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एनपीए पर सरकारी बैंकों को सख्ती बरतने का निर्देश

सरकारी बैंकों में बढ़ते फंसे कर्ज (एनपीए-नान परफार्मिग एसेट्स) की बढ़ रही समस्या और इसकी आड़ में चल रहे घपलेबाजी से निपटने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने नया दिशानिर्देश जारी किया है। इसके तहत सीवीसी ने सभी सरकारी बैंकों को लोन देने के पहले कंपनी के बैलेंसशीट की

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2015 09:47 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2015 10:03 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकारी बैंकों में बढ़ते फंसे कर्ज (एनपीए-नान परफार्मिग एसेट्स) की बढ़ रही समस्या और इसकी आड़ में चल रहे घपलेबाजी से निपटने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने नया दिशानिर्देश जारी किया है। इसके तहत सीवीसी ने सभी सरकारी बैंकों को लोन देने के पहले कंपनी के बैलेंसशीट की सत्यता की जांच करने को कहा है। फिलहाल बैंक चार्टर एकाउंटेंट द्वारा जमा की बैलेंसशीट के आधार पर कंपनी को लोन जारी कर देते हैं। सरकारी बैंकों में भ्रष्टाचार की निगरानी की जिम्मेदारी सीवीसी की है।

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सतर्कता आयुक्त केबी चौधरी के अनुसार एनपीए बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि बैंक चार्टर एकाउंटेंट द्वारा बनाई गई कंपनी के बैलेंसशीट पर भरोसा कर लेते हैं। जबकि कई मामलों में यह देखा गया है कि कंपनी जिस चार्टर एकाउंटेंट द्वारा बनाया गया बैलेंसशीट दिखाया है, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसी तरह के कई चार्टर एकाउंटेंट ने बाद में दावा किया कि उसके नाम पर जो बैलेंसशीट दिखाई है, उसे उन्होंने बनाया ही नहीं है। जबकि कई मामले ऐसे भी देखे गए हैं कि चार्टर एकाउंटेंट में जानबूझकर कंपनी का फर्जी बैलेंसशीट बना दिया था। ऐसे चार्टर एकाउंटेंट के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान पहले ही किया जा चुका है।

दरअसल फर्जी बैलेंसशीट व अन्य दस्तावेजों के सहारे लोन लेने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है और सीबीआइ उनके खिलाफ केस भी दर्ज करती है। लेकिन लोन देने के बाद इस कवायद का कोई फायदा नहीं होता है, बैंक का पैसा तो डूब ही जाता है। सतर्कता आयुक्त टीएम भसीन ने कहा कि लोन देने की प्रक्रिया में सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि बैंक खुद कंपनी के दस्तावेजों की जांच नहीं करता है। उन्होंने कहा कि बैंक यदि चार्टर एकाउंटेंट की बैलेंसशीट की पहले ही जांच कर लें, तो एनपीए की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सभी बैंकों को इसे कड़ाई से लागू करने को कहा गया है।

सनद रहे कि पिछले तीन-चार वर्षो से सरकारी बैंकों में एनपीए की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जून, 2015 को समाप्त तिमाही में बैंकों के कुल कर्ज का 6.03 फीसद एनपीए में तब्दील हो चुका है। एसबीआइ, पीएनबी, बीओबी समेत दर्जन भर सरकारी बैंकों का मुनाफा कम हो चुका है। एनपीए कम करने को लेकर बैंकों में काफी घपलेबाजी भी हो रही है। वर्ष 2014-15 में बैंकों ने सरकार को बताया है कि उन्होंने 1,26,672 करोड़ रुपये के फंसे कर्जे (एनपीए) कम किये हैं। लेकिन इसमें से असलियत में कर्ज वसूली सिर्फ 41,236 करोड़ रुपये की है। इसमें से 52,542 करोड़ रुपये तो बैंकों ने बट्टे खाते में डाल दिये यानी उनकी वसूली अब नहीं होगी।


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