में भारत सरकार ध्वस्त हो गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। वह बहुत मजबूत प्रधानमंत्री थीं। प्रधानमंत्री कार्यालय ठीक से काम नहीं कर पा रहा था। सरकार काम करने के लायक नहीं थी.दंगे सरकार की बड़ी नाकामी थे लेकिन इसका एक कारण था। यह ऐसा नहीं था कि कोई साजिश रच रहा हो कि हमें सिखों की हत्या करनी चाहिए।'

    पढ़ें: जैल सिंह के सहयोगी ने दंगों में राजीव गांधी को लपेटा

    उनकी मौत के बाद केंद्र सरकार उलट-पलट सी गई थी। महज एक निदेशक स्तर का अधिकारी सबसे वरिष्ठ अधिकारी के रूप में दो दिनों तक प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करता रहा जबकि शेष अधिकारी इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार के इंतजाम में व्यस्त रहे। सरकार में बहुत कम लोग राजधानी में हो रहे दंगों की भयावह स्थिति को समझ पाए।

    यह पूछने पर कि भाजपा और सिख समूह जैसा आरोप लगा रहे हैं, क्या वह सोचते हैं कि सरकार ने दंगे भड़काए? उन्होंने कहा-बिल्कुल नहीं। क्या इसमें कुछ कांग्रेस नेताओं की साठ-गांठ हो सकती है? जवाब में उन्होंने कहा -यह संभव है कि लोगों ने कानून अपने हाथ में ले लिया हो लेकिन सरकार की ओर से सिख समुदाय से बदला लेने का कोई प्रयास नहीं हुआ, बिल्कुल नहीं। प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहली चिंता थी-'मेरी मां का क्या हुआ' और जब सरकार ने कुछ दिनों में दंगों की भयावहता को समझा तब तक दंगों में कमी आनी शुरू हो गई थी। सूचनाएं नहीं पहुंच रही थीं। हो सकता है कि स्थानीय पुलिस, स्थानीय नेता और राज्य के अन्य लोगों की साठ गांठ हो क्योंकि बहुत लोकप्रिय प्रधानमंत्री की हत्या हुई थी। हमें लगता है कि सरकार को हिंसा का अनुमान लगाना चाहिए था और पुलिस की पूरी तैनाती होनी चाहिए थी। पुलिस तब अधिकतर प्रधानमंत्री आवास के बाहर जुटी रहती थी क्योंकि बाहर हमेशा भीड़ लगी रहती थी। 84 और 2002 के दंगों में अंतर के बारे में उन्होंने कहा कि 2002 में इस तरह सरकार ध्वस्त हुई इसका कोई सुबूत नहीं है। क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार तब दंगे भड़काने में शामिल रही होगी? हबीबुल्ला ने कहा कि इससे वह इन्कार नहीं कर सकते।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर