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महाराष्ट्र में मुस्लिमों को 5 और मराठियों को 16 फीसद आरक्षण

महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने बुधवार को शिक्षा एवं नौकरियों में मराठों को 16 फीसद एवं मुस्लिमों को पांच फीसद आरक्षण देने का फैसला किया है। विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस-राकांपा सरकार का यह बड़ा राजनीतिक फैसला माना जा रहा है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Jun 2014 07:54 PM (IST)Updated: Thu, 26 Jun 2014 07:13 AM (IST)

मुंबई। महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने बुधवार को शिक्षा एवं नौकरियों में मराठों को 16 फीसद एवं मुस्लिमों को पांच फीसद आरक्षण देने का फैसला किया है। विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस-राकांपा सरकार का यह बड़ा राजनीतिक फैसला माना जा रहा है।

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महाराष्ट्र में मराठों की आबादी करीब 33 फीसद एवं मुस्लिमों की आबादी करीब 12 फीसद है। महाराष्ट्र राज्य का गठन होने के बाद से ही इन दोनों वगरें पर कांग्रेस का एकाधिकार माना जाता रहा है। 1999 में शरद पवार के कांग्रेस से अलग होने के बाद उनके नेतृत्व में बनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [राकांपा] की ओर मराठों का झुकाव अधिक हुआ, लेकिन कांग्रेस से भी यह वर्ग जुड़ा रहा। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा के विरुद्ध राजनीति करनेवाली भाजपा एवं शिवसेना जैसी पार्टियों में न तो मराठा नेता अधिक हैं, न ही मराठों का झुकाव इस ओर अधिक है।

इसके बावजूद हाल के लोकसभा चुनाव में शिवसेना-भाजपा राज्य की 48 में से 42 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहीं। सेना-भाजपा की इस जीत ने कांग्रेस-राकांपा के कान खड़े कर दिए हैं। जिसके फलस्वरूप राज्य मंत्रिमंडल ने आज बहुप्रतीक्षित मराठा आरक्षण के साथ-साथ मुस्लिम समाज के लिए भी आरक्षण घोषित कर एक बड़ा राजनीतिक पासा फेंक दिया है।

हालांकि राज्य सरकार वायदा कर रही है कि वह इन समाजों के लिए यह आरक्षण लागू भी करवाएगी। लेकिन राज्य में विभिन्न वर्गो के लिए पहले से लागू 52 फीसद आरक्षण को देखते हुए इस अतिरिक्त 21 फीसद आरक्षण का लागू हो पाना संदिग्ध लग रहा है। बता दें कि महाराष्ट्र में अनुसूचित जातियों के लिए 13 फीसद, अनुसूचित जनजातियों के लिए सात फीसद, अन्य पिछड़े वर्गो के लिए 19 फीसद तथा कुछ अन्य वर्गो के लिए 13 फीसद आरक्षण लागू है।

ये सारे आरक्षण मिलाकर 52 फीसद बैठते हैं। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार आरक्षण की सीमा 50 फीसद से ऊपर नहीं हो सकती। सर्वोच्च न्यायालय के इसी पैमाने को आधार मानते हुए आंध्रप्रदेश के उच्च न्यायालय में वहां की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा मुस्लिमों को दिया गया 4.5 फीसद आरक्षण रद्द कर दिया था।

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